न्यू वर्ल्ड ऑर्डर-08 : सन 1857 की क्रांति नाकाम क्यों हुई?
आज की इस कड़ी में हम यह बताने की कोशिश करेंगे कि सन 1857 की क्रांति नाकाम क्यों हुई? इसके लिये अंग्रेज़ों ने "फूट डालो और राज करो (Divide & Rule)" का सफल प्रयोग किया। जिन रियासतों ने जंगे-आज़ादी में शामिल होने के बजाय, अंग्रेज़ों का साथ देकर अपने ही हमवतनों का क़त्लेआम किया, वो भी बाद में अंग्रज़ों की "साम्राज्यवादी नीति" का शिकार बने। इस लेखमाला के ज़रिए बहुत अहम जानकारियां देने की कोशिश की जा रही हैं।
पिछली कड़ी में आप उन कारणों के बारे में विस्तार से पढ़ चुके हैं, जिनके चलते 1857 की पहली जंगे-आज़ादी की बुनियाद पड़ी। सन 1857 की क्रांति की शुरूआत मेरठ छावनी से हुई। मेरठ में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी और जेल को तोड़ दिया। 10 मई 1857 को वे दिल्ली के लिए आगे बढ़े। 11 मई को मेरठ के क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर मुग़ल सम्राट बहादुरशाह ज़फर को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। जल्द ही इस क्रांति की आग लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार और झांसी में भी फैल गई।
नोट : आज़ाद भारत के इस नक़्शे में यह बताने की कोशिश की गई है कि वर्तमान के भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश के तहत आने वाले कौन-कौनसे राज्य 1857 की क्रांति में शामिल थे।
अंग्रेजों ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर क़ब्ज़ा किया। 21 सितंबर, 1857 ई. को दिल्ली पर अंग्रेजों ने पुनः अधिकार कर लिया। इस संघर्ष में अंग्रेज़ों का कमांडर 'जॉन निकोलसन' मारा गया। लेकिन लेफ्टिनेंट कमांडर 'विलियम हडसन' ने कुछ ग़द्दारों की मदद लेकर हुमायूं के ऐतिहासिक मकबरे से सम्राट बहादुरशाह ज़फ़र को गिरफ़्तार कर लिया। अगले ही दिन दिल्ली गेट (ख़ूनी दरवाजे) के पास उनके दो बेटों मिर्ज़ा मुग़ल व मिर्ज़ा खिज्र सुल्तान और पोते मिर्ज़ा अबूबक्र की हत्या कर दी।
हडसन ने उन मुग़ल शहज़ादों के कटे हुए सिर सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र के सामने पेश किए तो उन्होंने कहा था, "इतिहास गवाह है कि हमारी औलादें अपने बड़ों के सामने ऐसे ही सुर्ख़रू होकर सामने आती रही हैं।" ज़ालिम हडसन को बहुत जल्द क्रांतिकारी सैनिकों ने एक मुक़ाबले में मार गिराया।
तन्ज़िया अंदाज़ में अंग्रज़ों के वफ़ादारों ने सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र से कहा था,
दमदमे में दम नहीं अब ख़ैर मांगो ज़ान क़ी,
ऐ ज़फ़र ठण्डी हुई शमशीर हिन्दुस्तान क़ी।
82 साल के उस ग़ैरतमंद बादशाह ने जवाब दिया,
ग़ाज़ियों में बू रहेगी जब तलक ईमान क़ी,
तख्ते लंदन पर चलेगी तेग हिन्दुस्तान क़ी।
अंग्रेज़ों ने बहादुर शाह ज़फ़र के ख़िलाफ़ राजद्रोह व हत्याओं के आरोप लगाये और मुक़द्दमे का नाटक 27 जनवरी से 9 मार्च, 1858 तक चला। ज़फ़र को फांसी देने से कहीं दोबारा बग़ावत न भड़क उठे, इस डर से अंग्रेज़ों ने बादशाह ज़फ़र को रंगून (बर्मा) की जेल में नज़रबंद कर दिया। जहाँ 7 नवम्बर 1862 को उनकी मौत हुई और वही पर उन्हें दफ़नाया गया।
अपने देश से प्यार करने वाले इस मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र ने अपनी मातृभूमि को याद करते हुए हसरतभरे अंदाज़ में लिखा था,
कितना है बदनसीब 'ज़फ़र' दफ़न के लिये,
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में।
मुग़ल सल्तनत पूरी तरह ख़त्म हो गई। बहादुर शाह ज़फ़र का ताज अभी भी लंदन के रॉयल कलेक्शन में रखा है और देशाभिमानी भारतीयों की ग़ैरत को ललकारता रहता है मगर आज़ादी के 74 साल बाद भी हमारी लोकतांत्रिक सरकारों ने उस ताज को वापस लाने के लिये कोशिश नहीं कि। हमें यह भूलना नहीं चाहिये कि बहादुर शाह ज़फ़र हमारे उस स्वतंत्रता संग्राम के नायक हैं जिसे हिंदुओं व मुसलमानों ने एकजुट होकर लड़ा था।
