मुस्लिम विरोध : तरक़्क़ी का शॉर्टकट रास्ता
न्यूज़-18 के एंकर अमीश देवगन ने अपनी हालिया विवादास्पद टिप्पणी के ज़रिए वही रास्ता चुना है, जिस पर उससे पहले कई पत्रकार चलकर अपने चैनल्स में ऊंची पोस्ट पर पहुंच चुके हैं। आज के ब्लॉग में हम इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करेंगे।
एक समय था, जब देश में सेक्यूलर पार्टियों की सरकारें हुआ करती थीं। उस समय धार्मिक कर्मकांड से सार्वजनिक तौर पर दूर दिखनेवाले वाले नेता सेक्यूलर कहलाते थे। उस समय अल्पसंख्यक समुदाय (मुस्लिम) के साथ हमदर्दी जताना एक फैशन था। ये अलग बात है कि खोखले वादों और हमदर्दी के चंद लफ़्ज़ों के सिवा मुस्लिम समाज को कुछ भी नहीं मिला। वो न सिर्फ़ हाशिये पर पड़ा रहा बल्कि साम्प्रदायिक दंगों की मार से निरंतर कमज़ोर भी हुआ। इसके बावजूद बीजेपी सेक्यूलर पार्टियों पर "अल्पसंख्यक तुष्टिकरण" के आरोप लगातार लगाती रही।
उस दौर में आगे बढ़ने के लिये सेक्यूलर नज़र आना एक अघोषित शर्त थी। वक़्त बदला, आज देश में हिंदुत्ववादी विचारधारा वाली पार्टी बीजेपी सत्ता में है। आज के दौर में आगे बढ़ने की अघोषित शर्त मुस्लिम विरोध और हिंदुत्ववादी नज़र आना है।
हाल ही में न्यूज़ 18 के एंकर अमीश देवगन ने जाने-माने सूफी संत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (रहमतुल्लाह अलैह) के बारे में जो अभद्र टिप्पणी की वो ज़बान की चूक नहीं बल्कि इरादतन की गई हरकत नज़र आती है।
अगर आप ग़ौर करें तो पाएंगे कि पिछले 6 सालों में, जिसने ख़ुद को जितना ज़्यादा हिंदुत्ववादी साबित करने की कोशिश की, वो उतना ज़्यादा आगे बढ़ा। कई नेताओं ने मुस्लिम विरोधी और हिंदुत्व समर्थक बयान देकर अपने "पुराने पाप" धोए, आज वे बीजेपी के स्टार लीडर बने हुए हैं। अगर आपको यह बात अतिश्योक्ति भरी लगती हो तो सिर्फ़ एक मिसाल देना काफ़ी होगा, कपिल मिश्रा।
ये वही कपिल मिश्रा हैं जिन्होंने आम आदमी पार्टी के विधायक की हैसियत से दिल्ली विधानसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे संगीन इल्ज़ाम लगाए थे। कपिल मिश्रा के उस बयान से सम्बंधित वीडियो क्लिप आजकल काफ़ी वायरल हो रही है। कपिल मिश्रा बाद में बीजेपी में शामिल हो गये, उसके बाद से मुस्लिम विरोधी बयानबाज़ी करना उनकी पहचान बन चुकी है। दिल्ली दंगों से पहले की गई उनकी भड़काऊ बयानबाज़ी पर कोई एक्शन नहीं लिया गया।
अमीश देवगन भी यही कर रहे हैं। जितना ज़्यादा वो मुस्लिम विरोधी बोलेंगे, जितना ज़्यादा उनका विरोध होगा, उतने ज़्यादा वे पॉपुलैरिटी की पायदान चढ़ते जाएंगे। बदक़िस्मती से आजकल यही चल रहा है। देवगन से पहले भी कई मिसालें मौजूद हैं। रोहित सरदाना पहले ज़ी न्यूज़ में थे, मुस्लिम विरोधी रिपोर्टिंग की सीढ़ी चढ़कर वे अब आजतक न्यूज़ चैनल में अंजना ओम कश्यप के बाद नम्बर दो की पोज़िशन पर हैं।
यही हाल श्वेता सिंह का है, जिन्होंने चीन द्वारा हाल ही में कई गई घुसपैठ के लिये सरकार को क्लीन चिट देते हुए सेना की ज़िम्मेदारी पर सवाल उठा दिये। कोई इनको टोकने वाला नहीं है। सोशल मीडिया पर नज़र डालें तो इन सभी पत्रकारों को राष्ट्रवादी होने का तमगा मिला हुआ है।
लेकिन अभी भी कुछ लोग हैं, जिन्होंने अपनी हक़बयानी की आदत छोड़ी नहीं है। अगले ब्लॉग में हम उनके बारे में चर्चा करेंगे, इंशाअल्लाह।
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