कोरोना-काल में इस्लामी शिक्षाएं

आज के आर्टिकल में हम कोरोना संक्रमण को रोकने के लिये किये जा रहे उपायों की तुलना इस्लामी शिक्षाओं से करेंगे। इस लेख में कई अनसुनी जानकारियां मिलेंगी, इंशाअल्लाह। इस लेख को पूरा पढ़ियेगा। (चीफ़ एडिटर)

01. फेस कवर

सरकारी निर्देशों के चलते, आज हर कोई मुंह पर मास्क लगाए हुए है। ऐसा छींक व खाँसी के समय, नाक व मुंह से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स को हवा में फैलने से रोकने के लिये किया जा रहा है। कोरोना के फैलने की वजह यही ड्रॉपलेट्स हैं।

अल्लाह के आख़री नबी, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), छींकने के समय कोई कपड़ा अपने मुंह पर रख लिया करते थे। वो हमेशा ऐसा किया करते थे और उनकी सुन्नत (पवित्र तरीक़ा), हर मुस्लिम के लिये आदर्श है। यानी छींकने-खाँसने के समय मुंह पर कपड़ा रखना शुरू से ही इस्लामी शिक्षा है।

02. मुंह, हाथ, पांव धोना

सरकारी गाइडलाइंस में कहा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण से बचने के लिये बार-बार हाथ-पांव धोते रहें। यह इसलिये कहा जा रहा है ताकि कोरोना वायरस हमारे शरीर में दाख़िल न हो।

इस्लामी शरीयत ने हर नमाज़ से पहले वुज़ू करने का आदेश दिया है। वुज़ू के दौरान मुंह, हाथ व पाँव अच्छे तरीक़े से धोये जाते हैं। इसके अलावा खाना खाने से पहले, खा चुकने के बाद और पेशाब-पाखाना करने के बाद अच्छी तरह हाथ धोना इस्लामी आदेश है।

जो लोग आधुनिक टॉयलेट्स में गंदगी साफ़ करने के लिये टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल करते हैं, वो भी अब साबुन-पानी से धोने की अहमियत समझने पर मजबूर हुए हैं। जबकि इस्लाम ने शुरू से ही पानी के ज़रिए गंदगी साफ़ करने का हुक्म दिया है।

03. पाकीज़गी की अहमियत

कोरोना संक्रमण रोकने के लिये, दरवाज़ों के हैण्डल, कुंडियों सहित उन सभी जगहों की साफ़-सफ़ाई रखने की ताकीद की जा रही है, जहाँ बार-बार हाथ लगते हैं। घरों-दफ्तरों के फर्श व दीवारों को सैनिटाइज़ करने के लिये कहा जा रहा है।

इस्लाम ने पाकीज़गी को आधा ईमान कहा है। एक अन्य हदीस में यह भी है कि मुसलमान नजिस (नापाक) नहीं होता।

इस्लाम ने यह तालीम दी है कि हर इंसान,
अपना शरीर पाक व साफ़ रखे।
अपने कपड़े साफ़-सुथरे रखे।
यहाँ तक कि अपने मन को भी बुरे विचारों से पाक रखे।

इस्लामी शरीयत से हमें, ऊद की लकड़ी व लोबान जलाकर, उसके सुगंधित धुंए से घर के वातावरण को पाक करने की दलील भी मिलती है।

04. हाथ न मिलाना, गले न मिलना

कोरोना संक्रमण से बचाव के नाम पर हाथ न मिलाकर नमस्ते करने की बात कही जा रही है। गले मिलने से भी मना किया जा रहा है।

अभिवादन के लिये हाथ मिलाना इस्लाम के साथ-साथ यहूदियों व ईसाईयों की भी परंपरा है। गले मिलने के बारे में अनेक हदीसों से यह जानकारी मिलती है कि पहले ज़माने में एक लंबे अर्से के बाद मिले लोग, गले मिलकर अभिवादन करते थे, यानी यह आम दिनों का रिवाज नहीं था।

मेडिकल सूत्रों के हवाले से यह बात पहले भी कही जा चुकी है कि कोरोना वायरस, शरीर के अंदर जाने के बाद सक्रिय होता है और घातक बनता है। हो सकता है कि कुछ दिनों बाद यह कहा जाए कि हाथ मिलाने या गले मिलने में कोई नुक़सान नहीं है। यह भी याद रहे कि एहतियात बरतने से इस्लाम मना नहीं करता।

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