जवाहरलाल नेहरू : उसने प्रतिमाएं नहीं प्रतिमान बनाये

यह ब्लॉग नारायण बारेठ ने हमारे फेसबुक पेज पर शेयर किया है। बीजेपी के कई नेता, हर समय जवाहरलाल नेहरू को कोसते रहते हैं। इस ब्लॉग को पढ़ने के बाद आपको कई अनसुनी बातों के बारे में पता चलेगा। आप सोचने पर मजबूर होंगे कि क्यों उनको आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है? (चीफ़ एडिटर)

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र राष्ट्र बना और जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री। उनकी आँखों के सामने एक ऐसा भारत था जहां आदमी की औसत उम्र 32 साल थी। अन्न का संकट था। बंगाल के अकाल में ही पंद्रह लाख से ज्यादा लोग मौत का निवाला बन गये थे। टीबी, कुष्ठ रोग (कोढ़), प्लेग और चेचक जैसी बीमारियां महामारी बनी हुई थीं। पूरे देश में सिर्फ़ 15 मेडिकल कॉलेज थे।

यह वह समय था, जब देश में 26 लाख टन सीमेंट और 9 लाख टन लोहा पैदा हो रहा था। बिजली उत्पादन 2100 मेगावाट तक सीमित था।

जवाहरलाल नेहरू ने उस समय, विज्ञान को तरजीह दी।

◆ 1952 में पुणे में नेशनल वायरोलोजी इंस्टीट्यूट खड़ा किया गया। कोरोना महामारी से निपटने में यही जीवाणु विज्ञान संस्थान सबसे अधिक काम में आया है।

टीबी की बीमारी एक बड़ी समस्या थी। 1948 में मद्रास में एक प्रयोगशाला स्थापित की गई और 1949 में टीका तैयार किया गया।

◆ देश की आधी से ज़्यादा आबादी मलेरिया की चपेट में थी। इसके लिए 1953 में अभियान चलाया गया। एक दशक में मलेरिया काफी हद तक काबू में आ गया।

छोटी चेचक की बीमारी भी बड़ी समस्या थी। 1951 में एक लाख 48 हजार मौतें दर्ज हुईं। अगले दस साल में ये मौतें 12 हजार तक सीमित हो गई।

◆ भारत की 3 फीसद जनसंख्या प्लेग से प्रभावित रहती थी। बड़ी संख्या में हर साल मौतें होती थीं। 1950 तक प्लेग पर नियंत्रित कर लिया गया।

◆ 1947 में पंद्रह मेडिकल कॉलेजों में 1200 डॉक्टर तैयार हो रहे थे। 1965 में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़कर 81 और डॉक्टर्स की तादाद दस हजार हो गई।

◆ 1956 में भारत को पहला AIIMS मिल गया। यही एम्स (नई दिल्ली) इस समय कोरोना से निपटने में देश का निर्देशन कर रहा है।

◆ 1958 में मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज और 1961 में गोविन्द बल्लभ पंत मेडिकल संस्थान खड़ा किया गया।

जवाहरलाल नेहरू की आंखों में प्रगतिशील भारत का सपना था। प्रतिमाएं (मूर्तियाँ) बनाना उनकी प्राथमिकता नहीं थी। वो तो देश को उन्नत बनाने वाले प्रतिष्ठान (इंस्टिट्यूट) बनाने में लगे थे, जो आगे चलकर विकास का प्रतिमान (मॉडल) बने।

जवाहरलाल नेहरू उस दौर के नामवर वैज्ञानिकों से मिलते और भारत में ज्ञान-विज्ञान की प्रगति में उनसे मदद मांगते। वे जेम्स जीन्स और आर्थर एडिंग्टन जैसे वैज्ञानिकों के सम्पर्क में रहे। नेहरू ने सर सीवी रमन, विक्रम साराभाई, होमी जहाँगीर भाभा, सतीश धवन और एसएस भटनागर सरीखे वैज्ञानिकों को साथ लिया।

नेहरू के कार्यकाल में इसरो स्थापित किया गया और विक्रम साराभाई इसरो के पहले प्रमुख बने।

भारत आणविक शक्ति बने। इसकी बुनियाद नेहरू ने ही रखी। 1954 में भारत ने आणविक ऊर्जा का विभाग और रिसर्च सेंटर स्थापित कर लिया था।

जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में फिजिकल रिसर्च लैब, कौंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, नेशनल केमिकल लेबोरटरी, राष्ट्रीय धातु संस्थान, फ्यूल रिसर्च सेंटर और गिलास एंड सिरेमिक रिसर्च केंद्र जैसे संस्थान खड़े किये। आज दुनिया की महफ़िल में भारत इन्हीं उपलब्धियों के सबब मुस्कराता है।

उन दिनों अमेरिका की एमआईटी MIT का दुनिया में बड़ा नाम था। नेहरू 1949 में अमेरिका यात्रा के दौरान MIT गए, आवश्यक जानकारी ली और भारत लौटते ही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी IIT स्थापित करने का काम शुरू कर दिया। प्रयास रंग लाये। 1950 में खड़गपुर में भारत को पहला IIT मिल गया। आज इसमें दाखिला मिलना अच्छे भविष्य की ज़मानत देता है। आइआइटी में प्रवेश इतना अहम पहलु है कि एक शहर की अर्थव्यवस्था इसके नाम हो गई है। 1958 में मुंबई, 1959 में मद्रास और कानपुर और 1961 में दिल्ली IIT वाले शहर हो गए।

उस शख़्स ने बांध बनवाये, इस्पात के कारखाने खड़े किये और इन सबको "आधुनिक भारत के तीर्थस्थल" कहा।

जवाहरलाल नेहरू ने 1964 में जब संसार को हमेशा के लिए अलविदा कहा, तब बलरामपुर (यूपी) के नौजवान सांसद अटल बिहारी वाजपेयी [29 मई 1964] संसद से मुखातिब हुए। नेहरू के अवसान को वाजपेयी ने इन शब्दों में बांधा, एक सपना था, जो अधूरा रह गया। एक गीत था, जो गूंगा हो गया। एक लौ अनंत में विलीन हो गई। एक ऐसी लौ जो रात भर अँधेरे से लड़ती रही, हमें रास्ता दिखाकर प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गई। उन्होंने और भी बहुत-कुछ कहा।

जवाहरलाल नेहरू आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए 3259 दिन जेल में रहे। इसके बावजूद कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने कुछ नहीं किया। लेकिन कोई पीढ़ियों की सोचता है, कोई रूढ़ियों की।

आज अगर कोई जवाहरलाल नेहरू के देश के प्रति योगदान को नकारता है तो वो एहसानफरामोश है। आज की पीढ़ी उसी झूठ को सच समझ रही है जो उनके दिमाग़ में भरा जा रहा है। अगर इस ब्लॉग को पढ़कर, कुछ लोगों की धारणा भी साफ़ हो जाए तो लेखन का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। लोगों के मन में फैली ग़लत धारणाएं दूर करने के लिये इस ब्लॉग को दूसरों तक शेयर कीजिये।

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