नफ़रत फैलाने वाले मीडिया के ख़िलाफ़ सरकार ने क्या कार्रवाई की : सुप्रीम कोर्ट
साम्प्रदायिक रिपोर्टिंग के ज़रिए मुस्लिम समाज की छवि दाग़दार करने और हिन्दू-मुस्लिम के बीच नफ़रत की दीवार खड़ी करने वाले टीवी चैनलों के ख़िलाफ़ जमीयत उलमा-ए-हिन्द की रिट पर सुप्रीम कोर्ट में 27 मई 2020 को सुनवाई हुई। एक ईमानदार मीडिया होने के नाते आदर्श मुस्लिम सामाजिक मूल्यों से जुड़ी हर ख़बर पर नज़र रखने की कोशिश करता है। यह एक अफ़सोसनाक बात कही जा सकती है कि यह अहम ख़बर सिर्फ़ उर्दू अख़बारों में ही देखने को मिली, हिंदी मीडिया ने इसे उजागर करना पसंद नहीं किया। बहरहाल, इस सुनवाई के दौरान जिन बिंदुओं पर चर्चा हुई उसके बारे में आज के ब्लॉग में जानकारी दी जा रही है।
■ सुनवाई के दौरान प्रमुख बिंदु
◆ सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि सरकार याचिकाकर्ता को जानकारी दे कि उसने "केबल नेटवर्क क़ानून" की धारा 19 व 20 के तहत अब तक क्या कार्रवाई की है?
◆ सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि यह बहुत संगीन मामला है, इससे "लॉ एंड ऑर्डर" का मसला पैदा हो सकता है, लिहाज़ा सरकार को इस ओर ध्यान देना ज़रूरी है।
◆ सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता जमीयत उलमा-ए-हिन्द को निर्देश देते हुए कहा कि वो इस मामले में ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन को भी पार्टी बनाए।
ग़ौरतलब है कि जमीयत उलमा-ए-हिन्द ने नफ़रत फैलाने वाले मीडिया के ख़िलाफ़ प्रभावी कार्रवाई के लिये सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दाखिल की थी, जिस पर 13 अप्रैल 2020 को पहली सुनवाई हुई थी। उस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने जमीयत उलमा-ए-हिन्द की रिट पर प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया था।
उसके बाद, दूसरी सुनवाई कल 27 मई 2020 को सुनवाई हुई जिसके दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलमा-ए-हिन्द द्वारा दायर रिट की कॉपी केंद्र सरकार को उपलब्ध कराने के निर्देश देते हुए आगामी 15 जून 2020 तक सरकार से जवाब तलब किया है।
जमीयत उलमा-ए-हिन्द की लीगल सेल के सेक्रेटरी गुलज़ार अहमद आज़मी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की हिदायत के मुताबिक़ ब्रॉडकास्ट एसोसिएशन को पक्षकार बनाने हेतु जमीयत के ऑन रिकॉर्ड वकील ऐजाज़ मक़बूल को निर्देश दे दिया गया है ताकि मामले की कार्रवाई जल्दी आगे बढ़ सके।
■ सुप्रीम कोर्ट के सामने क्या तथ्य रखे गये?
