कोरोना महामारी जाति-धर्म देखकर नहीं आती

कोरोना महामारी जाति-धर्म देखकर नहीं आती

क्या कोई बीमारी या महामारी धर्म के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव करती है? नहीं ना! तो फिर क्या ये बात अफ़सोसनाक नहीं कि कुछ लोग इसको भी जबरन धर्म के एंगल से देख रहे हैं। सैयद बलीग़ अहमद की इस छोटी-सी पोस्ट में इसी बात पर चर्चा की गई है। (चीफ़ एडिटर)

कोरोना! ये न हिन्दू देखता है, न मुसलमान और न सिख देखता है, न ईसाई। अगर ऐसा होता तो एक प्रतिष्ठित सर्राफ़ा परिवार के साथ ये दुःखद हादसा नहीं होता और देश में 432 इंसानों की मौत नहीं होती। यूरोपियन देशों में और पूरी दुनिया में हज़ारों लोग इससे नहीं मरते।

ये समय उन लोगों के सहयोग का है जो इस जानलेवा बीमारी से हमें बचाने में लगे हुए हैं, जिनमें चिकित्सा टीम में शामिल डॉक्टर, नर्सेज व पैरामेडिकल स्टाफ,पुलिस कर्मी, अन्य कर्मचारी आदि हैं।

मेरा सभी लोगों से निवेदन है कि आपके घर पर आने वाली कोरोना वॉरियर्स की टीम का दिल से स्वागत करें कि वो आपकी और आपके परिवार की जान बचाने के लिए ख़ुद की जान को जोखिम में डालकर आपके दरवाज़े पर आई है।

ख़ासकर मुस्लिम समाज से अपील है कि इस टीम को NPR और CAA से जोड़कर न देखें। ये NPR का कोई सर्वे नहीं है। आप जागरूक नागरिक होने का सुबूत दें और टीम का पूर्ण सहयोग करें।

मीडिया से मेरा निवेदन है कि अपनी ख़बरों में तड़का लगाने के लिए धर्म को कोरोना से न जोड़ें। आपके इस कृत्य के कारण समाज में बहुत वैमनस्यता फैल चुकी है और एक-दूसरे को लोग शक की नज़र से देखने लगे हैं।

इसके साथ ही मेरे सम्माननीय फ़ेसबुक और वाट्सएप दोस्त भी अगर अपनी संकुचित सोच को अपने तक सीमित रखें और यहां सोशल मीडिया पर ज़हर न फ़ैलाएं तो मुमकिन है कि हम रोगमुक्त भी होंगे और आदर्श समाज बना सकेंगे। अन्यथा नफ़रत की सोच के फैलाव के चलते, इस विशाल देश की सद्भाव और सौहार्द्र वाली छवि को बर्बाद हो जाएगी।

लिहाज़ा हम सब लोग मिलकर, इन विपरीत परिस्थितियों में अपने पड़ौसियों, ग़रीबों और मजबूर लोगों की मदद करें। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम सबका रब (पालनहार) हमारी मदद करेगा।

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