जाति जनगणना की माँग : मंडल राजनीति का नया अवतार?
संसद के दोनों सदनों से 127वां संविधान संशोधन बिल सर्वसम्मति से पास हो चुका है। इसके ज़रिए ओबीसी जातियों की लिस्ट तैयार करने का अधिकार, एक बार फिर राज्यों को मिलेगा। आज के इस आर्टिकल में हम दो अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे। पहला, जातिगत जनगणना की माँग इस समय क्यों उठ रही है? दूसरा, बीजेपी का इस मुद्दे पर क्या स्टैंड है?
हमारे देश में एक कहावत मशहूर है, जो आकर कभी नहीं जाती, उसे "जाति" कहते हैं।
संसद के मॉनसून सत्र के अवसान से पहले पास किये गये 127वें संविधान संशोधन बिल, 2021 पर सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों एक राय थे, यानी इस बिल का किसी भी पार्टी ने विरोध नहीं किया। इस बिल पर हुई बहस के दौरान जो-कुछ सदन में कहा गया उससे देश की राजनीति में आने वाले नये बदलाव का संकेत मिलता है।
संसद में हुई बहस के दौरान, 2021 की जनगणना, जाति आधारित कराने की मांग ज़ोर-शोर से उठाई गई। यहाँ तक कि सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के सहयोगी दल भी इसकी मांग कर रहे हैं। बिहार में एनडीए की सरकार है। नीतीश कुमार बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री हैं लेकिन इसके बावजूद वे मज़बूती के साथ जाति आधारित जनगणना की माँग उठा रहे हैं।
पिछले दिनों बिहार में दिलचस्प नज़ारा देखने को मिला। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आगामी जनगणना 2021 में जातिगत आंकड़े शामिल करने की माँग की। आम तौर पर हर मुद्दे पर नीतीश कुमार का विरोध करने वाले पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने आश्चर्यजनक रूप से उनसे भेंट करके इस माँग का समर्थन किया। राजद सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपने एक ट्वीट में जातिगत जनगणना न करवाए जाने पर जनगणना के बहिष्कार की भी बात कही है।
जाति आधारित जनगणना और आरक्षण की 50 फ़ीसदी सीमा तोड़ने की मांग को 'द हिन्दू' अख़बार ने मंडल राजनीति का तीसरा अवतार बताया है।
'द हिन्दू' ने अपने विश्लेषण में लिखा है, ''पिछले कुछ चुनावों में, ख़ासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में, क्षेत्रीय पार्टियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के सफल चुनावी अभियानों को देखा है। ओबीसी में प्रभुत्व वाली जातियों के बदले जिनका प्रभुत्व नहीं रहा है, उन्हें तवज्जो देना, ऊंची जातियों और ओबीसी-एससी में ग़ैर-प्रभुत्व वाली जातियों का एक शक्तिशाली गठबंधन बनाना, बीजेपी की अहम चुनावी रणनीति रही है।''
1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी। 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया था। 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं।
2011 की जनगणना में SECC यानी सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस आधारित डेटा जुटाया था। चार हजार करोड़ से ज़्यादा रुपए ख़र्च किए गये और ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी गई। साल 2016 में सभी आँकड़े प्रकाशित हुए लेकिन जातिगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हुए। जाति का डेटा सामाजिक कल्याण मंत्रालय को सौंप दिया गया, जिसके बाद एक एक्सपर्ट ग्रुप बना, लेकिन उसके बाद आँकड़ों का क्या हुआ, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है।
01. जातिगत जनगणना की माँग इस समय क्यों उठ रही है?
90 के दशक में राममंदिर निर्माण आंदोलन के चलते देश में हिंदुत्ववादी माहौल था और उसे काउंटर करने के लिये केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, उसकी एक सिफ़ारिश को लागू किया था। मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने से पहले देश में अनुसूचित जाति के लिये 15% और अनुसूचित जनजाति के लिये 7.5% यानी कुल 22.5% आरक्षण लागू था। ओबीसी को 27% आरक्षण देने के बाद कुल आरक्षण 49.5% हो गया।
ओबीसी आरक्षण आंदोलन के बाद देश में आश्चर्यजनक रूप से हिंदुत्ववादी कट्टरता में कमी देखी गई थी। इस समय देश में फिर 90 के दशक जैसा ही माहौल है। हो सकता है एक बार फिर जातिगत जनगणना की माँग के ज़रिए माहौल को नॉर्मलाइज़ करने के लिये यह मुद्दा उठाया गया हो।
02. बीजेपी का इस मुद्दे पर क्या स्टैंड है?
समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों की मांग है कि बीजेपी ओबीसी की सही तादाद बताए और उसके बाद आरक्षण की 50 फ़ीसदी की सीमा को बढ़ाए। अगर बीजेपी इसे नहीं मानती है तो इनके लिये यह कहने में आसानी होगी कि बीजेपी अन्य पिछड़ी जातियों के साथ धोखा कर रही है जबकि उनके ही वोट से सत्ता में पहुँची है।
इस तरह देखा जाए तो बीजेपी के लिये यह जटिल स्थिति है। पार्टी के सांसदों का कहना है कि नौकरियों में आरक्षण को लेकर उप-वर्गीकरण से सुधार किया जा सकता है। ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि 2021 की जनगणना जाति आधारित हो सकती है। बीजेपी इस जटिल मांग से निपटने के लिये थोड़ा वक़्त ले सकती है ताकि सोशल इंजीनियरिंग को अपनी तरफ़ मोड़ा जा सके।
अगर जातिगत जनगणना से ओबीसी जातियों की संख्या बढ़ी हुई नज़र आई तो ज़ाहिर है सरकार पर दबाव बढ़ेगा कि उनके लिये आरक्षण में बढ़ोतरी की जाए। फिलहाल तो सरकार ने जातिगत जनगणना से इंकार किया है लेकिन आगे उसका क्या रुख़ रहेगा, यह वक़्त बताएगा।
इस आर्टिकल पर आपके सुझाव आमंत्रित हैं।
सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान
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