न्यू वर्ल्ड ऑर्डर-05 : भारत पर अंग्रेज़ी शासन की शुरूआत

मुस्लिम बादशाहों ने 1192 से लेकर 1857 तक क़रीब 665 साल तक देश पर हुकूमत की लेकिन सही मायनों में पूरे देश में मुस्लिम हुकूमत सन 1707 तक (515 साल) ही रही। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब (रह.) की मौत के बाद वाले मुस्लिम सुल्तान सिर्फ़ नाम के थे। उनके दौर में जो ख़ुराफातें मुस्लिम समाज में पैदा हुईं, उनके बारे में आप पिछले अंक में पढ़ चुके हैं। इस अंक में आप पढ़ेंगे कि किस तरह अंग्रेज़ों ने भारत पर अपना एजेंडा थोपना शुरू किया?

जब सम्राट औरंगज़ेब (रह.) ने ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ कड़ा एक्शन लिया

मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब (रह.) के दौर में सल्तनत की सीमाएं काबुल से ढाका तक और कश्मीर से पॉन्डिचेरी (वर्तमान पुड्डुचेरी) तक 40 लाख वर्ग किलोमीटर के रक़बे में फ़ैली हुई थीं।

सम्राट औरंगज़ेब (रह.) के दौर का भारत

यही नहीं, औरंगज़ेब (रह.) की फ़ौजें दक्कन के सुल्तानों, अफ़ग़ानों और मराठाओं से लड़-लड़कर इस क़दर अनुभवी हो चुकी थीं कि वह उस वक़्त दुनिया की किसी भी बड़ी से बड़ी फ़ौज से टकरा सकती थीं। उस वक़्त की मुग़ल फौज में क़रीब 9,50,000 सैनिक थे।

भारत में व्यापारिक एकाधिकार जमाने की गरज़ से ईस्ट इंडिया कंपनी के कमांडर जोज़ाया चाइल्ड ने लंदन से फ़रमान जारी किया कि भारत में मौजूद कंपनी के अधिकारी अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में मुग़ल जहाज़ों का रास्ता काट दें और जो जहाज़ उनके हत्थे चढ़े उसे लूट लें। यही नहीं 1686 में चाइल्ड ने ब्रिटेन से सिपाहियों की दो पलटनें भी भारत भिजवा दीं और उन्हें निर्देश दिए कि भारत में मौजूद अंग्रेज़ फ़ौजियों के साथ मिलकर चटगांव पर कब्ज़ा कर लें।

बम्बई में अंग्रेज़ों का क़िला, 1672 की तस्वीर

जब लंदन से मुग़लों के ख़िलाफ़ जंग की घोषणा हुई तो उसके जवाब में मुग़ल सेना के सेनापति अलबहर सीदी याक़ूत ने बम्बई तट की घेराबंदी कर ली। उसके साथ 20,000 सैनिक थे, वो चाहते तो अंग्रेज़ सेना का क़त्लेआम भी कर सकते थे लेकिन उन्होंने औरतों-बच्चों की ख़ातिर सिर्फ़ घेराबंदी की।

जॉर्ज वेल्डन और अबराम नॉआर नामी दो अंग्रेज़ सितंबर 1690 को आख़िरी ताक़तवर मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर (रह.) के दरबार में पहुंचे। दोनों इस हाल में पेश हुए कि दोनों के हाथ मुजरिमों की तरह बंधे थे, सिर सीने पर झुके हुए थे। दोनों दूत मुग़ल शहंशाह के तख़्त के क़रीब पहुंचे और फ़र्श पर लेटकर का माफ़ी मांगी। बादशाह औरंगज़ेब (रह.) ने उन्हें सख़्ती से डांटा और फिर पूछा कि वह क्या चाहते हैं?

औरंगज़ेब के दरबार में अंग्रेज़ी दूत माफ़ी मांगते हुए

उन दोनों ने पहले गिड़गिड़ाकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अपराध को स्वीकार किया और माफ़ी मांगी, फिर कहा कि उनका ज़ब्त किया गया व्यापारिक लाइसेंस फिर से बहाल कर दिया जाए और सीदी याक़ूत को बम्बई के क़िले की घेराबंदी ख़त्म करने का हुक्म दिया जाए।

