कोरोना इफेक्ट्स-03 : नशेड़ी नहीं सुधरेंगे
4 मई 2020 से लॉक डाउन का तीसरा चरण शुरू हुआ। रेड, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन में अलग-अलग शहरों को बांटा गया। उसी के अनुसार कुछ छूट दी गई। एक तरफ़ सरकार इम्यूनिटी बढ़ाने के लिये आयुर्वेदिक नुस्ख़े बता रही है, वहीं दूसरी तरफ़ इम्यूनिटी को नुक़सान पहुंचाने वाली चीज़ यानी शराब की दुकानें खोलने की इजाज़त दे दी गई। कोरोना के चलते दुनिया के अमीर देशों में सबसे ज़्यादा मौतें हुईं। उन देशों में शराब पीना दिनचर्या में शामिल है। कोरोना इफेक्ट्स सीरिज़ का तीसरा पार्ट इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर केंद्रित है।
लॉक डाउन 3.0 की शुरुआत के साथ ही शराब की दुकानें खोलने की इजाज़त मिली। इसी के साथ सारे क़ायदे-क़ानून टूटते नज़र आये। ऊपर दी गई तस्वीर में शराब के नशेड़ियों की लंबी लाइन को देखिये।
शराब की ख़ातिर लोग पुलिस के डंडे खा रहे हैं लेकिन शराब छोड़ने के लिये तैयार नहीं है। जैसे ही थोड़ी छूट मिली वे शराब के ठेकों की तरफ़ दौड़ पड़े। अभी कोरोना ख़त्म नहीं हुआ। अभी मौत का ख़तरा टला नहीं है। 40 दिन गृह-कारावास में रहकर भी लोग नशे की लत नहीं छोड़ पाए। यक़ीनन यह हमारी समाज-व्यवस्था की नाकामी है।
■ शराब बिक्री की इजाज़त क्यों दी गई?
शराब पर भारी टैक्स लागू है। दलील दी जाती है राज्यों की आय का एक बड़ा हिस्सा शराब बिक्री से मिलने वाले टैक्स से आता है। कोरोना संकट के कारण लागू लॉक डाउन के कारण राज्यों की वित्तीय हालत ख़राब है। इस वजह से राज्यों की आय बढ़ाने के लिये शराब बिक्री की इजाज़त दे दी गई। लेकिन तस्वीर का रुख़ कौन देखेगा?
लॉक डाउन के कारण, 40 दिन से लोग अपने घर बैठे हैं। कमाई के ज़रिए बंद है और घर-ख़र्च का मीटर चालू है। वित्तीय स्थिति तो जनता की भी ख़राब है। ऐसे में सरकार से हमारा सवाल है कि शराब खरीदने के लिये लोग पैसे कहाँ से लाएंगे? या तो बचत की रकम नशे की ख़ातिर क़ुर्बान होगी, या हमारी मांओं-बहनों के ज़ेवर बिकेंगे या फिर दानदाताओं की मदद की रकम का दुरुपयोग होगा (ख़ासकर ग़रीब घरों में)।
देश की एक बहुत बड़ी आबादी को बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, खैनी, गुटखा खाने की लत है। ग़रीब घरों में भी यह आम ज़रूरत की चीज़ बन चुकी है। कई राज्यों की सरकारों ने इनकी बिक्री पर रोक भी लगाई है। इसके बावजूद इसकी न केवल बिक्री हो रही है बल्कि दोगुनी से लेकर दस गुनी तक क़ीमत में बिकने की ख़बरें आ रही हैं।
ऊपर दिये गये पोस्टर को देखिये। इसे भारत सरकार ने जारी किया है। इसके मुताबिक़ किसी की मौत-मय्यित में 20 से ज़्यादा आदमी शरीक नहीं हो सकते। किसी मय्यित के दफ़न या अंतिम संस्कार में क़रीब 2-3 घंटे लगते हैं। शराब ख़रीदने के लिये लाइन में लगने वालों की सीमा एक बार में 5 व्यक्ति है। पहली बात तो इसे कोई मान नहीं रहा, और अगर अमल हो भी जाए तो 2-3 घंटे में 100 से ज़्यादा व्यक्ति शराब ख़रीद लेंगे।
इसी पोस्टर में एक और बात लिखी है, कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर शराब, पान, गुटखा, तम्बाकू आदि का इस्तेमाल नहीं कर सकता। मतलब यह हुआ कि नशेड़ी व्यक्ति अपने घर में बैठकर, अपने बीवी-बच्चों के सामने शराब पियेगा। इसका परिवार के सदस्यों पर कितना बुरा असर पड़ेगा, क्या किसी ने सोचा है?
■ क्या ये परिवार व्यवस्था की नाकामी नहीं है?
बरसों पहले, अमिताभ बच्चन की एक फ़िल्म आई थी, शराबी। इस फ़िल्म का एक गाना था, जहां चार यार मिल जाए वहीं रात हो गुलज़ार, इस गाने का आख़री बोल में कहा गया था, जहाँ प्यार मिले, वहाँ है हर नशा बेकार। इस गाने में बताया गया था कि एक आदतन शराबी के साथ, उसकी बीवी लड़ाई-झगड़े करना छोड़कर, प्यारभरा बर्ताव करने लगती है तो वो शराबी, शराब छोड़ने को तैयार हो जाता है।
कहने वाले कह सकते हैं कि यह एक फ़िल्मी बात है लेकिन हमारा मानना है कि अच्छे बर्ताव के ज़रिए किसी नशेड़ी को नशा छोड़ने पर आमादा किया जा सकता है। यह बात सही है कि इसमें वक़्त बहुत ज़्यादा लगता है और इसमें पूरे परिवार के सहयोग की ज़रूरत होती है। 40 दिन का वक़्त गुज़र गया, इस दौरान आदतन शराबी को शराब नहीं मिली। लेकिन ठेका खुलने की ख़बर मिलते ही वह उसकी तरफ़ दौड़ पड़ा तो कहीं न कहीं यह परिवार-व्यवस्था की भी नाकामी है।
एक बात और, कुछ समाजों में शराब पीने को ग़लत नहीं समझा जाता। इसलिये वो तो शराब छोड़ेंगे कैसे? लेकिन जिन समाजों में, ख़ासकर मुस्लिम समाज में, शराब उम्मुल ख़बाइस (बुराइयों की माँ) मानी जाती है, वहां कितने लोग इस 40 दिवसीय लॉक डाउन में शराब से दूर हुए? यह बात सोचने-समझने की है।
अब बात तम्बाकू प्रोडक्ट्स की। क़रीब-क़रीब सभी घरों में बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, खैनी के इस्तेमाल को शराब जितना बुरा नहीं समझा जाता। मुस्लिम समाज में बड़ी संख्या में औरतें भी "गुटखा-खोर" हैं। छोटे बच्चे भी इसके आदी मिल जाएंगे। सरकार ने सार्वजनिक स्थान पर तम्बाकू प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल पर रोक लगाई, सार्वजनिक स्थानों पर पीक थूकने पर जुर्माने का प्रावधान किया। सवाल यह है कि सरकार इनके निर्माण और बिक्री को क़ानूनन जुर्म घोषित क्यों नहीं करती?
कोरोना इफेक्ट्स सीरिज़ के अगले किसी पार्ट में हम आर्थिक प्रभाव पर भी चर्चा करेंगे। यक़ीन जानिये आने वाला समय और बुरा हो सकता है। आय के साधन घटने की संभावना है। इसलिये समय रहते अपने-आपको और अपने परिवार-समाज को संभालने में जुट जाइये।
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