मुसलमानों को गाय पालना छोड़ना चाहिये
गाय उत्तर भारत में एक संवेदनशील धार्मिक मुद्दा है। आज़ादी के पहले से ही गौहत्या को लेकर साम्प्रदायिक दंगे होते रहे हैं। आज़ादी के बाद भी स्थिति वैसी ही है। इस मुद्दे पर कई मुसलमानों की लिंचिंग हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार के नये क़ानून यूपी गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 के बाद मुस्लिम विरोधी हिंसा की संभावना पहले से ज़्यादा हो गई है। पढ़िये पूरी रिपोर्ट।
ऊपर दिया गया कार्टून 2017 का है लेकिन आज भी प्रासंगिक है। लेटेस्ट जानकारी यह है कि उत्तर प्रदेश में गौहत्या या गोवंश की तस्करी के अपराधों में सज़ा अब और कड़ी होगी। यूपी गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 को मंज़ूरी दे दी गई है। इसके तहत,
◆ गौहत्या या गोवंश की तस्करी पर 10 साल तक की जेल व 5 लाख रुपये के जुर्माने की सज़ा हो सकेगी। इस अधिनियम के तहत दोबारा दोषी पाए जाने पर दोगुनी सज़ा होगी।
◆ मौजूदा क़ानून में गोवंश के वध या इस नीयत से तस्करी पर न्यूनतम सज़ा का प्रावधान नहीं है। अब गोकशी पर न्यूनतम 3 साल की सज़ा और न्यूनतम 3 लाख जुर्माना तय हो गया है।
◆ गोवंश के अंग-भंग करने पर भी कम से कम 1 साल की सजा और 1 लाख का न्यूनतम जुर्माना होगा।
◆ अगर तस्करी के लिए ले जाया जा रहा गोवंश ज़ब्त किया जाता है तो एक साल तक उसके भरण-पोषण के खर्च की वसूली भी अभियुक्त से ही की जाएगी।
◆ मौजूदा क़ानून में गोवंश या उसके मांस को ढोने वाले वाहनों, उनके मालिकों या चालकों पर कार्रवाई को लेकर कोई प्रावधान नहीं था। अब जब तक वाहन मालिक साबित नहीं कर देंगे कि उन्हें वाहन में प्रतिबंधित मांस की जानकारी नहीं थी, तब तक वे भी दोषी माने जाएंगे और वाहन सीज़ कर दिया जाएगा।
◆ इस अधिनियम के तहत सभी अपराध ग़ैर-ज़मानती होंगे।
◆ सरकार गौहत्या या गोतस्करी के अभियुक्त की सार्वजनिक फोटो भी लगाएगी। अभियुक्त की तस्वीर जिसे मोहल्ले में वह सामान्यता निवास करता हो वहां किसी महत्वपूर्ण स्थान पर चस्पा की जाएगी। ऐसे किसी सार्वजनिक स्थल पर भी लगाई जा सकती है जहां वहां नियामक संस्थाओं और अधिकारियों से खुद को छिपाता फिरता हो।
सरकार का कहना है कि कुल जिलों में गोकशी की बढ़ती घटनाओं और ज़मानत पर छूटे लोगों द्वारा फिर गोकशी करने की घटनाओं को देखते हुए क़ानून को सख्त किया गया है। इससे गोवंशीय पशुओं के संरक्षण में मदद मिलेगी।
मुसलमानों पर ख़तरा क्यों बढ़ गया है?
गाय को उत्तर भारतीय हिंदू समाज में आदरणीय माना जाता है। यह बात मुस्लिम समाज जानता है। गाय के नाम पर कितने इंसानों को मारा गया, यह बात भी याद रखनी चाहिये। अप्रैल 2017 में जब अलवर (राजस्थान) में गौतस्करी के आरोप में पहलू ख़ान की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी तब उत्तर प्रदेश के क़द्दावर मुस्लिम नेता, आज़म ख़ान ने शंकराचार्य द्वारा भेंट की गई गाय वापस लौटा दी थी।
शंकराचार्य को लिखे पत्र में उन्होंने कहा था, मुसलमान असुरक्षा के माहौल में जी रहे हैं। कोई भी स्वयंभू गौरक्षक मुझे या मुस्लिम समाज को बदनाम करने के लिये इस गाय को नुक़सान पहुंचा सकता है।
समाजवादी पार्टी के बड़े नेता और पूर्व मंत्री आज़म ख़ान ने पहलू ख़ान की हत्या पर टिप्पणी करते हुए कहा था, यह हमला मुस्लिमों के लिये एक संदेश है कि वे गाय न पालें।
पिछले कुछ सालों में गौरक्षा के नाम पर मुसलमानों की मोब लिंचिंग की कई वारदातें हुईं। जुलाई 2017 में बीबीसी की वेबसाइट पर छपा यह कार्टून उस डर की कहानी कह देता है।
अब जबकि उत्तर प्रदेश में गौहत्या रोकने के लिये लाया गया क़ानून पहले से ज़्यादा सख़्त है तो मुसलमानों को चिंतित होना लाज़मी है। अंग्रेज़ी कहावत है, Prevention is better than Cure (बचाव करना, इलाज करने से ज़्यादा बेहतर है)।
वैसे भी गाय पालना आज की तारीख़ में घाटे का सौदा है। बांझ गाय व नर बछड़े (बैल) को बेच नहीं सकते, आवारा छोड़ भी नहीं सकते। इसलिये दूध बेचने वाले मुसलमानों के लिये बेहतर यही है कि वे गाय की बजाय भैंस पालें। बांझ भैंस व भैंसा बेचा जा सकता है। उनके वध और गोश्त बिक्री पर कोई पाबंदी भी नहीं है।
इसलिये हमारी राय यही है कि मुसलमान, हिकमत (तत्वदर्शिता) से काम ले। गाय पालने का धंधा हिंदू भाइयों के लिये छोड़ दे। मुस्लिम टेम्पो और ट्रक मालिक गायों का किसी भी क़ीमत पर परिवहन (ट्रांसपोर्टिंग) भी न करें। गाय हिंदू समाज के लिये देवी है, माता है, आदरणीय है, इसलिये उन्हीं को उसका समुचित ख़याल रखने दें। यक़ीन जानिये, अगर मुसलमान ऐसा कर गुज़रते हैं तो साम्प्रदायिक तनाव का एक बहुत बड़ा मुद्दा ख़त्म हो जाएगा।
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