नेशनल पार्टी का दर्जा कैसे मिलता है और उसे क्या बेनिफिट्स मिलते हैं?
भारत के चुनाव आयोग ने किसी राजनीतिक पार्टी को राष्ट्रीय या राज्य स्तर की पार्टियों के रूप में मान्यता देने के लिए कुछ मानदंड निर्धारित किए हैं।
भारत का निर्वाचन आयोग जिन राजनीतिक दलों को मान्यता देता है उनको कुछ विशेष अधिकार और सुविधाएँ भी देता है जैसे, पार्टी को चुनाव चिन्ह का आवंटन करना, निर्वाचन सूचियों को प्राप्त करने की सुविधा, चुनाव के कुछ समय पहले उन्हें राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर टेलीविज़न और रेडियो प्रसारण करने की अनुमति देना ताकि वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहंचा सकें।
एक राष्ट्रीय पार्टी को चुनाव आयोग क्या-क्या सुविधाएँ देता है?
इस समय देश में 7 राजनीतिक पार्टियों को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है।
1. बहुजन समाज पार्टी (बसपा)
2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस)
3. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
4. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)
5. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी माकपा
6. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और
7. अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (2016 में दर्जा प्राप्त हुआ था)
■ राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता पाने के लिए शर्तें
किसी भी मान्यता प्राप्त पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा तभी प्रदान किया जा सकता है यदि वह निम्नलिखित तीन में से किसी एक शर्त को पूरा करती है,
01. वह पार्टी कम से कम 3 विभिन्न राज्यों को मिलाकर लोकसभा की 2% सीटें (2019 के चुनाव के अनुसार 11 सीटें) जीतती है। या
02. वह पार्टी 4 लोकसभा सीटों के अलावा लोकसभा या विधान सभा चुनाव में चार राज्यों में 6% वोट प्राप्त करती है। या
03. वह पार्टी चार या चार से अधिक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी के रूप में मान्यता रखती है।
जो राजनीतिक पार्टी, उपरोक्त में से कोई एक शर्त पूरी नहीं करती वो राष्ट्रीय पार्टी नहीं कहलाती। मिसाल के तौर पर नीतीश कुमार की जेडीयू 16 सांसद होने के बावजूद राष्ट्रीय दल नहीं है क्योंकि वे सभी सांसद एक ही राज्य बिहार से हैं और अन्य राज्यों में जेडीयू के जनाधार नहीं है। इसलिये जेडीयू का स्टेटस राज्यस्तरीय पार्टी का है।
■ नैशनल पार्टी स्टेटस में ऐसा क्या है कि पार्टियां इसे पाने के लिए लालायित रहती हैं?
किसी भी पार्टी को जब नैशनल पार्टी या स्टेट पार्टी का स्टेटस मिल जाता है तो वह दूसरी पार्टियों के मुकाबले एडवांटेज में रहती हैं। वो एडवांटेज क्या-क्या है, आइये जानते हैं,
01. पहला फ़ायदा :
चुनाव आयोग की तरफ से ‘नैशनल पार्टी’ के चुनाव चिन्ह को पूरे देश में सुरक्षा दी जाती है। जबकि ‘स्टेट पार्टी’ के चुनाव चिन्ह को संबंधित राज्य में सुरक्षा मिलती है। कोई अन्य पार्टी इनके चुनाव चिन्ह को यूज नहीं कर सकती।
मिसाल के तौर पर JDU का चुनाव चिन्ह ‘तीर’ है और उसे बिहार राज्य में ‘स्टेट पार्टी’ का दर्जा मिला हुआ है इसलिये बिहार में कोई भी दूसरी पार्टी ‘तीर’ चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़ सकती। हालांकि चुनाव आयोग चाहे तो किसी अन्य राज्य में किसी दूसरी पार्टी को ‘तीर’ का निशान दे सकता है।
