मोदी के “मुफ़्त अनाज” के पीछे की कहानी

यह आर्टिकल श्याम मीरा सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर 8 जून 2021 को पोस्ट किया। इस लेख को पूरा पढ़ियेगा, कई अहम जानकारियां आपके सामने आएंगी। (बिलाल ख़िलजी, वेब एडिटर)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल (7 जून 2021) को एनाउंस किया कि आने वाली दीवाली तक “मुफ़्त अनाज दिया जाएगा। आपको बता दूँ कि जिस क़ानून के तहत ये “मुफ़्त अनाज” दिया जा रहा है, वो Food Security Act, 2013 के तहत दिया जाता है। तब यानी 2013 में काँग्रेस की सरकार इसे लेकर आई थी।

खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 का गजट नोटिफिकेशन

इसी क़ानून के ख़िलाफ़ तरह-तरह के ग़लत फ़ैक्ट देकर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने इस क़ानून का विरोध किया था। मोदी ने उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र भी लिखा था। इससे संबंधित ढेरों खबरें आपको गूगल पर मिल जाएँगी।

उस समय भाजपा ने 80 करोड़ भारतीयों को अनाज देने वाली इस योजना का विरोध करते हुए पता है क्या कहा था? भाजपा ने कहा था कि ये “Food Security BILL नहीं है ये “Vote Security Bill है। उस समय काशी से चुनाव लड़ने वाले दमदार नेता मुरली मनोहर जोशी जिन्हें मोदी ने फुस्स कर दिया, उन्होंने 27 अगस्त के दिन देश की संसद में इस क़ानून का पुरज़ोर विरोध किया था। चूँकि चुनाव सर पर थे इसलिए भाजपा ने इस क़ानून पर चुप्पी लगाना शुरू कर दिया।

भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार (हिमांचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री) ने कहा था कि अभी हमें “Anti Poor (ग़रीब विरोधी)” का नाम दे दिया जाएगा इसलिए भाजपा अभी कुछ नहीं कह रही लेकिन हम जब सरकार में आएँगे तो इस क़ानून को बदलेंगे। भाजपा नेता शांता कुमार ने कहा था कि 80 करोड़ जनता बहुत अधिक है, इतनी जनता को राशन नहीं दिया जाना चाहिये। हम जब सरकार में आएँगे तो इसे घटाकर 40% करके इसमें बैलेंस बनाएँगे, इतनी बड़ी योजना से देश का बजट ख़राब होगा।

मुरली मनोहर जोशी संसद में पूछते रहे कि इतने लोगों को कैसे अनाज दे पाओगे? कहाँ से दोगे? आज के उपराष्ट्रपति और तत्कालीन भाजपा नेता वैंकैया नायडू ने तो इसे “Gimmick” करार दिया था और कहा था कि इससे जनता को कोई लाभ नहीं होगा।

उस समय के भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने तो भी कहा था कि ये क़ानून देश के लिए Financial Burden (आर्थिक बोझ) साबित होगा। इतने बड़े स्तर पर ग़रीबों को अनाज देना होगा तो देश को अनाज आयात करना पड़ेगा।

लेकिन इन तमाम आरोपों और शंकाओं के बीच भी सोनिया गांधी इस क़ानून को पास कराने के लिए अड़ी रहीं। राजनाथ सिंह ने तो सदन में ये भी कहा था कि इस क़ानून को पास कराने के लिए काँग्रेस पर सोनिया गांधी का दबाव है। राजनाथ सिंह के स्टेटमेंट पर ही विश्वास करें तो इस क़ानून को बनाए जाने का क्रेडिट सोनिया गांधी को जाता है, मगर आज राशन पहुँचाने का क्रेडिट कौन ले रहा है? इस सवाल का जवाब खुद ढूँढिये।

2013 के बाद से आपके गाँव-गाँव में राशन दिया जाने लगा, मगर किसी ने आपको अपमानित करते हुए नहीं कहा कि आपको “मुफ़्त का राशन” दिया जा रहा है क्योंकि ये आपके टैक्स के पैसे से ही आपको दिया जा रहा है तो मुफ़्त का कैसे हुआ?

काँग्रेस ने इस क़ानून का नाम भी “Right to Food” रखा यानी ये “खाना” आपका अधिकार है, ये आपके लिए भीख नहीं है। ये वैसे ही आपका राइट है, जैसे आपके बोलने का और जीने का राइट है। पहले भी राशन दिया जाता था मगर दो से तीन प्रतिशत लोगों को, 2013 में इस अधिकार को बढ़ाकर 67% भारतीयों को दिया जाने लगा। पहले से लेकर अब तक इसे 1-2 रुपए किलो में ही दिया जाता था।

काँग्रेस की सरकार गई तो भाजपा के टाईम पर भी दिया जाना ही था। अब कोविड आया तो मोदी ने उसी राशन को जो कि आपको पहले ही दिया जा रहा था उसे “मुफ़्त का राशन” कहना शुरू कर दिया।

इस आर्टिकल में व्यक्त विचार सोशल मीडिया एक्टिविस्ट श्याम मीरा सिंह (Shyam Meera Singh) के हैं। आप अपने कमेंट्स के ज़रिए सहमति या असहमति जता सकते हैं।

बिलाल ख़िलजी
वेब एडिटर आदर्श मुस्लिम

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