लॉक डाउन मैसेज-1 : घर की ज़रूरतें बहुत थोड़ी हैं
कोरोना की वजह से लॉकडाउन लागू है। हम अपने-अपने घरों में बंद हैं। आमदनी के ज़रिए बंद हैं लेकिन ख़र्च का मीटर चालू है। ऐसा लग रहा है कि पहले की तरह, आज़ादी से घूमना-फिरना अभी भी दूर की कौड़ी है। हमने दीनी किताबें पढ़ने, लिखने और छापने के दौरान, एक ख़ास बात पर ग़ौर किया। अल्लाह तआला कुछ बातों का हुक्म देकर हमें सिखाता है और कुछ बातें प्रेक्टिकल तरीक़े से सिखाता है यानी हमें सिखाने के लिये कुछ ख़ास हालात (विशेष परिस्थितियां) पैदा करता है।
कोरोना से पहले भी कई बार इंसानी करतूतों के कारण आज जैसे हालात पैदा हुए। क़ुरआने-करीम में अल्लाह तआला इर्शाद फरमाता है, ख़ुश्की (थल) और तरी (जल) में फ़साद पैदा हो गया है, इंसानों की करतूतों की वजह से। (सूरह रूम : 41)
लॉक डाउन की इस मौजूदा सूरतेहाल में, आज हम हर चीज़ से रोक दिये गये हैं। अल्लाह तआला ने हमें अक़्ल व समझ दी है जिसका इस्तेमाल करके हमें इन हालात से कई बातें सीखने की ज़रूरत है। आज से हम एक और सीरिज़ लॉक डाउन मैसेज शुरू कर रहे हैं। इसके हर पार्ट में किसी एक संदेश पर चर्चा की जाएगी, जो हमें इस लॉक डाउन में सीखने को मिला है। वो संदेश है, घर की ज़रूरतें बहुत थोड़ी हैं।
24 मार्च 2020 की रात, जैसे ही राष्ट्र को सम्बोधित करके यह कहा गया कि कोरोना महामारी के फैलाव को रोकने के लिये देशव्यापी लॉक डाउन लागू हो गया है, तो जैसे सब-कुछ ठहर गया। सबसे ज़्यादा फ़िक्र उन लोगों को हुई जो रोज़ लाते हैं और रोज़ खाते हैं।
अल्लाह तआला ने अपने बंदों के दिल में हमदर्दी का जज़्बा रखा है। इन ज़रूरतमंद लोगों की मदद के लिये हर शहर में, बड़ी तादाद में लोग उठ खड़े हुए। इनमें सभी धर्मों और वर्गों के लोग शामिल थे।
राशन सामग्री के किट बनाकर ग़रीब व ज़रूरतमंद लोगों को बांटे जाने लगे। अल्लाह के करम से यह सिलसिला अभी तक चल रहा है। समाजसेवी संस्थाओं की ओर से आम जनता को भी इस नेक काम में शामिल होने की अपील की गई।
क्या एक बात पर किसी ने ग़ौर किया?
ज़रूरतमंद लोगों के लिये राशन किट तैयार करते समय क्या हमें महसूस हुआ कि ज़िंदा रहने के लिये बहुत थोड़े रुपये की ज़रूरत है? एक छोटे परिवार की एक महीने की ख़ुराक़ पर ख़र्च क़रीब 1500 से 2000 रुपये आ रहा है। इसमें दूध, सब्ज़ी, गैस सिलिंडर, बिजली-पानी के बिल को भी जोड़ दिया जाये तो एक परिवार का ख़र्च 5000 से 6000 रुपये के बीच होगा।
हमारी बुनियादी ज़रूरत इतनी छोटी, लेकिन ज़िंदगी में पल भर का सुकून नहीं। ऐसा क्यों? कमाने के बावजूद हमारे पास कुछ बचत क्यों नहीं होती?
अब तस्वीर का दूसरा रुख़ देखिये।
01. एक घर में पाँच मेम्बर्स, सबके पास स्मार्टफोन। सोशल मीडिया से जुड़े रहने के लिये कम से कम दो-तीन सौ रुपये का रिचार्ज, यानी एक परिवार का औसतन इंटरनेट ख़र्च 1200 से 1500 रुपये है।
02. कई लोग ऐसे हैं जिनको बीड़ी, सिगरेट, खैनी, गुटखा चबाने की आदत है बल्कि यूँ कहें कि लत पड़ी हुई है। सेहत को बर्बाद कर देने वाले इस शौक का मासिक ख़र्च 3000 से 4000 रुपये तक है।
03. जिन लोगों को शराब पीने जैसी महामारी लगी हुई हो, उनके ख़र्च का तो हिसाब लगाना ही मुश्किल है।
04. औरतें-मर्द घरों से बाहर नहीं जा पा रहे हैं इसलिये सब बिना मेकअप, बिना डियो के घरेलू कपड़ों में हैं। क्या हमने सोचा कि हम आम दिनों में सौंदर्य प्रसाधनों और फैशनेबल कपड़ों पर कितना रुपया ख़र्च करते हैं? क्या उस ख़र्च के बिना इस वक़्त जीने में हमें कोई दुश्वारी हुई? यक़ीनी तौर पर इसका जवाब नहीं ही है यानी इस ख़र्च के बिना जिया जा सकता है।
05. इस वक़्त हम कहीं बाहर नहीं जा पा रहे हैं। हमारे तमाम दोपहिया-चौपहिया वाहन पार्किंग पोज़िशन में हैं। आम दिनों में हमारा हाल यह था कि थोड़ी-सी दूर भी पैदल चलना गवारा नहीं था। एक महीने में कितने रुपये पेट्रोल-डीज़ल पर ख़र्च होते थे? हिसाब लगाइये और सोचिये कि इस फ़िज़ूलख़र्च में कितनी कमी किये जाने की ज़रूरत है?
क्या हमने कभी सोचा था कि बुरा वक़्त इतनी छोटी एडवांस वार्निंग देकर आता है? रात 8 बजे ऐलान हुआ और 4 घण्टे बाद रात 12 बजे बुरा वक़्त शुरू। जब मुद्राबन्दी (नोटबन्दी) की गई थी तब क्या हमने सोचा था कि अगली बार मनुष्यबंदी होगी?
सोचिये! अब नहीं सोचेंगे तो कब सोचेंगे? अपने शौकियाना ख़र्चों को कम कीजिये। इस ज़मीन पर एक बहुत बड़ी तादाद उन इंसानों की है जो अपनी बुनियादी ज़रूरत भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं। ये सभी लोग, हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) की औलाद होने के नाते, हमारे भाई-बहन हैं। अगर हमारे ग़ैर-ज़रूरी ख़र्चों को कम करने से इन मजबूर लोगों की ज़रूरत पूरी होती है तो हमें ऐसा करना चाहिये। यह लॉक डाउन का पहला मैसेज है। अगली कड़ी में फिर किसी विचारोत्तेजक मैसेज पर चर्चा होगी।
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