मौजूदा हालात और नमाज़े-तरावीह
25 अप्रैल 2020 को हमारे देश में रमज़ान का पहला रोज़ा होगा। 24 अप्रैल से नमाज़े-तरावीह शुरू हो जाएगी। ऐसे में सोशल मीडिया पर तरावीह की नमाज़ को लेकर कई किस्म की बातें चल रही हैं। आज के इस ब्लॉग में इस संबंध में हम काफ़ी अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे, इंशाअल्लाह।
एक भाई ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा, जिसकी इमेज यहाँ आप देख रहे हैं।
इस पोस्ट को कई लोगों ने शेयर किया, इसी तरह की और भी कई पोस्ट्स हैं जो हम तक भी पहुंची हैं। इसलिये ग़लतफ़हमियों और मनमाने फतवों से बचने के लिये कुछ ज़रूरी बातें समझ लेना बेहतर होगा।
तमाम लोग यह समझ लें कि इमामत ऑनलाइन नहीं हो सकती। मजबूरी हालात में शरीयत ने जो छूट दी है, उस पर अमल करना चाहिये। जब अल्लाह तआला ऐसी हालत में पूरा सवाब दे रहा है तो फिर "मनमाने मुफ़्ती" बनकर "ऑनलाइन इमामत के फतवे देने" की क्या ज़रूरत है? अल्लाह तआला अपने बन्दों पर उनकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डालता।
यह भी याद रखना चाहिए कि हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की क़ौम ने शरीयत के मामले में मनमानी पंचायती की तो अल्लाह तआला ने उनको ज़लीलो-ख्वार कर दिया।
अब आइये, हम कुछ अहम बातें समझ लें,
■ कौनसी नमाज़ें जमाअत के साथ मस्जिद में पढ़ना ज़रूरी हैं?
01. फ़र्ज़ नमाज़ें : हर मुसलमान पर पाँच वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ है। हर बालिग़ मर्द पर इन पाँचों वक़्त की फ़र्ज़ नमाज़ों को मस्जिद में पढ़ना लाज़मी है। बिना किसी शरई उज्र के इन नमाज़ों को घर में पढ़ने पर भी अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सख़्त नाराज़गी का इज़हार फ़रमाया।
मस्जिद में अदा की गई फ़र्ज़ नमाज़ों का सवाब, घर में अदा की गई फ़र्ज़ नमाज़ के मुक़ाबले में 25 गुना ज़्यादा है। हवाला : बुख़ारी हदीस न. 645, मुस्लिम हदीस न. 650
इतने ताकीदी हुक्म वाली फ़र्ज़ नमाज़ इन दिनों पूरी दुनिया में घरों में अदा की जा रही है क्योंकि वबा (महामारी) की सूरत में इसका हुक्म शरीयत में मौजूद है। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने तेज़ बरसात या कड़ाके की सर्दी के दौरान भी फ़र्ज़ नमाज़ घरों में पढ़ने की इजाज़त दी है।
इसी मसले के मद्देनज़र, कोरोना महामारी की वजह से तमाम मसलकों के उलमा ने फ़र्ज़ नमाज़ें घर पर अदा करने के लिये अपील जारी की हैं। मस्जिद आबाद रहे इसके लिये 4-5 लोगों की जमाअत हो रही है।
02. जुमा की नमाज़ : यह नमाज़ इतनी अहम है कि इसके लिये क़ुरआन करीम में, सूरह जुमुआ में ताकीद के साथ हुक्म आया है। यही नहीं बिना किसी शरई उज्र के लगातार तीन जुमा की नमाज़ न पढ़ने वालों को भी कड़ी चेतावनी शरीयत में दी गई है।
लेकिन अगर कहीं कोई महामारी फैली हुई हो तो जुमा की नमाज़ का ताकीदी हुक्म माफ़ है और घरों में जुहर की नमाज़ पढ़ने की रुख़सत है। इसी तरह अगर कोई इंसान सफ़र में हो तो उसे भी जुमा की जगह ज़ुहर की नमाज़ पढ़ने की छूट है। कोरोना महामारी की वजह से तमाम मसलकों के उलमा ने जुमा की नमाज़ की जगह घरों में ज़ुहर पढ़ने की अपील भी जारी की हैं।
■ सुन्नत व नफ़िल नमाज़ों के बारे में शरीयत का हुक्म क्या है?
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का इरशादे-गिरामी है कि अपने घरों को क़ब्रस्तान न बनाओ यानी कुछ नमाज़ें घरों में अदा करो। ये नमाज़ें कौनसी हैं और उनको घरों में पढ़ने का सवाब कितना है, इसके लिये इस हदीस को पढ़ लें।
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया, किसी इंसान के लिये, फ़र्ज़ नमाज़ के सिवा, बाक़ी नमाज़ें घर में पढ़ना, मेरी इस मस्जिद (यानी मस्जिदे नबवी) में नमाज़ पढ़ने से ज़्यादा अफ़ज़ल है। (सुनन अबू दाऊद : 1044)
एक अन्य हदीस में घरों में पढ़ी जाने वाली सुन्नत-नफ़िल नमाज़ का सवाब 25 गुना ज़्यादा बताया गया है।
■ नमाज़े-तरावीह क्या है?
यह एक सुन्नत है। तरावीह, फ़र्ज़ नमाज़ नहीं है। इसे घरों में अदा किया जाना ज़्यादा बेहतर है। इसके साथ ही एक सवाल मन में उठना लाज़मी है कि जब यह नमाज़, फ़र्ज़ नहीं है तो फिर पूरी दुनिया में, हर रमज़ान में, इसे जमाअत के साथ क्यों पढ़ा जाता है?
असल बात यह है कि इस नमाज़ के दौरान पूरा क़ुरआन पढ़ा जाता है। क़ुरआन को सुनना भी एक बहुत बड़ी नेकी है। क़ुरआन की तिलावत को ग़ौर से सुनने वाले पर अल्लाह तआला ने रहम फ़रमाने का वादा किया है। नमाज़े-तरावीह की जमाअत के दौरान लोग क़ुरआन सुनते हैं। चूंकि हर कोई हाफ़िज़े-क़ुरआन नहीं होता इसलिये लोगों की सहूलियत के लिये, बा-जमाअत नमाज़े-तरावीह का एहतिमाम किया गया।
जैसा कि आप ऊपर पढ़ चुके हैं कि संगीन मजबूरी की हालत में फ़र्ज़ नमाज़ें भी घर पर पढ़ी जा सकती हैं। इस समय पूरी दुनिया में कोरोना के रूप में एक महामारी फैली है तो ऐसे हालात में अल्लाह तआला से रहम करने की दुआएं मांगते हुए, तरावीह की नमाज़ घरों पर अदा करना ही हमारे लिये ज़्यादा बेहतर है।
अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में अपनी इताअत के बाद अपने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इताअत का हुक्म दिया और साहिबे-इल्म लोगों की इताअत का भी हुक्म दिया। हमारे लिये इस वक़्त इतना समझ लेना काफ़ी है कि हम अपने उलमा-ए-किराम की बात मानें और नज़्म व ज़ब्त (अनुशासन) में रहें।
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