हेल्थ वर्सेज़ एजुकेशन : कौन हार रहा है?

इस आर्टिकल को गंभीरता से पढ़िये, फिर सोचिये और उसके बाद अपने सोचने के अंदाज़ को बदलिये।

साभार : UNICEF

ज़िंदगी अल्लाह का दिया हुआ अनमोल तोहफा है। ज़िंदगी, सभ्य तरीक़े से गुज़रे इसके लिये ज़रूरी चीज़ इल्म यानी शिक्षा है। अगर यूँ कहा जाए कि ज़िंदगी की खूबसूरती "इल्म" यानि "शिक्षा" से निखरती है, तो पूरी तरह सही होगा।

कोविड-19 महामारी के बाद बने हालात ने ज़िंदगी पर बहुत भारी प्रहार किया है जिसके नतीजे में हर इंसान ने दूसरी सारी दिशाओं की तरफ सोचना लगभग बन्द -सा कर दिया है। ये सच है कि ज़िंदगी रहेगी तो ही उसकी खूबसूरती की फिक्र की जाएगी। आर्थिक मंदी के चलते लोगों की पहली प्राथमिकता घर-ख़र्च चलाना है। बीमारी का इलाज करवाना है। कुछ हद तक ये सही कदम हो सकता है लेकिन ज़िंदगी बचाने के साथ-साथ ज़िंदगी की ख़ूबसूरती को निखारने के काम को भी अंजाम देना है, ये हमने क्यों भुला दिया है? क्या इस दिशा में मजबूती से सोचना हमारी जिम्मेदारी नहीं है?

एक शिक्षाविद होने के नाते मेरा जवाब है, हां, हमें इस दिशा में भी गम्भीरता से सोचना पड़ेगा क्योंकि यदि ज़िंदा रहना ही जीवन है तो जीवन की सांसे छिपी है "शिक्षा" में। किसी विद्वान ने कहा है कि "शिक्षाविहीन मानव पशु के समान है।"

ज़रा सोचिए जिस ज़िंदगी में इल्म यानी शिक्षा की खूबसूरती नहीं है, ना तो वो पहले कोई काम की थी और ना उसे बचाकर हम कोई बहुत बड़े काम को अंजाम देने जा रहे हैं। जरूरत सिर्फ ज़िन्दगी को बचाने की ही नहीं है बल्कि उसके साथ-साथ उसे संवारने की दिशा में भी गम्भीर होने की है ।

लेकिन आज स्वास्थ्य की फ़िक्र में हम इतने बेचैन हो गए है कि उसके बीच शिक्षा के अस्तित्व को सिरे से ही नकारा दिया जा रहा है। स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सेंटर सभी बन्द हैं तो वहीं हमने ये भी मान लिया है कि बिना परीक्षा दिए पास हो जाना ही बेहतर है। लेकिन सोचिए, फ़िक्र कीजिए कि क्या इस तरह की स्थिति को हम कोरोना का दोष मानकर अपनाने को विवश है? नहीं, बिल्कुल नहीं।

वो नई पीढ़ी जिसे नए वातावरण में जीना है उन्हें हमने ऑनलाईन एजुकेशन से दूर कर दिया है ये मानकर कि इससे उनकी आंखो पर, उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 6 साल से लेकर 18 साल की आयु वर्ग का प्रत्येक विद्यार्थी अपने-अपने स्तर पर मोबाइल का प्रयोग दिन में 6 से 7 घंटे रोज़ कर रहा है ।

अन्य विकसित देशों पर नज़र दौड़ाए तो आपको जानने को मिलेगा कि कोरोना के इस संकट काल में वहां ना सिर्फ ज़िंदगी को बचाने की कोशिश की गई बल्कि साथ में शिक्षा को किसी भी स्तर से नकारने की बात नहीं हुई। परिणाम ये मिला कि जानें भी बची और विकास से पिछड़ने से भी नई पीढ़ी को बचा लिया गया ।

आईए वैक्सीन लगाए, मास्क पहनें, सिर्फ पुलिस के डर से नहीं बल्कि मौत के डर को दूर करने के लिये उसका उपयोग करें। बच्चों को कोरोना से बचाने के लिए सार्वजनिक जगहों पर जाने से भी रोकें। जिस डर को लॉक डाउन के वक़्त महसूस किया उस डर को अनलॉक होते ही एकदम भुला ना बैठें, इससे ज़िन्दगी बची रहेगी

ज़िंदगी बचाने के साथ-साथ ज़िंदगी संवारने की भी फ़िक्र करें। बच्चे स्कूल नहीं जा सकते तो ऑनलाईन एजुकेशन के ज़रिए उनकी शिक्षा का इंतज़ाम करें। ऑनलाइन एजुकेशन को बदलते वक़्त की मांग समझकर अपनाना ही होगा।

ऐसा करने पर जिंदगी भी चलेगी और जीवन की वास्तविक सांसे यानी शिक्षा भी साथ रहेगी, हम जी भी पाएंगे और विकास की राह से भटकने से भी शायद बच जाएंगे। वरना पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी महसूस सिर्फ यही होगा कि "स्वास्थ्य के आगे शिक्षा कहीं हार तो नहीं रही हैं।"

  माजिद शेख (प्रिंसिपल),
इंदौर/बड़वानी मध्यप्रदेश
मोबाइल : 9752026290
Email : majidsheikh 337@gmail.com

 

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बिलाल ख़िलजी
डेस्क एडिटर
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क

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Comments (1)
NADEEM KHAN

बिल्कुल दुरुस्त फरमाया आपने, हम जैसा दूसरे मामलों को तरजीह देकर करते हैं अपने बच्चों के लिए इल्म लेने को उन सबमें सबसे ऊपर रखे

Sun 20, Jun 2021 · 10:47 pm · Reply