ज़फरुल इस्लाम पर दायर एफआईआर वापस लेने की माँग
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरुल इस्लाम के घर 6 मई की शाम, इफ़्तार के वक़्त की गई दिल्ली पुलिस की छापेमारी को निंदनीय करार देते हुए मुस्लिम तंज़ीमों ने पुलिस पर सत्ता और राजनैतिक पार्टी के दबाव में काम करने का आरोप लगाया है।
बुधवार 6 मई 2020 को ओखला के अबुल फज़ल एन्क्लेव में दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, ज़फरुल इस्लाम के घर पर इफ्तार के समय उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस पहुंची। लेकिन इलाके के लोगों ने पुलिस कार्रवाई का विरोध किया, जिसकी वजह से पुलिस को वापस लौटना पड़ा। दिल्ली पुलिस ने ज़फरुल इस्लाम से मोबाइल और लैपटॉप जमा करने के लिए कहा है।
ग़ौरतलब है कि ज़फरुल इस्लाम ने सोशल मीडिया पर मुसलमानों के ख़िलाफ़ फैलाई जा रही नफ़रत के बारे में अपनी एक फेसबुक पोस्ट में कुवैत और अन्य अरब देशों का नाम लेकर एक टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी को भारत की छवि बिगाड़ने वाली बताते हुए उनके ख़िलाफ़ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया, जिसकी जांच साइबर सेल कर रहा है।
देश के अनेक मुस्लिम नेताओं ने ज़फरुल इस्लाम के खिलाफ दर्ज FIR को वापस लेने की मांग की है। जमीयत उलेमा ए हिन्द के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी, मुस्लिम इत्तिहाद कॉउंसिल (बरेली) के प्रमुख मौलाना तौक़ीर रज़ा खां, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी, फतेहपुरी (दिल्ली) स्थित मस्जिद के शाही इमाम मौलाना मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम समेत कई मुस्लिम नेताओं ने बयान जारी कर सरकार से मांग की है कि डॉक्टर जफरुल इस्लाम खां के खिलाफ FIR को वापस लिया जाए और दिल्ली पुलिस को बेकसूर लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने से रोका जाए।
संयुक्त बयान के मुताबिक, कुछ ही वक़्त पहले हुई पूर्वी दिल्ली में जान-माल की बड़े पैमाने पर तबाही के असल मुजरिमों को गिरफ्तार करने में नाकाम रहने के बाद दिल्ली पुलिस अब निर्दोषों के हक में आवाज़ उठाने वालों या सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों निशाना बना रही है, जो देश के लिए खतरनाक स्थिति है।
फतेहपुरी (दिल्ली) स्थित मस्जिद के शाही इमाम मौलाना मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम ने कहा कि ज़फरुल इस्लाम के ख़िलाफ़ देशद्रोह का केस दायर किया जाना नाइंसाफ़ी है और उसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि ज़फरुल इस्लाम के ट्वीट को तोड़-मरोड़कर किसी कार्रवाई का निशाना नहीं बनाया जाना चाहिये। मौलाना मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम के मुताबिक, ज़फरुल इस्लाम के ट्वीट में ऐसी कोई बात नहीं है, जिससे बग़ावत और ग़द्दारी की बू आ रही हो।
मौलाना आज़ाद यूनिवर्सिटी जोधपुर (राजस्थान) के अध्यक्ष (वाइस चांसलर) प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने कहा कि ज़फरुल इस्लाम के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला दर्ज करना अफसोसनाक होने के साथ-साथ यह भी साबित कर रहा है कि पुलिस एक राजनैतिक पार्टी के इशारे पर उनका एजेंडा लागू करने में मदद कर रही है।
इसी मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत के अध्यक्ष नावेद हामिद ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के किसी भी नेता के ख़िलाफ़ दिल्ली दंगों से पहले दिए भड़काऊ भाषणों को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे ज़ाहिर है कि इसके पीछे सत्तारूढ़ केंद्रीय नेताओं का दबाव काम कर रहा था। उन्होंने कहा कि ज़फरुल इस्लाम के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा हास्यास्पद ही नहीं, क़ानून का खुला दुरुपयोग है।
कोरोना वायरस से जंग के दौरान कई अहम ख़बरें इन दिनों सुर्ख़ियों से ग़ायब है। बीजेपी नेताओं के भड़काऊ भाषणों पर चुप्पी साधकर ज़फरुल इस्लाम के मामले में की गई कार्रवाई से देश के अल्पसंख्यक समुदाय में ग़लत संदेश जा रहा है। सरकार को इससे बचना चाहिये।
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