लॉक डाउन मैसेज-2 : संयुक्त परिवार की अहमियत

इस सीरिज़ के पहले पार्ट में आपने पढ़ा कि घर-गृहस्थी की बुनियादी ज़रूरतें बहुत थोड़ी हैं। आज के ब्लॉग में सिंगल फैमिली की दिक़्क़तों पर विचार करते हुए, हम संयुक्त परिवार की अहमियत पर चर्चा करेंगे, इंशाअल्लाह।


मॉलिक्यूलर फैमिली या एकल परिवार कई लोगों को अच्छा लगता है, ख़ास तौर पर औरतों को। एकल परिवार में उन्हें अपने तरीक़े से जीने की आज़ादी मिलती है। कोई रोक-टोक नहीं, कोई कहने-सुनने वाला नहीं। जो जी में आया, पकाया-खाया, जितनी देर चाहा, सोये-जागे। घूमने-फिरने की आज़ादी, शॉपिंग की आज़ादी। लेकिन जैसे ही लॉक डाउन हुआ, हर किस्म की आज़ादी छिन गई।

संयुक्त परिवार में थोड़ी बंदिशें ज़रूर होती हैं लेकिन उसके फ़ायदे भी अनेक हैं।

■ संयुक्त परिवार की अहमियत


01. ख़र्च में कमी : एक बाप के दो बेटे हैं। दोनों शादीशुदा और परिवार वाले। अगर ये संयुक्त परिवार में रहें तो काफ़ी कम ख़र्च में घर-ख़र्च चल जाता है। लेकिन जैसे ही दोनों बेटे अलग-अलग रहने लगते हैं तो वही घर-ख़र्च दोगुना हो जाता है, यानी आय तो बढ़ी नहीं, बल्कि ख़र्च डबल हो गया।

02. मंदी का असर कम : संयुक्त परिवार में किसी कारण से किसी एक बेटे की आमदनी कम हो जाए तो भी उसके परिवार के गुज़र-बसर में कोई मुश्किल पेश नहीं आती। इस लॉक डाउन के बाद पूरी दुनिया को ज़बरदस्त मंदी का सामना करना पड़ेगा। कई एकल परिवार वालों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।


03. काम का बंटवारा : एकल परिवार में, घर की सारी ज़रूरत पूरी करने की ज़िम्मेदारी एक ही आदमी पर होती है। कमाने के साथ-साथ घर चलाने का बोझ भी उसी को उठाना होता है। उसकी दिनचर्या इतनी टाइट हो जाती है कि उसके पास, अपने वजूद पर ग़ौर करने का भी वक़्त नहीं बचता। अल्लाह ने उसकी तख़लीक़ क्यों की? अल्लाह का उस पर क्या हक़ है? दूसरे इंसानों के क्या हक़ हैं?

इन सबके बारे में वो सोच भी नहीं पाता और इसी तरह कोल्हू के बैल की तरह ज़िंदगी गुज़ारकर वो एक दिन दुनिया से चला जाता है। जबकि संयुक्त परिवार में कामकाज में एक-दूसरे की मदद मिलने के कारण, काफ़ी फुर्सत भी मिलती है। इंसान अल्लाह की इबादत भी आसानी से कर पाता है।

अभी हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार एकल परिवार में रहने वाले 37.15% पुरुषों व 40% महिलाओं की सेहत ख़राब पाई गई।


04. टेंशन से राहत : एकल परिवार में घर-ख़र्च, बच्चों की पढ़ाई, बीमारियों का इलाज जैसी अनेक परिस्थितियों से अकेले गुज़रना पड़ता है। कभी किसी वजह से कोई टेंशन की स्थिति पैदा हो जाए तो कोई दिलासा देने वाला भी नहीं होता। संयुक्त परिवार में इस मामले में भी राहत मिलती है।

05. परिवार की चिंता कम : एकल परिवार वाले व्यक्ति को काम से फ़ारिग होते ही हर हाल में अपने घर पहुंचना होता है, ख़ास तौर पर रात के वक़्त, जब उसकी बीवी-बच्चे अकेले में ख़ुद को असुरक्षित महसूस करते हैं। संयुक्त परिवार में रहने वाला व्यक्ति इस चिंता से बेफ़िक्र होता है।

अल्लाह न करे अगर किसी मियां-बीवी के बीच तलाक़ हो जाए तो एकल परिवार में बच्चों की परवरिश एक बड़ी समस्या होती है जबकि संयुक्त परिवार में बच्चों को कोई परेशानी नहीं होती।

लॉक डाउन ख़त्म होने के बाद, अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में काफ़ी वक़्त लगेगा। एकल परिवारों को हो सकता है काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़े। इसलिये हमारा यही कहना है कि संयुक्त परिवार की अहमियत को समझिये। यह लॉक डाउन का दूसरा मैसेज है। अगली कड़ी में फिर किसी विचारोत्तेजक मैसेज पर चर्चा होगी।

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