जोधपुर : एक घटना, दो ख़बरें, एक वायरल वीडियो और कुछ सुझाव

जोधपुर : एक घटना, दो ख़बरें, एक वायरल वीडियो और कुछ सुझाव

एक अच्छे मीडिया को हक़परस्त होना चाहिये, यानी वो हक़बयानी करे। आज का ब्लॉग 21 अप्रैल 2020 को जोधपुर (राजस्थान) की एक घटना पर है। हमारे पास कई लोगों के फ़ोन आये और मामले की सच्चाई क्या है, यह जानकारी चाही। इस ब्लॉग में हमने अख़बारों में छपी ख़बरों और मुहल्ले के लोगों द्वारा बनाए गये वीडियोज़ भी दिये हैं। जो तथ्य हमारे सामने आये हैं, उन पर चर्चा की गई है। इसके साथ ही कुछ सुझाव भी दिये गये हैं।

■ मामला क्या है?

जोधपुर (राजस्थान), 21 अप्रैल 2020 शहर के सदर बाज़ार थाना क्षेत्र के घासमंडी इलाक़े में गश्त कर रहे पुलिस कांस्टेबल पर कथित रूप से किसी ने पत्थर फैंका, जिससे उसके सर पर चोट लगी। ऐसा 22 अप्रैल 2020, जोधपुर शहर से प्रकाशित होने वाले अखबारों में ख़बर के रूप में छपा। हमने यहां दो बड़े अखबारों की न्यूज़ के स्क्रीनशॉट इस पोस्ट के साथ दिये हैं।

■ कैसी रिपोर्टिंग है, अख़बारों में?


राजस्थान पत्रिका ने इस घटना को थोड़ा नॉर्मल तरीक़े से लिखा। उसने पूरी घटना का विवरण लिखा। राजस्थान पत्रिका ने भी पत्थरबाज़ी का ज़िक्र अपनी ख़बर में किया।


लेकिन इसके विपरीत दैनिक भास्कर की न्यूज़ भड़काऊ अंदाज़ में लिखी हुई नज़र आती है। उसमें भी पुलिस पर पत्थर फैंकने की ख़बर छापी और न्यूज़ की हेडलाइन इस तर्ज़ पर है जिसे पढ़कर एकबारगी किसी को भी ग़ुस्सा आना लाज़मी है।

दैनिक भास्कर ने इसी ख़बर के साथ एक ख़बर और छापी है, जिसके अनुसार पुलिस का स्वागत करते हुए बस्ती वालों ने फूल बरसाए। इस ख़बर के साथ जो फोटो लगाया गया है, उससे मालूम होता है कि यह दूसरे समुदाय की बस्ती है।

दोनों ख़बरों को एक नज़र में, एक साथ देखकर ऐसा लगता है कि एक समुदाय के लोग पुलिस की भूमिका की सराहना करते हुए फूल बरसा रहे हैं, वहीं दूसरे समुदाय की बस्ती में पुलिस पर हमला किया जा रहा है।

■ सोशल मीडिया पर कोहराम?

21 अप्रैल 2020, जिस दिन की यह घटना है। उस दिन इस घटना की शहर में सोशल मीडिया पर कोई बहस या चर्चा नहीं थी क्योंकि पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया था और उनकी पिटाई भी की थी। दैनिक भास्कर ने पिटाई के उस फोटो को छापा भी है। लेकिन आज 22 अप्रैल 2020 को इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर कोहराम मचा। कुछ लोग इसकी तुलना मुरादाबाद (यूपी) की घटना से कर रहे हैं जिसकी मुस्लिम समाज के लोगों ने भी निंदा की थी।

हमारा मानना है कि ऐसा अख़बार में छपी उक्त न्यूज़ के बाद लोगों के मन में पैदा हुई बेचैनी और ग़लतफ़हमी की वजह से हुआ, जिससे बचा जाना चाहिये था।

■ वायरल हो रहे वीडियो में क्या है?

