मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा जारी इक़रारनामा और हमारी ज़िम्मेदारी
निकाह को सादा और आसान बनाने के सिलसिले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस्लाहे मुआशरा कमेटी की जानिब से उर्दू ज़बान में एक इक़रारनामा जारी किया गया है। इसका हिंदी तर्जुमा कुछ लोगों ने थोड़ी-सी एडीटिंग के बाद सोशल मीडिया पर शेयर किया है।
हम इस ब्लॉग में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लेटरहैड पर जारी ऑरिजनल इक़रारनामा के साथ उसका सही तर्जुमा पेश कर रहे हैं। इसे पढ़िये और उसके बाद हमारी क्या ज़िम्मेदारी बनती है, उस पर ग़ौर कीजिएगा।
इक़रारनामा
हम इक़रार करते हैं कि,
01. निकाह को आसान बनाएंगे। बेजा रस्मों-रिवाज, ख़ास तरीक़े पर जहेज़ का मुतालबा, मंगनी, हल्दी, रतजगा से परहेज़ करेंगे।
02. बारात की रस्म को खत्म करते हुए मस्जिद में सादगी के साथ निकाह का तरीक़ा इख्तियार करेंगे।
03. निकाह की दावत का एहतिमाम सिर्फ दूसरे शहर से आए हुए मेहमान और घरवालों के लिए ही करेंगे।
04. निकाह में शिरकत करेंगे लेकिन निकाह की तक़रीब वाली दावते-तआम से एहतिजाज़ (विरोध) करेंगे।
05. दावते-वलीमा सादगी के साथ, दौलत की नुमाइश के बगैर और ग़रीबों का ख़याल रखते हुए करेंगे।
06. जिस महफ़िले-निकाह/दावते-वलीमा में सुन्नत और शरीअत का ख़याल रखा जाएगा उसकी ताईद व सताइश करेंगे। इसके बरख़िलाफ़ अमल पर भरपूर और वाज़ेह इज़हारे-नापसंदगी करेंगे।
07. महफ़िले-निकाह और दावते-वलीमा में आतिशबाज़ी, गाना-बाजा, वीडियोग्राफी, खेल तमाशे से बचते हुए क़ीमती रुक़आ (महंगे कार्ड्स) और क़ीमती स्टेज का इस्तेमाल नहीं करेंगे।
08. नौजवान अपने निकाह को सादगी के साथ कम ख़र्च में अंजाम देंगे, इसके बरख़िलाफ़ किसी बाहरी दबाव को क़तअन बर्दाश्त नहीं करेंगे।
09. निकाह के तयशुदा वक़्त की पाबंदी करेंगे।
10. निकाह के बाद सुन्नत और शरीअत के मुताबिक़ खुशगवार ज़िंदगी गुज़ारेंगे और अपनी बीवी के साथ बेहतर सलूक करके अल्लाह और उसके रसूल की रज़ामन्दी हासिल करेंगे।
11. औलाद की नेमत मयस्सर आने पर उसकी बेहतर तालीम और तरबियत का एहतिमाम् करेंगे और उसे सुन्नत ओर शरीअत का पाबंद बनाने के लिये हत्तल इम्कान कोशिश करेंगे।
तमाम बिरादराने-इस्लाम से दरख़्वास्त है कि आप ऊपर लिखी बातों का इक़रार करें और उन पर अमल का मिजाज़ बनाएं कि ये शरीअत की पसंदीदा और वक़्त की अहम ज़रूरत है।
इसके बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नौ ज़िम्मेदारान के इस इक़रारनामा पर दस्तख़त हैं।
■ अब हमारी ज़िम्मेदारी क्या है?
इस इक़रारनामा को शेयर करने के साथ, हम यह ऐलान करें कि मैं ..................., वल्द ..................., निवासी …................ अल्लाह को गवाह बनाकर इन तमाम बातों का इक़रार करता हूँ। आज के बाद (आइंदा) कभी मैं, मेरी बीवी, मेरे बच्चे बारात के खाने में शरीक नहीं होंगे। मेरी शादी/मेरे बच्चों की शादी में कोई ग़ैर-इस्लामी काम या रिवाज पर अमल नहीं किया जाएगा, इन् शा अल्लाह।
इस बात का इंतज़ार मत कीजिये कि पहले क़ौम की मीटिंग होगी, फिर उसमें प्रस्ताव पास होगा, फिर मैं अमल शुरू करूंगा। कहीं ऐसा न हो कि "पहले आप-पहले आप" करते-करते हमारी ज़िंदगी ही ख़त्म हो जाए।
अल्हम्दुलिल्लाह! पिछले 25 सालों से हम तमाम ग़ैर-इस्लामी रिवाजों और दावतों का बायकॉट कर रहे हैं। 2015 में हमने अपनी BSc. Nursing पास, बेटी मारिया ख़िलजी की शादी मस्जिद में की, बेटी को पहनने के कपड़े-ज़ेवर के अलावा कोई चीज़ नहीं दी और बारात समेत तमाम मेहमानों को मस्जिद से ही रुख़सत कर दिया। दो बेटों की शादी करनी बाक़ी है, उसे भी उसी तरह सुन्नते-रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर अमल करते हुए करेंगे, इन् शा अल्लाह!
अल्लाह से दुआ है कि मुझे भी सुन्नते-रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मरते दम तक क़ायम रखे और तमाम मुस्लिम भाई/बहनों को शरीअत का पाबंद बनाए, आमीन, तक़ब्बल या रब्बल आलमीन! इस ब्लॉग को शेयर करके समाज सुधार के मिशन में सहयोग करें।
वस्सलाम,
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप न. 9829346786
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