जब क़ैद में थे, यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम)
अल्लाह के नबी हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) का वाक़या क़ुरआन करीम की सूरह यूसुफ़ में तफ़्सील से बयान हुआ है। उनकी ज़िंदगी के एक अहम मरहले पर आज की पोस्ट है, ग़ौर कीजिएगा।
अज़ीज़े-मिस्र की बीवी, हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की ख़ूबसूरती पर फ़िदा हो गई। उसने यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को अपनी ओर माइल (आकर्षित) करना चाहा, मगर यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) उसके हुस्न के मायाजाल में नहीं फंसे।
अज़ीज़े-मिस्र की बीवी की रुस्वाई के जब चर्चे आम हुए तो उसने शहर की ऊंचे परिवारों की औरतों को अपने घर इकट्ठा करके उनके सामने यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को हाज़िर किया। वे सब भी उनको देखकर अपनी सुध-बुध गंवा बैठीं। उसके बाद अज़ीज़े-मिस्र की बीवी कहा कि अब भी ये मेरी बात नहीं मानेगा तो इसे क़ैदखाने में डाल दिया जाएगा।
यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने उसके साथ बदकारी करके अपना ईमान ख़राब करने के बजाय जेल जाना मंज़ूर कर लिया। बेक़सूर यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) क़ैदखाने में डाल दिये गये।
अल्लाह तआला ने यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) को ख़्वाबों की ताबीर बयान करने का इल्म अता किया था। क़ैदख़ाने में दो क़ैदियों ने अपने-अपने ख़्वाब उनके सामने बयान किये। यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने उनके ख़्वाब की ताबीर बताई जिसके मुताबिक़ एक को फाँसी की सज़ा होनी थी और दूसरा रिहा होकर बादशाह का क़रीबी बनने वाला था।
लेकिन ख़्वाब की ताबीर बयान करने से पहले यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने अपने क़ैदी साथियों को तौहीद का जो दर्स दिया वही आज की पोस्ट का केंद्रीय विषय है। यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) ने कहा था,
० ऐ मेरे क़ैदख़ाने के साथियों! भला सोचो तो कि कई इलाह (पूज्य या देवी-देवता) बेहतर है या एक अल्लाह जो ज़बरदस्त है।
० तुम अल्लाह को छोड़कर जिनकी पूजा करते हो वो सिर्फ़ नाम हैं जो तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिये हैं। उसकी कोई सनद अल्लाह ने नाज़िल (अवतरित) नहीं की।
० अल्लाह के सिवा किसी की हुकूमत नहीं है। उसने फ़रमा दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा नहीं की जाए।
० यही सीधा रास्ता है मगर बहुत से लोग नहीं जानते। (सूरह यूसुफ़ : 39-40)
ऐ मेरे सोशल मीडिया के साथियों! हम सभी 14 अप्रैल तक अपने-अपने घरों में क़ैद रहेंगे। हमें भी यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की तरह अपने घर वालों को तौहीद का सबक़ सुनाना चाहिये। यक़ीनन अल्लाह तआला ही सबके साथ आसानी फ़रमाने वाला है। जिस दौर से हम गुज़र रहे हैं उसका सही इस्तेमाल यही है कि हम अपने रब की निशानियों पर ग़ौर करें, उसकी ताक़त व अज़मत का इक़रार करें, उसके आगे अपने गुनाहों की माफ़ी माँगते हुए उसके आगे सज्दा करें और नमाज़ों के पाबंद बनें।
इस पोस्ट को ग़ौर से पढ़ें, इस पर चिंतन-मनन करें और अपने दोस्तों के बीच शेयर करके नेकी के काम में मददगार बनें।
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