मुर्गी बदनाम हुई कोरोना तेरे कारण
हर तरफ़ कोरोना के बारे में चर्चा है। हर कोई इसका रोना रो रहा है। लेकिन कोरोना की सबसे बड़ी मार चिकन सेलर्स पर पड़ी है।
एक बात ग़ौर करने की है। जब कभी किसी वायरस का हल्ला मचता है, उसके फैलने का इल्ज़ाम बेचारे चिकन पर आ जाता है। आपको याद होगा दो-तीन साल पहले स्वाइन फ्लू फैलाने की बदनामी भी चिकन के सर पर मढ़ी गई थी।
इस साल तो हद हो गई। झारखण्ड में लोगों ने कोरोना के डर से चिकन मारकर सड़कों पर फैंक दिये। देश के कई शहरों में चिकन 50-60 रुपये किलो बिकने की ख़बरें आ रही है। जोधपुर में भी कुछ लोग इस भाव में बेच रहे हैं। क्या वाक़ई चिकन से कोरोना फैलने का अंदेशा है या इसके पीछे कोई और हिडन फैक्टर काम कर रहा है। आइये विचार करते हैं।
01. स्वाइन फ्लू हो या कोरोना इनके लक्षण एक जैसे हैं, जैसे नाक बहना, छींके आना, सरदर्द, बुख़ार होना आदि। अगर आप ग़ौर करें तो ये सब ज़ुकाम, इन्फ्लूएंजा बीमारी के लक्षण हैं। हम यूँ भी कह सकते हैं कि स्वाइन फ्लू और कोरोना का संबंध ज़ुकाम के खानदान से है।
02. आयुर्वेद और यूनानी पैथी का कहना है कि ज़ुकाम ठंडी तासीर के कारण होता है। वैद्य-हकीमों के अनुसार ऐसी बीमारियों में गर्म तासीर की दवा देनी चाहिए। टीबी के इलाज में भी मरीज़ को गोश्त, अंडा, चिकन, मछली खाने को कहा जाता है। आपको मालूम होना चाहिए कि ये सब चीज़ें प्रोटीन का भंडार होने के साथ-साथ गर्म तासीर की हैं।
03. क्या आपने ग़ौर किया कि जब तक ठंड ज़्यादा थी तब तक स्वाइन फ्लू क़हर ढा रहा था। जैसे ही गर्मी का मौसम आया, उसका आज़र ख़त्म हो गया। कुछ दिन बाद आप देखेंगे कि कोरोना के मामले में भी ऐसा ही होगा।
04. महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कोरोना जैसी ठंडी तासीर के ज़रिए फैलने वाली बीमारी को चिकन जैसी गर्म तासीर वाली डाइट नुक़सान कैसे पहुंचा सकती है?
इसका मतलब कुछ-कुछ लोचा है।
व्यापार की दुनिया में डिमांड का संबंध प्रोडक्शन से है। जिस चीज़ की डिमांड घटती है, उसका प्रोडक्शन कम होता है। एक मिसाल से बात समझिए सर्दी ख़त्म होते ही गर्म कपड़ों का उत्पादन बंद हो जाता है। कोरोना के डर से चिकन की डिमांड कम हो रही है, इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा यानी चिकन हैचरीज़ कुछ समय के लिए चिकन का उत्पादन बंद कर सकती है।
40 दिन में एक ब्रोइलर चिकन तैयार होता है। अगर 2 से 3 रुपए रोज़ की उसकी ख़ुराक़ मानी जाए तो 40 दिन में वो 80 से 120 रुपए का दाना खा जाता है। चिकन हैचरीज़ कब तक घाटा खाकर 30-40 रुपये में तैयार ब्रोइलर बेचेगी? अगर यही हाल रहा तो उन्हें उत्पादन बंद करना ही होगा।
अप्रैल से गर्मी का असर बढ़ने लगेगा, उसी के साथ कोरोना जैसी कोल्ड डिज़ीज़ (शीतजनित बीमारियां) कंट्रोल में आ जाएगी। नॉन-वेज खाने वाले फिर चिकन की डिमांड करेंगे। उस वक़्त चिकन कहाँ से आएगा?
अब हम हिडन फैक्टर की चर्चा करते हैं। पिछले दिनों अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत आए थे। भारत सरकार द्वारा पलक-पाँवड़े बिछाने के बावजूद ट्रंप ने कोई व्यापार समझौता नहीं किया। असल बात यह है व्यापार-समझौते में कुछ टेक्निकल कारणों से सहमति नहीं बन पाई। हम आपको बताते हैं।
01. डोनाल्ड ट्रंप भारत को डेयरी प्रोडक्ट बेचने का समझौता करना चाहते थे। भारत की आपत्ति यह थी कि अमेरिका में गायों को मांसयुक्त पशु आहार दिया जाता है। भारतीय लोगों की धार्मिक आस्था के कारण भारत ने डेयरी प्रोडक्ट आयात को मंज़ूरी नहीं दी।
02. अमेरिकी लोगों को चिकन ब्रेस्ट तो ख़ूब पसंद है लेकिन उन्हें चिकन लेग पीस पसंद नहीं है, इसलिए वो वहां रिजेक्ट मैटीरियल समझा जाता है। चिकन लेग पीस भारत में ज़्यादा शौक़ से खाया जाता है। डोनाल्ड ट्रंप चाहते थे कि भारत कम से कम चिकन लेग पीस आयात को मंज़ूरी दे दे। भारत सरकार देसी चिकन इंडस्ट्री कारोबारियों के दबाव के कारण इसके लिए भी तैयार नहीं हुई। भारतीय चिकन इंडस्ट्री में ग़ैर-मुस्लिम कारोबारी भी बड़ी तादाद में हैं।
अब जब कोरोना-फोबिया के कारण भारतीय चिकन इंडस्ट्री बर्बादी के कगार पर खड़ी है तो मोदी सरकार के लिए अपने दोस्त अमेरिका को ख़ुश करने का अवसर पैदा हो गया है।
इसलिए हमारा मानना है कि कोरोना का डर दिखाकर मुर्गी (चिकन) को बेवजह बदनाम किया जा रहा है। अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगे तो इसे शेयर करके दूसरों तक पहुंचाने में हमारी मदद करें।
Leave a comment.