उस दौर के महाशक्तिशाली मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब (रह.) ने उनकी अर्ज़ी इस शर्त पर मंज़ूर की कि अंग्रेज़ मुग़लों से जंग लड़ने का डेढ़ लाख रुपये हर्जाना अदा करेंगे, आगे से आज्ञाकारी होने का वादा करेंगे और ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रमुख जोज़ाया चाइल्ड भारत छोड़ दे और दोबारा कभी यहां का रुख़ न करे।

अंग्रेज़ों के पास ये तमाम शर्त सिर झुकाकर क़ुबूल करने के अलावा कोई चारा नहीं था, सो उन्होंने स्वीकार कर लिया और वापस बम्बई जाकर सीदी याक़ूत को औरंगज़ेब का ख़त दिया, तब जाकर उसने घेरेबंदी को ख़त्म की और क़िले में बंद अंग्रेज़ों को 14 महीनों के बाद छुटकारा मिला।

इतिहासकार कहते हैं कि सम्राट औरंगज़ेब (रह.) ने उस समय अंग्रेज़ों को माफ़ न किया होता और ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत से बाहर निकाल दिया होता तो भारत का इतिहास कुछ और ही होता। मगर जो तक़दीर में लिखा था, वो होकर रहा और होनी को कोई नहीं टाल सकता।

सम्राट औरंगज़ेब (रह.) की मौत के बाद अँग्रेज़ों के हौसले बुलंद हो गये। नवाब सिराजुद्दौला (बंगाल) और टीपू सुल्तान (मैसूर) की मौत के बाद कोई मुस्लिम सुल्तान अंग्रेज़ों का सामना नहीं कर सका।

भारत में रिमोट कंट्रोल अंग्रेज़ी शासन की शुरूआत

18वीं सदी, यही वो दौर था जब ईस्ट इंडिया कंपनी की आड़ में अंग्रेज़ भारत में जड़ें जमा रहे थे। सन 1820 तक देश की सभी छोटी-बड़ी रियासतों के राजा, महाराजा, सुल्तान और नवाब अंग्रेज़ों से संधि (Treaty) करके उनकी अधीनता स्वीकार कर चुके थे। इनमें हिंदू राजा व पेशवा भी थे और मुस्लिम सुल्तान व नवाब भी थे।

हर रियासत में एक अंग्रेज़ अफ़सर होता था, जिसे "रेजिडेंट" कहते थे। रेजिडेंट के ज़रिए ईस्ट इंडिया कंपनी राजाओं तक अपने हुक्म पहुंचाती थी और राजा व नवाब उसका पालन करते थे। उस दौर के राजाओं और नवाबों के पास सीमित अधिकार होते थे। यहाँ तक कि उनकी मौत के बाद उनके वारिसों को भी अंग्रेज़ों से मंज़ूरी लेनी पड़ती थी।

लॉर्ड वेलेस्ली जिसने सहायता संधि के ज़रिए रियासतों पर क़ब्ज़ा किया

अंग्रेज़ों ने रियासतों को शस्त्रविहीन किया

ईस्ट इंडिया कंपनी, भारत का सबसे ताक़तवर कॉरपोरेट बन चुकी थी। उसकी अपनी सेना थी जिसमें कमांडर और ऊँची रैंक के अफ़सर अंग्रेज़ होते थे जबकि निचले स्तर पर सैनिक भारतीय थे। अपनी इसी सेना के दम पर कंपनी ने राजाओं-नवाबों से उनकी ताक़त छीन ली। उनसे कहा गया जब सरहदों की हिफाज़त के लिये कंपनी बहादुर की फ़ौज है और जिसका ख़र्च भी आप लोग ही देते हैं तो फिर आपको अपनी रियासती सेना की क्या ज़रूरत है?

रियासतों के राजा और नवाब अंग्रेज़ों की इस शातिर चाल को भांप न सके। धीरे-धीरे अंग्रेज़ों का दख़ल रियासत के राजकाज में भी बढ़ने लगा लेकिन शक्तिविहीन राजा और नवाब प्रतिरोध करने की स्थिति में नहीं थे।

रियासतों को सहायता संधि (SUBSIDIARY ALLIANCE) से क्या नुक़सान हुए?

