लॉकडाउन ने क्या-कुछ सिखाया है?
आज की यह पोस्ट कुछ विचारणीय मुद्दों की ओर तवज्जोह दिलाने के लिये लिखी गई है। इसके बाद हम कोरोना इफेक्ट्स टाइटल से एक लेख सीरिज़ शुरू करेंगे ताकि हम बिन मांगे दी गई इस फ़ुर्सत में अपनी कुछ ख़ामियों पर विचार सकें। इसके साथ ही हम यह भी जान सकें कि लॉकडाउन ख़त्म हो जाने के बाद, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक और पारिवारिक मामलों में क्या-क्या संकट या परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं?
■ लॉकडाउन के दौरान लोगों की दिनचर्या क्या है?
01. ज़्यादातर लोग टीवी देखते हैं, जहाँ न्यूज़ एंकर पत्रकारिता के नियमों को भुलाकर, टार्गेटेड मिसाइल की तरह, एक समाज के ख़िलाफ़ नफ़रत के गोले दाग रहे हैं। अभी कुछ सुधार दिखाई दे रहा है क्योंकि मीडिया से जुड़े कुछ लोगों के ख़िलाफ़ मुक़द्दमे दर्ज कराए गये हैं।
02. जो समाज निशाने पर है, उसके ज़िम्मेदार लोग सफ़ाई देने में लगे हैं। उनका ज़्यादातर वक़्त इसी काम में बीत रहा है।
03. सोशल मीडिया का अनसोशल इस्तेमाल हो रहा है। एक धर्म के उन्मादी लोग दूसरे धर्म के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियों में वक़्त बर्बाद कर रहे हैं। प्रतिक्रिया में दूसरे समाज के जज़्बाती लोग ईंट का जवाब पत्थर वाले कमेंट्स रहे हैं। दोनों समाज के कुछ लोग इस वजह से पुलिसिया कार्रवाई झेल रहे हैं।
04. हर ख़बर का साम्प्रदायिक एंगल तलाशा जा रहा है। अगर किसी हिंदू साधु की हत्या हुई तो सीधा इल्ज़ाम किसी मुस्लिम पर डालने जैसी उन्मादी कार्रवाई भी मीडिया के ज़रिए करने की कोशिश की गई। कुछ लोग ख़ुश हो रहे हैं उनकी नज़र में मीडिया सही रिपोर्टिंग कर रहा है। वो लोग इस तथाकथित राष्ट्रवादी मीडिया के बचाव में अपनी ताक़त झौंक रहे हैं। कुछ लोग नफ़रतभरी पोस्ट्स के ज़रिए लोगों के दिमाग़ में नकारात्मक विचार भरने की कोशिश कर रहे हैं। अजीब अफरा-तफरी का आलम है।
05. एक चुने हुए सांसद ने अरब की औरतों की बेडरूम लाइफ़ पर टिप्पणी की। जिन अरब मुस्लिम देशों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने-अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया है, उन देशों में भारत की बेइज़्ज़ती हुई। वहां से कामगारों को निकालने की बात हुई। आख़िर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को डैमेज कण्ट्रोल के लिये मुस्लिम हमदर्दी वाला बयान देना पड़ा।
06. एक और ट्रेंड देखने को मिल रहा है। कुछ लोग नफरत की जलती आग में अपने स्वार्थ की रोटियां सेंक रहे हैं। ऐसे पुरफितन माहौल में भी मसलकी-पंथिक झगड़े खुलकर सामने आ रहे हैं। ऐसे लोग, अपने विरोधी ग्रुप को मुसीबत में घिरा देखकर, अपने कलेजे में ठंडक महसूस कर रहे हैं और मौक़ा मिलते ही उसके ख़िलाफ़ बयानबाज़ी करने से नहीं चूक रहे हैं।
07. वहीं कुछ लोग यूट्यूब, नेटफ्लिक्स, एमएक्स प्लेयर आदि पर ख़ूब फिल्में और वेबसीरिज़ देख-देखकर अपने समय का दुरुपयोग कर रहे हैं। इन पर ज़्यादातर ऐसा कण्टेन्ट है जो हिंसा, नफ़रत, अश्लीलता और नकारात्मकता परोस रहा है।
08. इन सब के बीच, जिनको घर में टिककर रहने की आदत नहीं है, उनको घर की दरो-दीवारें जैसे काट रही है। वो फ़िल्म कालिया के अमिताभ की तरह तोड़के पिंजरा, पंछी की तरह, उड़ जाना चाहते हैं। ऐसे लोगों से पुलिस-प्रशासन परेशान है।
09. यह सब हालात देखकर बहुत से उदारवादी और सही मायनों में देशप्रेमी लोग मन ही मन कुढ़ रहे हैं। कुछ लोग नफ़रत की आग बुझाने में अपनी तरफ़ से कोशिश भी कर रहे हैं।
1 मई को पिछले कई बरसों से मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है, आज कितने लोगों को मज़दूर दिवस याद रहा? यक़ीन जानिये, आने वाला समय, बीते दिनों जैसा खुशगवार नहीं होने वाला है, ख़ास तौर पर मज़दूरों के लिये। लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद पूरी दुनिया को कई अप्रिय परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
कल 2 मई से हम जो लेख सीरिज़ शुरू कर रहे हैं, उसमें हर दिन एक ख़ास मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। अल्टरनेट मीडिया को मज़बूती देने के लिये हमारे साथ बने रहें।
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