इस बीच सोशल मीडिया पर एक वीडियो और फोटो वायरल हो रहे हैं जिसमें दावा किया जा रहा है कि उस पुलिस कांस्टेबल के सर पर चोट दूसरे पुलिसकर्मी के डंडे से दुर्घटनावश लगी। उस वीडियो में एक पुलिसकर्मी भी वीडियो बनाते हुए नज़र आ रहा है।


जो वीडियो वायरल हो रहा है, उसके अनुसार, पुलिस के जवान गश्त कर रहे थे। लोगों को घरों में रहने की अपील कर रहे थे। जो लोग बाहर थे उनको घरों में जाने के लिये कह रहे थे। क्षेत्र के कुछ लोग भी पुलिस का सहयोग कर रहे थे और अपने हाथों से धकेलकर उनके में भेजने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस वालों को, गली वालों से यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उसको समझा लो। यानी उस वीडियो के अनुसार सब-कुछ ठीक चल रहा था। अचानक एक पुलिसकर्मी डंडा फैंकता है जो बिजली के खम्बे से टकराता है। यह वीडियो यहीं पर ख़त्म हो जाता है। लेकिन इस वीडियो में यह नहीं दिखाई देता है कि डंडा उछलकर किसी पुलिस कांस्टेबल को लगा हो।


इसी वीडियो के डंडा फैंके जाने वाले सीन का एक स्लो मोशन वर्ज़न वीडियो भी सोशल मीडिया पर आया। उसे देखने पर ऐसा लगता है कि जब उस पुलिसकर्मी ने डंडा फैंकने के लिये हाथ उठाया तो उस समय दूसरे पुलिसकर्मी को चोट लगी।

इन वीडियोज़ के शेयर होने के बाद एक समुदाय विशेष में यह धारणा फैली कि बेक़सूर युवाओं को झूठा फंसाया जा रहा है।

■ कुछ ज़रूरी सुझाव :

01. मीडिया किसी ख़बर को सनसनीख़ेज़ बनाकर पेश न करे :
हमारा देश एक ऐसी महामारी से जूझ रहा है जो लोगों के घरों में रहने पर ही कंट्रोल में रह सकती है। लेकिन एक महीने से घरों में रहने पर लोग काफ़ी परेशान भी हैं। ऐसे में उन्हें तनाव फैलाने वाली ख़बरें न परोसी जाए।

02. सरकार स्पष्ट निर्देश जारी करे :
केंद्र सरकार व सभी राज्यों की सरकारों को चाहिए कि वे मीडिया को स्पष्ट निर्देश जारी करें कि अगर वे सनसनीख़ेज़ रिपोर्टिंग का मोह नहीं छोड़ेंगे तो उनको मिलने वाले विज्ञापनों पर रोक लगा दी जाएगी।

03. : पुलिस सख़्ती के साथ हमदर्दी भी रखे :
इस पूरे मामले सबसे अहम बात यह है कि पुलिस का एक जवान भी वीडियो बना रहा था। अगर उस वीडियो में पत्थर फेंके जाने का सीन हो तो उसे जारी किया जाना चाहिए ताकि मामला साफ़ हो जाए। अगर वाक़ई किसी ने पत्थर फैंका है तो उसके ख़िलाफ़ क़ानून के तहत कार्रवाई की जाए।

इस मौक़े पर हम, सन 1976 में आई फ़िल्म फूल और पत्थर के एक सीन का ज़िक्र करना चाहेंगे। शहर में प्लेग फैला है और लोग अपना घर छोड़कर कहीं और चले गये हैं। एक फरार मुजरिम शाका चोरी करने की नीयत से नगरसेठ की हवेली में घुसता है। वहाँ वो सेठ की बीमार बहू को देखता है जिसे अकेला छोड़कर सेठ का परिवार चला गया है। शाका के दिल में हमदर्दी पैदा हो जाती है और वो उसकी तीमारदारी करने लगता है।

यह सूचना मिलने पर एक पुलिस कांस्टेबल अपने अफसर से कहता है कि शाका को पकड़ने का अच्छा मौक़ा है। पुलिस अफ़सर जवाब देता है, पुलिस का काम मुजरिम को सज़ा देना ही नहीं बल्कि उसको सुधारना भी है। शाका सुधर रहा है।

लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले लोगों को सज़ा देने से ज़्यादा अच्छा व्यवहार सिखाने पर ज़ोर दिया जाये। लेकिन जो लोग फितरतन मुजरिम है, उनसे पुलिस अपने अंदाज़ में निपटे।

04. जनता पुलिस-प्रशासन का सहयोग करे :
पुलिस व प्रशासन के लोग अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। लॉकडाउन की सख़्ती से पालना करवाकर वे लोग बीमारी को कम्युनिटी लेवल पर फैलने से रोकना चाहते हैं। इसलिए उनका सहयोग करें, उनसे उलझने से बचें। इसके साथ ही डॉक्टर्स व नर्सिंग स्टाफ़ का भी सहयोग करें। वो लोग अपनी जान ख़तरे में डालकर हमारे मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं।

उम्मीद है यह ब्लॉग आपको उपयोगी लगा होगा। इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करके असली मीडिया को मज़बूत करें।

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