हार के बाद ही जीत है
यह एक मोटिवेशनल ब्लॉग है। इसमें कही गई बातों पर ध्यान दिया जाने और उन पर अमल करने से बहुत सी अप्रिय परिस्थितियों से बचा जा सकता है। इसे पूरा पढ़िये और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक शेयर कीजिये ताकि हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकें।
बॉलीवुड फिल्मस्टार सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या कई दिनों तक चर्चा में रही। सुशांत ने आत्महत्या क्यों की? इसके कारणों पर अभी तक क़यासबाज़ी ही चल रही है। लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ। पिछले कुछ सालों में,
◆ माँ-बाप की बड़ी-बड़ी उम्मीद और कंपीटिशन एग्जाम्स का तनाव न झेल पाने के कारण कई स्टूडेंट्स ने आत्महत्या की।
◆ फसलों के बर्बाद हो जाने या कम क़ीमत पर बिकने की वजह से क़र्ज़ चुका न पाने के कारण किसानों ने आत्महत्या की।
◆ कारोबार में बड़ा नुक़सान हो जाने पर घरवालों की तानेबाज़ी और कर्ज़दाताओं के तक़ाज़ों से परेशान होकर कई कारोबारी लोगों ने आत्महत्या की।
◆ इनके अलावा मॉडर्न लाइफ़स्टाइल के चलते पैदा हुए तनावों के कारण भी बहुत से लोग आत्महत्या करते हैं।
आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है। लेकिन आत्महत्या जिन कारणों से लोग कर बैठते हैं उनका समाधान न करना समस्या की असली जड़ है।
■ क्या करें और क्या न करें? ■
आज के दौर में यह ज़रूरी है कि बच्चों को, बचपन से ही हारने पर मायूस न होना और हार को सकारात्मक रूप से लेना भी सिखाया जाए। वरना वो छोटा-सा झटका भी न झेल पाएंगे। बच्चों की क़ाबलियत को नम्बरों के प्रतिशत और हाई ग्रेड से आंकना बन्द किया जाए तो बच्चे नेचुरल तरीक़े से पढ़ाई कर सकते हैं।
बच्चों का हौसला बढ़ाया जाए। लेकिन ग़लती होने पर उसे डाँटा भी जाए, इससे उसमें बचपन से तनाव झेलने की ताक़त पैदा होती है।
डाँटने-डपटने में यह ध्यान रखा जाए कि माँ डाँटे तो बाप उसे हमदर्दी से समझा ले और अगर कभी बाप डांट दे तो माँ उसे सीने से लगा ले।
याद रखिये, ज़्यादा प्यार-दुलार से बच्चे बिगड़ जाते हैं और ज़्यादा सख़्ती से उनमें आत्मविश्वास पैदा नहीं हो पाता। दोनों की क़िस्म की परवरिश ग़लत है, इससे बच्चों का संतुलित विकास नहीं हो पाता और वे अपनी ज़िंदगी के तनावपूर्ण दौर का सामना नहीं कर पाते।
जहाँ तक खेती-किसानी की बात है तो उसमें किसान के साथ, सरकार या बैंक को श्रम एवं पूंजी की साझेदारी निभानी चाहिये, यानी किसान की मेहनत और सरकार का पैसा।
अगर फ़ायदा होगा तो तयशुदा प्रतिशत में दोनों के बीच बंटेगा और अगर नुक़सान होगा तो किसान की सिर्फ़ मेहनत बेकार जाएगी। जब उस पर पैसा वापस लौटने का दबाव नहीं होगा तो वो आत्महत्या जैसे कामों के बारे में सोचेगा भी नहीं।
हमारी सामाजिक व्यवस्था को आडम्बर और दिखावे से मुक्त करने की ज़रूरत है। सादगीपूर्ण तरीक़े से अगर कोई जीना चाहता है तो उसे पर दुनियादारी के रिवाज मानने के लिये किसी भी तरीक़े से मजबूर न किया जाये। उसकी सादा जीवन-शैली की यह कहकर तारीफ़ की जाए कि वो सही कर रहा है।
रिश्तों में नाजायज़ दखलंदाज़ी न की जाए। हर इंसान अपने तरीक़े से अपना घर चलाता है, उसमें जबरन अपनी मर्ज़ी न थोपी जाए।
अगर किसी इंसान का कोई कारोबारी नुक़सान हो जाए तो उसका हौसला बढ़ाकर फिर से खड़ा होने के लिये उभारा जाए। मौक़े का फ़ायदा उठाकर उसे अपने मातहत (अधीन) लाने की कोशिश न की जाए।
कई बार रिश्तेदारों के नाजायज़ दबाव और बेजा दखलंदाज़ी के कारण कुछ लोग आत्महत्या जैसा क़दम उठा लेते हैं। उसकी वजह यह होती है कि वे लोग अपने रिश्तेदारों को खुलेआम बुरा भी नहीं कह सकते लेकिन उनके दबाव में जी भी नहीं सकते।
अंत में यही कहना है कि अगर कोई अप्रिय परिस्थिति हो तो सकारात्मक सोचें। बुरे दोस्तों और रिश्तेदारों से दूरी बनाकर रखें। अपनी ज़िंदगी में सुकून के लिये अगर उनकी No Entry कर दी जाए तो भी सही है।
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