दुनिया की मुहब्बत और मौत का डर
यह एक मोटिवेशनल ब्लॉग है। इसमें इस बात पर भी चर्चा की गई है कि मुस्लिम समाज की बदहाली और बेक़दरी की वजह क्या है? इसे अंत तक ज़रूर पढ़ें।
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया, अनक़रीब दुनिया की सारी क़ौमें मुसलमानों पर इस तरह टूट पड़ेगी जिस तरह लोग खाने के लिये दस्तरख्वान पर टूट पड़ते हैं। सहाबा ने पूछा, क्या उस वक़्त हमारी तादाद बहुत कम हो जाएगी? आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमाया, तुम्हारी तादाद बहुत ज़्यादा होगी, मगर तुम में दो चीज़ें पैदा हो जाएगी, दुनिया की मुहब्बत और मौत का डर। उस वक़्त तुम्हारी हालत समंदर के पानी पर तैरने वाले झाग के जैसी मामूली होगी।
सोचिये, ग़ौर कीजिये, क्या ये हदीस आज हम पर लागू नहीं हो रही? यही तो है, हमारी बदहाली की असल वजह और हम अलग-अलग मुद्दों के ज़रिए चर्चाओं में लगे हैं। आइये, हम इस हदीस का मफ़हूम (भावार्थ) समझने की कोशिश करते हैं।
01. दुनिया की मुहब्बत का मतलब
क़यामत के दिन अल्लाह के अर्श के साये के सिवा, कहीं और साया नहीं होगा। सूरज ऐन सर के ऊपर होगा। उस परिस्थिति में अल्लाह तआला सात कैटेगरी के लोगों को अपने अर्श की छांव में पनाह देगा। उनमें से एक वो लोग होंगे जिन्होंने दुनयवी ज़िंदगी में ख़ालिस अल्लाह की रज़ा के लिये किसी से मुहब्बत या दुश्मनी की होगी।
■ दुनियादार इंसान का में'यार क्या होता है?
◆ वो दुनयवी फ़ायदों के लिये किसी से दोस्ती रखते हैं।
◆ जब किसी से कोई फ़ायदा हासिल नहीं होता तो वो लोग उससे किनारा कर लेते हैं।
◆ अगर कोई शख़्स उनके दुनयवी फ़ायदे की राह में रुकावट नज़र आता हो तो वो उससे दुश्मनी पाल लेते हैं। ऐसी कई मिसालें मौजूद हैं।
◆ दुनियादार लोग, अपने स्वार्थ की ख़ातिर या अपने अधीन रखने की हवस में अपने दीनदार रिश्तेदारों को भी चैन से जीने नहीं देते।
कई लोग दुश्मनी में इतने अंधे हो जाते हैं कि बरसों पुरानी दोस्ती और ख़ून के रिश्तों को भी अपने दुनयवी फ़ायदों के लिये क़ुर्बान कर देते हैं।
यही तो दुनिया की मुहब्बत है कि हम आख़िरत के घाटे की भी परवाह नहीं करते। दुनिया की मुहब्बत का दूसरा मतलब यह है कि हम ऐशो-आराम की चीज़ों को हासिल करके या उन्हें हासिल करने की दौड़भाग में अल्लाह को भुला देते हैं और हम दुनियादारी की लज़्ज़तों में मशगूल हो जाते हैं।
02. मौत के डर का मतलब क्या है?
अल्लाह तआला का फ़रमान है, हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है।
मौत से कोई नहीं बच सकता। चाहे वो कोई भी तदबीर (युक्ति) कर ले। जिस दिन, जिस घड़ी मौत आनी है, वो आकर रहेगी। उसे कोई नहीं टाल सकता। जो चीज़ हक़ीक़त है, उससे मुंह चुराना ही तो मौत का डर है।
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का फ़रमान है, दुनिया में इस तरह रहो, जैसे कोई मुसाफ़िर रहता है।
अभी देश में लॉक डाउन है। बहुत से लोग किसी दूसरे शहर में अटके हुए हैं। सरकार की तरफ़ से स्पेशल ट्रेन्स चलाने का ऐलान होता है तो हर शख़्स अपना सामान बांधकर रेडी हो जाता है कि न जाने कब रवानगी का मैसेज आ जाए।
मुसलमान की ज़िंदगी हर दिन ऐसी ही होनी चाहिये। लेकिन हम तो उस सफ़र से दूर भाग रहे हैं, तैयारियों की तो बात ही छोड़ दीजिये।
■ दुनिया की मुहब्बत और मौत का डर छोड़ने से क्या मिलेगा?
सुकून! जी हाँ, सुकून मिलेगा।
◆ जब दुनिया की मुहब्बत दिल से निकल जाएगी तो ज़िंदगी ख़ुशनुमा हो जाएगी। धन-दौलत की ख़ातिर कोई शख़्स रिश्तेदारी नहीं तोड़ेगा। दुनयवी लालच में कोई ताल्लुक़ात ख़राब नहीं करेगा। हसद, कीना, बुग्ज़, नफ़रत, जादू-टोना हर चीज़ ख़त्म हो जाएगी। कारोबार में नुक़सान हो गया, कोई प्यारी चीज़ छिन गई, किसी अज़ीज़ रिश्तेदार की मौत हो गई तो ज़बान से यही निकलेगा, अल्हम्दुलिल्लाहि अला कुल्लि हाल (हर हाल में अल्लाह ही तारीफ़ के लायक़ है)।
◆ जब मौत का डर दिल से निकल जाता है तो इंसान बहादुर हो जाता है। जब कोई इंसान कफ़न अपने साथ रख लेता है तो उसे दुनिया की कोई चीज़ डरा नहीं सकती।
जब मौत का डर दिमाग़ से निकल जाता है तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के मरीज़ के चेहरे पर भी सुकून नज़र आता है। वो जानता है कि उसे एक दिन मौत आनी है। उसे यक़ीन होता है कि अगर उसकी ज़िंदगी बाक़ी है तो सरकारी अस्पताल में भी इलाज कामयाब हो जाएगा और अगर मौत मुक़द्दर है तो अमेरिकी अस्पताल भी जान नहीं बचा सकता।
अंत में यही कहना है कि जो-कुछ ऊपर लिखा गया है, उस पर ग़ौर कीजिये। एकांत में बैठकर सोचिये। इसके साथ यह भी गुज़ारिश है कि इस ब्लॉग को शेयर करके नेकी फैलाने में मददगार बनिये। अन्य महत्वपूर्ण ब्लॉग्स पढ़ने के लिये More Blogs पर क्लिक करें।
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