ग़द्दारों की मदद से अंग्रेज़ों ने 1857 की क्रांति को नाकाम कर दिया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की राजमाता बेगम हज़रत महल, तात्या टोपे, नाना साहेब, मौलवी अहमदुल्लाह सहित तमाम सेनानी अपने वतन की आज़ादी के लिये क़ुर्बान हो गये।
1857 का संग्राम एक साल से ज्यादा समय तक चला। मेरठ में विद्रोह भड़कने के चौदह महीने बाद 8 जुलाई, 1858 को लॉर्ड कैनिंग ने अंग्रेज़ों की जीत की घोषणा की।
इन सेनानियों के पास न संख्याबल था और न पैसा। उसके उलट ब्रिटिश सेना के पास बड़ी संख्या में सैनिक, पैसा और हथियार थे। इसके साथ ही उनके साथ बड़ी तादाद में देसी रियासतों के राजा और नवाब भी थे जिनके सहयोग से अंग्रेज़ इस क्रांति को कुचलने में कामयाब रहे। अगर उन रियासतों, जिनके नाम नीचे दिये गये हैं, ने आज़ादी की लड़ाई में
साथ दिया होता तो तस्वीर कुछ और ही होती।
■ अंग्रेज़ों की सहयोगी रियासतें
ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश सैनिक, ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय सिपाही, यूनाइटेड किंगडम बंगाल प्रेसिडेंसी के ब्रिटिश नागरिक इस क्रांति को दबाने में पेशरो थे और उनके साथ थी इन देसी राजघरानों की सेना,
राजपूत रियासतें : ◆ जयपुर ◆ बीकानेर ◆ जोधपुर मारवाड़ ◆ सिरोही ◆ मेवाड़ ◆ अलवर ◆ भरतपुर ◆ बूंदी
नवाबी रियासतें : ◆ रामपुर ◆ भोपाल ◆ हैदराबाद
सिख रियासतें : ◆ कपूरथला ◆ पटियाला
अन्य हिंदू रियासतें : ◆ नाभा ◆ जावरा ◆ बीजावार ◆ अजयगढ़ ◆ रीवा ◆ केन्दुझाड़ ◆ जम्मू-कश्मीर ◆ नेपाल की राजशाही और अन्य कई छोटे राज्य
■ 1857 की क्रांति नाकाम होने के अन्य कारण
इस क्रांति में देश के मध्यम वर्ग ने बिल्कुल हिस्सा नहीं लिया। देश का 'शिक्षित वर्ग' पूर्ण रूप से उदासीन रहा। व्यापारियों एवं शिक्षित वर्ग ने कलकत्ता एवं बंबई में सभाएं करके अंग्रेज़ों की सफलता के लिये अपील भी की थी। अगर इस वर्ग ने अपने लेखों एवं भाषणों द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया होता, तो निःसंदेह इस क्रांति का परिणाम कुछ और ही होता।
■ 1857 की क्रांति का परिणाम
जब पहली जंगे-आज़ादी नाकाम कर दी गई और अंग्रेज़ों ने पूरा नाप-तौल कर लिया कि अब उनकी सत्ता को कोई ख़तरा नहीं है तो 1858 ई. में ब्रिटिश संसद ने एक क़ानून पारित करके ईस्ट इंडिया कंपनी के अस्तित्व को समाप्त कर दिया और अब भारत पर शासन का अधिकार महारानी विक्टोरिया के हाथों में आ गया।
इंग्लैंड में 1858 ई. के अधिनियम के तहत एक 'भारतीय राज्य सचिव' की व्यवस्था की गई, जिसकी सहायता के लिये 15 सदस्यों की एक 'सलाहकार परिषद्' बनाई गई। इन 15 सदस्यों में 8 की नियुक्ति सरकार द्वारा करने तथा 7 की 'कोर्ट ऑफ हाइरेक्टर्स' द्वारा चुनने की व्यवस्था की गई।
जो रियासतें 1857 की क्रांति के सेनानी बादशाह, नवाब और राजाओं के पास थीं उन्हें मिलाकर ब्रिटिश इंडिया का निर्माण किया गया। जिन रियासतों ने अंग्रेज़ों का साथ दिया था, उनके साथ ब्रिटिश सरकार ने "संधि (Treaty)" कर ली। अब भारत में ब्रिटिश यूनियन जैक झंडा लहरा रहा था। अंग्रज़ों का मंसूबा था, अपने बनाए हुए क़ानून सारी दुनिया में लागू करना। इसका सबसे पहला प्रयोग उन्होंने भारत में किया।
अगली कड़ी में इन् शा अल्लाह हम बताएंगे कि अपने शासनकाल में ब्रिटिश सरकार ने कौन-कौनसे क़ानून बनाए, जो 15 अगस्त 1947 के बाद भी भारत में लागू हैं।
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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़,
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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