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने चीफ़ जस्टिस की अध्यक्षता वाली इस बेंच को बताया कि तब्लीग़ी मर्कज़ को बुनियाद बनाकर पिछले दिनों मीडिया ने भड़काऊ मुहिम शुरू की, यहाँ तक कि पत्रकारिता के उच्च आदर्शों को भी धूमिल किया गया। इससे मुसलमानों के दिलों को न सिर्फ़ आघात पहुंचा बल्कि उनके ख़िलाफ़ पूरे देश में नफ़रत की भावना में बढ़ोतरी हुई।
जमीयत उलमा-ए-हिन्द की लीगल सेल के सेक्रेटरी गुलज़ार अहमद आज़मी ने कहा कि साधारण मामले को मीडिया ने असाधारण बनाकर पेश किया। इसके लिये झूठ को बुनियाद बनाया गया, यहाँ तक कि कोरोना वायरस की वबा को "कोरोना जिहाद" से ताबीर करते हुए यह संदेश देने की कोशिश की गई कि देश में इस महामारी को मुसलमानों ने फैलाया है। इससे देश की बहुसंख्यक जनता न सिर्फ़ गुमराह हुई बल्कि आम मुसलमान को शक की निगाह से देखा जाने लगा।
जमीयत के लीगल सेल के सेक्रेटरी गुलज़ार अहमद आज़मी ने कहा कि अदालत मीडिया के लिये नियम-क़ायदे तय करे और आइंदा उसे इस तरह की भड़काऊ रिपोर्टिंग से रोकने की कार्रवाई करे।
इसकी ज़रूरत क्यों है? इस बारे में गुलज़ार अहमद आज़मी का कहना है कि ऐसे वक़्त में, जबकि सभी लोग एकसाथ मिलकर कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग लड़ रहे हैं, बेलगाम मीडिया का एक बड़ा तबक़ा, समाज में नफ़रत और विभाजन पैदा करके, लोगों को मज़हबी आधार पर बाँटने की साज़िश कर रहा है। मीडिया इसके लिये धड़ल्ले से झूठी ख़बरों और फ़र्ज़ी वीडियोज़ का सहारा ले रहा है जो कि क़ानूनी तौर पर अपराध की श्रेणी में आता है।
उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का उसूल तो यह है कि कोई भी ख़बर प्रकाशित करने या प्रसारित करने से पहले पूरे तौर पर उसके सही या ग़लत होने की जाँच कर ली जाये, मगर मीडिया ऐसा नहीं कर रहा है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश का क़ानून यह भी कहता है कि ऐसी कोई ख़बर प्रकाशित या प्रसारित नहीं की जानी चाहिये जिससे किसी व्यक्ति या समाज की बदनामी हो या उसकी भावनाओं को ठेस पहुंचे या लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हों।
ग़ौरतलब है कि 13 अप्रैल 2020 को जमीयत उलमा-ए-हिन्द के वकील ऑन रिकॉर्ड ऐजाज़ मक़बूल ने सुप्रीम कोर्ट की तवज्जो क़रीब डेढ़ सौ मीडिया चैनल्स व अख़बारों की ओर दिलाई थी जिनमें इंडिया टीवी, ज़ी न्यूज़, नेशन न्यूज़, रिपब्लिक भारत, रिपब्लिक टीवी, सुदर्शन न्यूज़ आदि के नाम प्रमुख हैं। उनका कहना है कि इन न्यूज़ चैनलों ने पत्रकारिता के उसूलों को तार-तार करते हुए मुसलमानों की छवि बिगाड़ने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता को भी नुक़सान पहुंचाने की कोशिश की थीं।
सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें सम्मानित कोर्ट से उम्मीद थी कि इस मामले में आज कोई फ़ैसला करेगी। उन्होंने कहा कि केबल टीवी नेटवर्क क़ानून की धारा 19 व 20 के तहत बेलगाम टीवी चैनल्स के ख़िलाफ़ कार्रवाई को लेकर जिस तरह केंद्र सरकार और प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है, उससे उम्मीद बंधी है। यह जमीयत उलमा-ए-हिन्द की कामयाबी का पहला चरण है।
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिन्द यह लड़ाई सिर्फ़ मुसलमानों की बुनियाद पर नहीं लड़ रही बल्कि ये लड़ाई क़ौमी एकता के लिये है जो कि हमारे संविधान की आत्मा है।
मौलाना मदनी ने मुस्लिम समाज द्वारा किये गये सेवाकार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि, मुस्लिम समाज के लोगों ने, रमज़ान के महीने में, अपनी भूख व प्यास की परवाह न करके, कड़ी धूप और झुलसा देने वाली गर्मी में, बेसहारा मज़दूरों और ग़रीबों की जगह-जगह मदद की है उसकी मिसाल आज़ादी के बाद के इतिहास में कम ही मिलती है।
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