हथिनी की हत्या और इंसान की मौत


यह ब्लॉग एडवोकेट अब्दुल क़य्यूम ने लिखा है। केरल में एक हथिनी की दुखद मौत पर की जा रही राजनीति पर उन्होंने मीडिया में चल रही सुर्ख़ियों को आधार बनाकर कई विचारणीय मुद्दों की ओर इसमें ध्यान दिलाने की कोशिश की गई है। (चीफ़ एडिटर, आदर्श मुस्लिम)

केरल और बंगाल की सरकारों का बीजेपी आईटी सेल के राडार में होना कोई नई बात नहीं है। इनसे जुडे लोग लगातार मुस्लिम एंगल तलाश कर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए इन सरकारों पर अनर्गल आरोप लगा देश की जनता को भ्रमित करते रहते है। ताजा-ताजा उदाहरण देखिये।

केरला में कोरोना को लेकर बेहतरीन काम हो रहा है वहां की सरकार बेहतरीन काम कर रही है। महाराष्ट्र सरकार की मदद कर रही है। अपने डॉक्टरों की टीम भेज रही है कुछ दिनो पहले गुजरात सरकार ने भी केरल से मदद मांगी थी। लेकिन किसी न किसी मुद्दे पर केरल सरकार और वहा की जनता को बदनाम करना है। गर्भवती हथिनी की मौत की घटना को लगातार मलप्पुरम का बताया जा रहा है। सब लोग मलप्पुरम का नाम लिखने लगे, जबकि घटना पलक्कड़ की है।

पलक्कड़ में जहां घटना हुई है वहां किसी ने उसे पटाखे भरा फल खिलाया नहीं था। वो हथिनी घूम रही थी और उसने वो फल खा लिया क्योंकि खेतों को जंगली सुवरों और जानवरों से बचाने के लिये वहां करंट और ये तरीके अपनाए जाते हैं।

जिसने मुंशी प्रेमचंद की 'पूस की रात' कहानी पढ़ी है, उसे समझ आएगा। जो कभी गाँव में नहीं रहे और जिन्होने खेतों मे नील गायों या जंगली सूअरों का प्रकोप नहीं देखा कि कैसे जंगली जानवर खेत में खड़ी पूरी की पूरी फ़सल तबाह कर देते हैं, उनके लिए यह समझना मुश्किल है।

यहां शहरों में बैठकर बकलोली करना आसान है जब महीनों की मेहनत को जानवर बर्बाद करते हैं तब उस किसान से पूछिये क्या बीतती है उसके ऊपर।

हथिनी के साथ जो हुआ दुर्भाग्यपूर्ण है। कभी इंसान तो कभी जानवर दोनों ही एक दूसरे के लिए घातक बनते हैं। लखीमपुर खीरी में कितने ही लोग मरते हैं, खेतों में काम करते वक़्त बाघ उनको मार देता है। कितने ही लोगों का शरीर कभी-कभी बुरी हालत में मिलता है। इंसान और जानवर दोनों को एक-दूसरे से ख़तरा रहता है। यहाँ शहरों में बैठकर बेवकूफ़ीभरे तर्क करने से कुछ नहीं होगा, जो गावों में रहता है और खेती-बाड़ी करता है उससे पूछिये।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य की 91 तहसीलों में बंदरों को गोली मारने की मंज़ूरी दी गई है, केंद्र की सरकार की रजामंदी भी शामिल है। केरल में हाथी की मौत पर आँसू बहाने वाले इन बेजुबान बंदरों की परवाह क्यों नहीं कर रहे?

कोई जवाब है???

वो बिका हुआ एक्टर अक्षय कुमार और कई सारे मंत्री, सेलिब्रिटीज और आम लोग कड़ी कार्यवाही की मांग कर रहे हैं। मैं भी मज़दूरों की हत्या पर कड़ी कार्यवाही की मांग करता हूँ। रेल मंत्री से लेकर, लेबर मिनिस्टर तक जो भी दोषी है, करो कायर्वाही। लेकिन तब इन एक्टर और लोगों की संवेदनशीलता खत्म हो जाती है।
ये भीड़ बनाना जानते हैं, एजेंडा बनाना जानते हैं और हमारे यहां के अतिउत्साहित लोग जल्द से जल्द पोस्ट लिखकर सवेंदनशील दिखना चाहते हैं ताक़ि कोई मुद्दा छूट न जाए।


समाज मे जितना ग़ुस्सा जानवरों के लिये है, उतना ही ईश्वर की सर्वोत्तम रचना इंसान के लिये कर लो तो लोग इंसान बने रहेंगे, वरना इंसान को भी दो पैर का जानवर बनने में देर नहीं लगती।

हथिनी की मौत से मोदीजी दुखी हैं, प्रकाश जावड़ेकर दुखी है, स्मृति ईरानी दुखी है, मेनका गांधी तो सदमे से निकल ही नही पा रही है। मोदी समर्थकों का सोशल मीडिया पर रो-रोकर बुरा हाल है।

आपको याद दिला दूँ, यह वही लोग है जिनके मुख से प्रवासी मजदूरों की मौत पर एक शब्द नहीं निकला था।

आप इनके जाल में हर बार फंस जाते हो। कुछ बेवकूफ़ बताएंगे कि मांसाहारी लोग भी शोक मना रहे हैं, तो शाकाहारी लोग लोगों को तलवार से कैसे काट लेते हैं? किसी की हत्या कैसे कर लेते हैं? संवेदना को शाकाहार से जोड़ने वाले बताएं कि वो चमड़े के जूते, चप्पल, पर्स नहीं पहनते हैं, दवा नहीं खाते हैं? बछड़े के मर जाने पर उस बछड़े की खाल में भूसा भरकर दूध कौन निकालता है? बलि किसके यहां होती हैं? बात हिंसा की है, अमानवीयता की है, उस पर बात करिए । बेवजह किसी धर्म के लोगों को टारगेट मत करो।

गुजरात का एक खूंखार कातिल बाबू बजरंगी याद है? जिसने आन कैमेरा कबूल किया था कि उसने दंगो में एक गर्भवती महिला के पेट मे तलवार डालकर बच्चे को तलवार की नोक पर टांग लिया था। उस बाबू बजरंगी के चाहने वाले लोग जब एक हथनी और उसके गर्भ मे पल रहे बच्चे के लिए आँसू बहाएंगे तो निसंदेह आँसू फर्जी ही लगेंगे।

अपनी संवेदनाओं को सलेक्टिव न रखकर, एक बार जंगली जानवरों द्वारा किसानों की अथाह मेहनत से खडी फसलो को बरबाद किये जाने के बारे मे विचार अवश्य करें।

हथिनी की मौत का दुख मुझे भी है, पर मेरे लिए किसी भी अन्य जीव का जीवन, मानव के जीवन पर श्रेष्ठता नही रखता।

(अब्दुल क़य्यूम की फेसबुक वॉल से उदधृत)

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