माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है?

29 मार्च 2020 की पोस्ट क्या लॉकडाउन से कोरोना कंट्रोल हो सकता है? में हमने ज़ूलोजी की किताब के हवाले से वायरस और उनकी प्रकृति के बारे में जानकारी दी थी और साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली (Immunity System) तथा टीकाकरण (Vaccination) के बारे में भी बताया था। आज की पोस्ट में हम इंसान की क्या हैसियत है, उसके बारे में चर्चा करेंगे ताकि हमें इस सच्चाई का एहसास हो कि हम अपने ख़ालिक़ (Creator, सृष्टा), मालिक (Lord, स्वामी), रब (Provider of All Needs पालनहार) की शक्तियों के आगे कितने बेबस हैं?

वायरस, एक निर्जीव कण (Non-Living Particle) होता है लेकिन शरीर में जाने के बाद सजीव कोशिकाओं (Living Cells) के सम्पर्क में आने के बाद तेज़ी से अपनी रेप्लिका यानी प्रतिलिपियाँ बनाता है और शरीर के किसी ख़ास अंग की कार्यप्रणाली को ठप्प कर देता है।

हम एक महीने से कह रहे हैं कि कोरोना स्वार्थी देशों की लैब्स में बनाया गया एक जैविक हथियार (Biological Weapon) है। अब जो रिपोर्ट्स सामने आ रही है वो उसी थ्योरी की पुष्टि कर रही जो हमने पेश की थी।

बहरहाल! कोरोना नाम के एक अति-सूक्ष्म वायरस ने इंसान को उसकी हैसियत बता दी है। क़रीब 80 साल पहले शाइर अकबर इलाहाबादी ने कहा था,
चाँद पे जा पहुँचो या सुरैया को छू लो,
मगर किसी क़दर न अपनी औक़ात को भूलो।

सुरैया रात को आसमान में नज़र आने वाले सात तारों के उस समूह को कहते हैं, जिसे हिंदी में सप्तऋषि कहा जाता है। शे'र का संदेश एकदम साफ़ है कि इंसान चाहे जितनी तरक़्क़ी कर ले और कितनी ही ऊंची उड़ान भर ले लेकिन उसकी हैसियत का एहसास कराने के लिये एक बारीक-सा वायरस ही काफ़ी है।

पूरे देश में और दुनिया के कई हिस्सों में लोग अपने-अपने घरों में क़ैद हैं। उनके पास इस वक़्त कोई काम नहीं है और भरपूर फुर्सत है। क्या अब भी वो वक़्त नहीं आया कि इंसान अपने वजूद पर ग़ौरो-फ़िक्र करे?

अल्लाह तआला ने पानी के एक क़तरे से हर जीव की रचना की, जिसमें इंसान भी शामिल है। याद रखिये कि अल्लाह के पास इस बात की मुकम्मल क़ुदरत (सम्पूर्ण क्षमता) मौजूद है कि वो एक बहुत ही बारीक ज़र्रे (अतिसूक्ष्म कण) के ज़रिए इंसान को हलाक कर दे। कोरोना के क़हर ने एक बार फिर हमें इस बात का एहसास कराया है।

सोचिये, विचार कीजिये, गहन चिंतन-मनन कीजिये ........

01. अपने ख़ालिक़, मालिक व पालनहार को पहचानिये। कौन है वो? वो अपने बंदो से क्या चाहता है?

02. क्या हम सिर्फ़ उसी की इबादत करते हैं या उसकी इबादत में किसी और को भी पार्टनर समझते हैं?

03. उसने अपने बंदों की हिदायत और रहनुमाई के लिये जो संदेश अवतरित किये, उन पर हम कितना अमल करते हैं?

04. उसने जो काम करने का हुक्म दिया, या जिन चीज़ों का उपयोग करने की इजाज़त दी क्या हम उसका पालन करते हैं?

05. जिन कामों से उसने रोका, क्या हम रुकते हैं? जिन चीज़ों को उसने हराम (वर्जित) कहा, क्या हम उनसे बचते हैं?

इन सवालों के सही जवाब समझने के लिये हमें चिंतन-मनन करना है। उसके बाद हम समझ पाएंगे कि जितनी भी मुसीबतों का हम सामना कर रहे हैं वो इंसानों की बुरी करतूतों का नतीजा है। कुछ स्वार्थी इंसानों ने सत्ता और दौलत पाने की अपनी हवस को पूरा करने के लिये पूरी इंसानियत को ख़तरे में डाल दिया है।

याद रखिये! हमारा यह दिमाग़ बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान तलाश कर सकता है। हमारा शरीर ख़तरनाक से ख़तरनाक वाइरस को ख़त्म करने वाली एंटी-बॉडीज़ बना सकता है। लेकिन ऐसा तभी होगा, जब अल्लाह चाहेगा। ये दिमाग़ अल्लाह के हुक्म का ग़ुलाम है। जिस्म एक-एक ज़र्रा अल्लाह की मर्ज़ी के मातहत (अधीन) है।

लॉकडाउन की इस क़ैद के दौरान मिले ख़ाली वक़्त का सही इस्तेमाल यही हो सकता है कि हम अपने पालनहार की शरण में ख़ुद को सौंप दें।

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