जम्मू-कश्मीर के हालात पर OIC ने चिंता जताई
इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी के कॉन्टैक्ट ग्रुप के विदेश मंत्रियों की आपातकालीन बैठक में कहा गया है, भारत सरकार की ओर से 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को लेकर जो फ़ैसला लिया गया है और नए डोमिसाइल नियम लागू किए गए हैं, वो संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव और अंतरराष्ट्रीय क़ानून जिसमें चौथा जिनेवा कंवेंशन भी शामिल है, उसका उल्लंघन है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को मानने की भारत की प्रतिबद्धता का भी उल्लंघन है।
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लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की हालिया घुसपैठ और 20 भारतीय सैनिकों के बलिदान के बाद भारत-चीन संबंध तनावपूर्ण हुए हैं। इस बीच जम्मू-कश्मीर को लेकर एक और बुरी ख़बर सामने आई है। इस्लामी देशों के संगठन OIC की 22 जून 2020 को हुई एक इमर्जेंसी मीटिंग ने भारत को चिंता में डाल दिया है।
OIC की इस इमर्जेंसी मीटिंग में संयुक्त राष्ट्र की उन दो रिपोर्टों का स्वागत किया गया है जिसमें यह गया है कि जम्मू-कश्मीर में वहां के लोगों के मानवाधिकार का व्यवस्थित तरीक़े से हनन किया गया है। ये दोनों रिपोर्ट्स क्रमशः जून 2018 और जुलाई 2019 में आई थीं।
इस बैठक में 5 अगस्त, 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में कथित रूप से बदतर हुए मानवाधिकार की स्थिति और हालात पर चिंता ज़ाहिर की गई। ग़ौरतलब है कि ओआईसी का यह कॉन्टैक्ट ग्रुप जम्मू-कश्मीर के लिए 1994 में बना था। इस कॉन्टैक्ट ग्रुप के सदस्य हैं- अज़रबैजान, नाइज़र, पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की।
ओआईसी के महासचिव डॉक्टर यूसुफ़ अल उसैमीन ने कहा, ओआईसी इस्लामी समिट, विदेश मंत्रियों की कौंसिल और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के हिसाब से जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकालने को लेकर प्रतिबद्ध है। बैठक में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की 16 अगस्त, 2019 और 15 जनवरी, 2020 की बैठक जो भारत की कार्रवाई को लेकर हुई थी, उसका स्वागत किया गया है।
ओआईसी ने जम्मू-कश्मीर पर अपने पुरानी स्थिति और प्रस्तावना को लेकर प्रतिबद्धता ज़ाहिर की है और कश्मीरी अवाम के आत्मनिर्णय के अधिकार की क़ानूनी लड़ाई के समर्थन का फिर से दोहराया है। ओआईसी ने भारत से ये पाँच मांगें की है,
01. एकतरफ़ा और ग़ैर-क़ानूनी कार्रवाई रद्द करे और कश्मीरी अवाम को स्वेच्छापूर्ण तरीक़े से उनके आत्मनिर्णय के अधिकार का संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में जनमत-संग्रह के तहत पालन करने दे।
02. मानवाधिकार हनन को रोका जाए। फ़ौज के ग़लत इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए जिसके तहत फ़ौज पैलेट-गन का इस्तेमाल करती है। फ़ौज की अभेद घेराबंदी और अमानवीय लॉकडाउन को हटाया जाए। कठोर आपातकालीन क़ानून को भंग किया जाए। मौलिक स्वतंत्रता के अधिकार को बहाल किया जाए और ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से हिरासत में लिए गए सभी लोगों को छोड़ा जाए।
03. जम्मू-कश्मीर की आबादी में किसी भी प्रकार की संरचनात्मक बदलाव को रोका जाए क्योंकि ये ग़ैर-क़ानूनी हैं और अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है, ख़ासतौर पर चौथे जिनेवा कंवेंशन का।
04. ओआईसी, आईपीएचआरसी और संयुक्त राष्ट्र फ़ैक्ट फाइंडिंग मिशन, ओआईसी महासचिव के जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दूत और अंतरराष्ट्रीय मीडिया को जम्मू-कश्मीर बिना रोकटोक के मानवाधिकार की उल्लंघन की जाँच-पड़ताल की इजाज़त हो।
05. ओएचसीएचआर की रिपोर्ट में कश्मीर में हो रहे मानवाधिकारों के हनन को लेकर स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जाँच बिठाने की माँग पर सहमति जताया जाए।
ग़ौरतलब है कि अगस्त 2019 में भारत ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया था तो पाकिस्तान ने ओआईसी पर दबाव डालते हुए मांग की थी कि वो भारत के ख़िलाफ़ कुछ कड़ा बयान जारी करे। हालाँकि उस वक़्त ऐसा हुआ नहीं था और सितंबर 2019 में हुई मीटिंग में ओआईसी लगभग तटस्थ रहा। दरअसल, ओआईसी को सऊदी अरब के प्रभुत्व वाला संगठन माना जाता है और बिना सऊदी अरब के समर्थन के ओआईसी में कोई भी काम कराना नामुमकिन माना जाता है।
भारत और सऊदी के व्यापक साझे हित हैं और सऊदी अरब कश्मीर को लेकर भारत के ख़िलाफ़ बोलने से बचता रहा है। अनुच्छेद 370 हटाने पर भी सऊदी अरब ने कोई बयान नहीं जारी किया था। संयुक्त अरब अमीरात ने तो यहाँ तक कह दिया था कि यह भारत का आंतरिक मुद्दा है। उस समय सऊदी अरब और यूएई के इस रुख़ को पाकिस्तान के लिए झटका और भारत की कूटनीतिक कामयाबी माना गया था।
लेकिन इस बार ओआईसी में इस तरह की बैठक होना और मांगें जारी होने को पाकिस्तान अपनी कामयाबी से जोड़कर देखेगा।
ओआईसी के कॉन्टैक्ट ग्रुप की यह ऑनलाइन मीटिंग उस वक़्त हुई है जब भारत और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन के बीच तनाव है। नेपाल के साथ भी सीमा पर विवाद चल रहा है और पाकिस्तान के साथ तनाव तो पहले से ही है। ऐसे में ओआईसी की बैठक काफ़ी अहम मानी जा रही है।
जम्मू कश्मीर पर ओआईसी के इस कॉन्टैक्ट ग्रुप में सऊदी अरब भी है। अगर सऊदी अरब बैठक नहीं चाहता तो शायद ही यह हो पाती। कहा जाता है कि सऊदी अरब के बिना ओआईसी में एक पत्ता भी नहीं हिलता है। फिर अचानक इस मीटिंग का होना भारत के लिये चिंताजनक बात है।
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