हसद की आग
सबसे पहले मन में यह सवाल उठता है कि हसद (ईर्ष्या) का मतलब क्या है? इसका जवाब है, अगर किसी के पास, अल्लाह की दी हुई कोई भी नेअमत है (जैसे, इल्म, अक़्ल, समझ, लिखने-बोलने की सलाहियत, कारोबार, नेक औलाद आदि), उस नेअमत के उस शख़्स से छिन जाने की आरज़ू करना हसद कहलाता है।
हसद करने वाला शख़्स, असल में अल्लाह के फैसले पर राज़ी नहीं होता है। उसके मन में हमेशा यह भावना होती है कि फलां नेअमत उसे क्यों मिली? मुझे क्यों नहीं मिली? जब उसकी यह भावना उस पर हावी हो जाती है तो फिर वो यह आरज़ू (इच्छा) करने लगता है कि फलां नेअमत, जो फलां शख़्स को मिली है, वो अगर मेरे पास नहीं है तो फिर उसके पास भी न रहे।
इसलिये हर मोमिन को, जिसे अल्लाह तआला ने कोई नेअमत दे रखी हो, उसे हसदख़ोर की बुराई से बचने के लिये हर वक़्त सूरह फ़लक़ व सूरह नास पढ़कर अल्लाह की पनाह तलब करनी चाहिये।
01. हसद, भाई के हाथों भाई का क़त्ल करवा देती है
क़ुरआन करीम में हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) के दो बेटों हाबील और काबील का किस्सा बयान हुआ है।
दोनों भाइयों ने किसी मामले में अल्लाह से मन्नत मांगी और अल्लाह के आगे क़ुर्बानी पेश की। हाबील की क़ुर्बानी क़ुबूल हो गई और काबील की क़ुर्बानी रद्द।
इसी हसद के चलते, काबील ने अपने सगे भाई, हाबील को क़त्ल कर दिया। इंसानी नस्ल में यह पहला क़त्ल था। उसके बाद से हर दौर में ऐसा होता रहा है। इससे आप समझ सकते हैं कि हसद शैतान का बड़ा हथियार है।
इसी तरह का एक और वाक़या हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) का है। उनके भाइयों ने उन्हें मारने की नीयत से कुंए में डाल दिया।
वजह क्या थी? भाइयों को यह हसद थी कि उनके वालिद याक़ूब (अलैहिस्सलाम), उनसे ज़्यादा यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) से मुहब्बत करते हैं। बाप की मुहब्बत का रुख़ अपनी ओर
मोड़ने के लिए, बड़े भाइयों ने अपने छोटे भाई को मार डालने का घिनौना इरादा कर लिया था।
इन दो मिसालों से आप समझ सकते हैं कि हसद, भाई को भाई का दुश्मन बना देती है।
02. हसद, बाप को भी बेटे के क़त्ल पर आमादा कर सकती है
हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) का बाप आज़र, शाही मूर्तिकार था और मूर्तिपूजक भी था। जब बेटे यानी हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) ने अपने बाप और अपनी क़ौम को तौहीद (एकेश्वरवाद) की दावत दी तो आज़र अपने बनाए हुए बुतों की अज़मत का इंकारबर्दाश्त न कर सका।
हसद की आग में अंधे होकर आज़र ने, बादशाह नमरूद के साथ मिलकर, अपने बेटे इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) को आग के कुण्ड में डलवा दिया। लेकिन अल्लाह ने उन्हें बचा लिया।
बेटे को अल्लाह ने हिदायत दी थी। अपनी निशानियों को समझ पाने की सलाहियत (योग्यता) दी थी। लेकिन शैतान के बहकावे में आकर उसके अपने ही उसके दुश्मन बन गए।
इसलिए हसदख़ोर लोगों से हमेशा बचकर रहना चाहिये।
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