इसी तरह ऑल इंडिया मजलिस इत्तिहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) तेलंगाना की एक राज्यस्तरीय पार्टी है। उसका चुनाव चिन्ह पतंग है। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिये उसे उन शर्तों को पूरा करना होगा, जिसका ज़िक्र ऊपर आया है।
अगर कोई ‘स्टेट लेवल पार्टी’, दूसरे किसी राज्य में अपनी पार्टी के सिम्बल के साथ ही लड़ना चाहती है, तो इसके लिए उसे चुनाव आयोग से परमिशन लेनी होगी। ये चुनाव आयोग के ऊपर है कि उसे वो चिन्ह किस पार्टी को देना है, किस को नहीं? इसलिए पूरे देश में अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह को बचाए रखने के लिए नैशनल पार्टी का स्टेटस जरूरी है।
02. दूसरा फ़ायदा :
नेशनल पार्टियों को चुनाव के दौरान अपनी बात रखने के लिए सरकारी टीवी और रेडियो पर प्रसारण की अनुमति मिलती है और पर्याप्त समय भी मिलता है। ये सुविधा अन्य पार्टियों को नहीं मिलती।
03. तीसरा फ़ायदा :
आपको ये तो पता ही होगा कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान किये गये ख़र्च का हिसाब देना पड़ता है। चुनाव आयोग ने एक लिमिट तय कर रखी है कि एक उम्मीदवार को इससे ज्यादा ख़र्च नहीं करना है। चुनाव के दौरान अपने प्रचार के लिए पार्टियां अपने स्टार प्रचारक तय करती हैं। नैशनल और स्टेट पार्टी 40 ऐसे स्टार प्रचारक रख सकती हैं जिनके ऊपर हुआ ख़र्च, पार्टी उम्मीदवारों के खर्चे में ऐड नहीं किया जाता, जबकि अन्य पार्टियों को ऐसे केवल 20 प्रचारक रखने की छूट होती है, जिनका हिसाब उम्मीदवार के खर्चे में नहीं जोड़ा जाता।
04. चौथा फ़ायदा :
ऐसी पार्टियों के उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान वोटर लिस्ट का एक-एक सेट मुफ्त में दिया जाता है।
05. पाँचवां फ़ायदा :
जिन पार्टियों को नैशनल या स्टेट पार्टी का स्टेटस मिला होता है, उन्हें सरकार की तरफ से अपना कार्यालय बनाने के लिए सरकारी ज़मीन और भवन दिए जाते हैं।
06. छठा फ़ायदा :
ऐसी पार्टियों के उम्मीदवारों को अपना नामाकंन दाखिल करने के लिए केवल एक ही प्रस्तावक की जरूरत पड़ती है जबकि किसी निर्दलीय प्रत्याशी को कम से कम 10 प्रस्तावकों की ज़रूरत होती है।
07. सातवाँ फ़ायदा :
साल 2016 में चुनाव आयोग ने अपने एक नियम में संसोधन किया है, जिसके अनुसार किसी पार्टी को नैशनल या स्टेट पार्टी का स्टेटस मिल गया तो यह स्टेटस उसके पास दस साल तक बना रहेगा यानी दो लोकसभा चुनावों तक। इसके बाद ही उस स्टेटस की समीक्षा की जाएगी। ऐसा नहीं है कि एक चुनाव में ही खराब प्रदर्शन हो जाने के बाद, ये स्टेटस छीन लिया जाए। पहले ये टाइम पीरियड 5 साल हुआ करता था यानी हर लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग पार्टियों के स्टेटस की समीक्षा करता था।
अब आप समझ गये होंगे कि राज्यस्तरीय राजनीतिक पार्टियों के महत्वाकांक्षी नेता अपने मूल राज्य से बाहर चुनाव लड़ने में दिलचस्पी क्यों रखते हैं? शायद यही वजह है कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में सबसे ज़्यादा राजनीतिक पार्टियां ताल ठोक रही है।
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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप 9829346786
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