फ़र्ज़ी मीडिया का इलाज मानहानि क़ानून के ज़रिए करना होगा
मारवाड़ में एक मशहूर कहावत है, जाइजो लाख, रेइजो साख (लाख रुपये चले जाएं कोई ग़म की बात नहीं, इज़्ज़त नहीं जानी चाहिये)। आपने कई लोगों से यह बात भी सुनी होगी, इंसान अपनी इज़्ज़त बनाने में कई साल लगा देता है लेकिन उसे गंवाने में एक पल ही काफी होता है।
दुनिया में हर अच्छे इंसान के लिए उसकी इज़्ज़त, दौलत से भी ज़्यादा मायने रखती है। देश संविधान के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं। उन्हीं अधिकारों में से एक है, मान-सम्मान और प्रतिष्ठा के साथ जीने का अधिकार। अगर कोई इंसान, दूसरे व्यक्ति या किसी सम्मानित संस्था के इस मौलिक अधिकार का हनन करने या उसे किसी भी माध्यम से छीनने की कोशिश करता है तो उसके ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़द्दमा किया जा सकता है।
■ क्या मीडिया के ख़िलाफ़ भी मानहानि का मुक़द्दमा किया जा सकता है?
जी हाँ! मीडिया के ख़िलाफ़ भी यह केस फ़ाइल किया जा सकता है। मीडिया का काम लोगों तक सही और सच्ची ख़बरें पहुंचाना है। अगर कोई अख़बार या न्यूज़ चैनल, तथ्यों की अनदेखी करते हुए, अपनी ख़बरों, फोटो या वीडियोज़ के ज़रिए, किसी व्यक्ति या संस्था की मानहानि करे तो उसके ख़िलाफ़ भी मानहानि अपराध के तहत क़ानूनी कार्रवाई की जा सकती है। संपादक के नाम सिर्फ़ शिकायती चिट्ठी लिख देने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
■ मानहानि का मतलब क्या है?
01. सार्वजनिक रूप से दिया गया कोई भी बयान जो आधारहीन हो और जिससे किसी व्यक्ति या संस्था की छवि ख़राब होती है वो मानहानिकारक बयान है। मिसाल के तौर पर, किसी व्यक्ति या संस्था पर भ्रष्ट, दुराचारी या आतंकवादी होने या इसी प्रकार का कोई और आधारहीन बयान देना।
02. सार्वजनिक रूप से किसी व्यक्ति या संस्था पर झूठा आरोप लगाना और उसके मान-सम्मान व प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाना भी मानहानि की श्रेणी में माना जाता है। मिसाल के तौर पर किसी व्यक्ति को कई लोगों के सामने चोर कहना, भ्रष्ट कहना, दुराचारी या बलात्कारी कहना या इसी किस्म का कोई और झूठा आरोप लगाना।
इसके पीछे तर्क यह है कि किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को क़ानून की नज़र में धन-संपत्ति का हिस्सा समझा गया है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति किसी को उसकी संपत्ति से वंचित करता है तो वो अपराध की श्रेणी में माना जाता है।
■ मानहानि अपराध कैसे होता है?
01. किसी व्यक्ति या संस्था की मानहानि से संबंधित कोई मैटर (लेख, ब्लॉग, किताब, वीडियो आदि) प्रकाशित-प्रसारित करना, जिसके पीछे कोई सबूत न हो।
02. किसी व्यक्ति या संस्था की लिखित शब्दों या मौखिक आरोप द्वारा मानहानि करना, जिसके पीछे सच्चाई न हो।
03. ऐसी कोई भी कार्यवाही, जो ग़लत नीयत से, महज़ किसी व्यक्ति या संस्था को बदनाम करने की मंशा से की गई हो।
■ मानहानि अपराध की कितनी किस्में हैं?
मानहानि अपराध दो प्रकार का होता है। दीवानी (सिविल) और फौजदारी (आपराधिक) दोनों किस्म की मानहानि, क़ानूनन अपराध हैं।
सिविल क़ानून के अंतर्गत अपमानित व्यक्ति या संस्था, अपने अपमान को साबित करने के लिए हाईकोर्ट या लोअर कोर्ट में मुक़द्दमा दायर करके आरोपी से आर्थिक मुआवजे की मांग कर सकता है।
राज्य के खिलाफ मानहानि भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए में निहित है जिसको देशद्रोह कहा जाता है।
किसी समुदाय के ख़िलाफ़ मानहानि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153 में निहित है, जिसे उपद्रव कहा जाता है।
भारतीय दंड संहिता की धाराएं 499 से 502 तक मानहानि से सम्बंधित है
अगर कोई व्यक्ति धारा-499 के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो उसको निम्न धाराओ के तहत दंड दिया जा सकता है।
01. आईपीसी की धारा-500 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था की मानहानि करता है तो उसको इस धारा के तहत 2 साल तक की कैद या आर्थिक जुर्माना या फिर ये दोनों सज़ा हो सकती है।
02. अपने आर्थिक उदेश्य के लिए किसी की मानहानि करने पर धारा-502 के तहत 2 साल तक की कैद या आर्थिक जुर्माना या फिर ये दोनों सज़ा हो सकती है।
■ आरोपी व्यक्ति के पास क्या विकल्प होते हैं?
01. अगर कोई व्यक्ति या संस्था, दूसरे किसी व्यक्ति या संस्था (जैसे मीडिया ग्रुप) के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़द्दमा करता है तो आरोपी को सबूत देने पड़ेंगे कि उसने जो कहा था, या लिखा या प्रचारित-प्रसारित किया था वो इन तथ्यों के आधार पर सच है।
02. अगर आरोपी व्यक्ति या संस्था सबूत न दे पाए तो वो लिखित में, सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगकर सज़ा से बच सकता है, बशर्ते मुक़द्दमा करने वाला उसे माफ़ कर दे। अरुण जेटली बनाम अरविंद केजरीवाल केस में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को, पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली से भ्रष्टाचार के आरोप में सबूत न दे पाने पर माफ़ी मांगनी पड़ी थी।
03. अगर मुक़द्दमा करने वाला व्यक्ति या संस्था, आरोपी द्वारा माँगी गई माफ़ी को स्वीकार न करे तो आरोपी को आर्थिक मुआवज़ा देना होगा और अदालत द्वारा सुनाई गई जेल की सज़ा भी काटनी होगी।
आम तौर पर लोग बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? वाली सोच के चलते ग़लतबयानी करने वालों के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़द्दमा नहीं करते हैं इसलिये झूठों की मौज बनी हुई है। अगर किसी व्यक्ति, संस्था या समाज विशेष को रोज़-रोज़ की ज़िल्लत से बचना है तो ऐसी कोई बड़ी कार्रवाई करनी होगी।
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