01. देशी रियासतें कम्पनी की सर्वोच्चता स्वीकार कर अपनी आज़ादी गँवा बैठीं।
इन रियासतों को अंग्रेजी रेजिडेंट की सलाह के अनुसार ही निर्णय लेना ठीक लगने लगा। धीरे-धीरे वे अंग्रेज़ों के हाथ की कठपुतली बन गये।

02. देशी रियासतों को कंपनी के सेना का, रेजिडेंट का खर्च वहन करना पड़ता था। इस तरह सहायक संधि के चलते देशी रियासतें आर्थिक रूप से कमजोर पड़ गईं।

03. जब देशी रियासतें कंपनी को धन देने में असमर्थ हो गयीं, तो संधि के अनुसार कंपनी ने उनकी रियासत की ज़मीनें हथियाना शुरू कर दिया।

अंग्रेज़ एक शातिर क़ौम है। उन्होंने कैसे भारत में सत्ता हथियाने और अपना क़ानून लागू करने में कामयाबी हासिल की, यह जानने के लिये हर-एक पहलू को समझना और उस पर ग़ौर करना ज़रूरी है।

इस सीरीज़ की अगली कड़ी में हम उस दौर के दिल्ली के हालात, अवध के नवाब वाजिद अली शाह के नाकारापन की दास्तान और 1857 की क्रान्ति व उसके बाद अंग्रेज़ों ने कौन-कौनसे क़ानून लागू किये? इन सब बातों पर चर्चा करेंगे, इन् शा अल्लाह!

न्यू वर्ल्ड ऑर्डर सीरीज़ के पहले पब्लिश किये गये पार्ट्स को पढ़ने के लिये नीचे दिये गये लिंक बटन पर क्लिक कीजिये,

मुस्लिम जगत

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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़,
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786

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Comments (10)
Nijam khan Nagori Malpura

AAP ne bahut hi bhetein bat btao

Sun 27, Jun 2021 · 09:28 pm · Reply
Javed gouri

अंग्रेजों की तरह हमें भी बहुत प्यार से "" राज़ करने की नीयत से"मुस्लिम विरोधी राजनैतिक पार्टी में entry करनी है। तभी इन लोगों का सफाया हो सकता है। वरना पिछड़ी, अनपढ़, अल्पसंख्यक जाती ही कहलाएंगे। ये ध्यान होना चाहिए कि आज भी तकनीकी क्षेत्र में मुसलमानों का डंका बजता है। मैं दावा करता हुं कि मुसलमान अगर...नफरत फ़ैलाने के माहिर,,,,केवल "बार्हमण और बणियो" की गाड़ी रिपेयर नहीं करने की कसम खा ले तो वजूद का अहसास हो जाएगा। बाकी सभी जातियों के लिए काम करे,, कोई दिक्कत नहीं।

Fri 28, May 2021 · 02:38 pm · Reply
Javed gouri

Nice history.we r being like slave before outsiders foreign company in India once again.

Fri 28, May 2021 · 02:25 pm · Reply
Dr Abdul Mannan Khan

Our history has many b/w pages! It's being corrupted by the present regime. Please concentrate in your article the guidance should we get to make our future bright? It looks bleak right now! Allah tãala hidayat-rahmo-karam farmaye, Āameen.

Thu 27, May 2021 · 06:39 pm · Reply
WAJID Ali

बहुत ही बेहतरीन जानकारी

Thu 27, May 2021 · 03:57 pm · Reply
IMTIYAZ ALI, Alpsankhyak sangh Pradesh Adhyaksh

बहुत शानदार इतिहास कलेक्ट किया बादशाह औरंगजेब का आगे भी इसी तरह का मुस्लिम इतिहास का संकलन भेजते रहे। आज के समय में इसकी बहुत आवश्यकता है। हमारी नौजवान पीढ़ी को मुस्लिम गौरवपूर्ण इतिहास से परिचित होकर भविष्य के रास्ते बनाने की बहुत आवश्यकता है।

Thu 27, May 2021 · 01:49 pm · Reply
ABDUL KAYUM

बहुत ही बेहतरीन और उम्दा जानकारी है। हमें अपने इतिहास से सबक लेना चाहिए और आइंदा इस तरह की गलतियों को दोहराने से बचना चाहिए।

Thu 27, May 2021 · 11:56 am · Reply
ZAKI ANWR

Jazakallah very very thanks for giving elaborated knowledge of Anglo Islamic hisrory of Indian sub continent

Thu 27, May 2021 · 11:38 am · Reply
Muhammad Ahmad

Masha Allah Bahut hi umda tareekh ki malumat ho rahi hai

Thu 27, May 2021 · 10:31 am · Reply
Sabir Khan

This article is so impressive that I want to read your next all articles about this

Thu 27, May 2021 · 07:48 am · Reply