कोविड 19 : हिंदी पट्टी में कोई सवाल क्याें नहीं है?
हमारी हिंदी पट्टी में सवाल उठाने वालों की इतनी कमी क्यों है? यह कमी की ध्वनि हमारी भाषा में भी झलकती है। इसमें ऐसे शब्दों का टोटा है, क्या इसकी जड़ें हमारे किसी छुपे हुए संस्कार में है?
एक बीमारी आई, जिसे महामारी कहा गया और हम पर कथित “विशेषज्ञता” और “वैज्ञानिक-तथ्यों” की बमबारी की जाने लगी।
Pramod Ranjan जी के जनचौक में प्रकाशित लेख के चुनिंदा अंश, जिन्हें पढ़ने के बाद आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।
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