कोरोना काल में भारत

कोरोना काल में भारत

यह लेख डॉ. फैज़ान आरिफ़ ने लिखा है। आप जोधपुर (राज.) के हैं और इस समय डावाओ सिटी, फिलीपींस में हैं, वहाँ आप एमडी कर रहे हैं।

यह लेख मैं आलोचक बन कर नहीं अपितु अपने अधिकारों की मांग के लिए लिख रहा हूं।

तारीख 22 मार्च 2020 को माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी से थालियाँ बजाने का आह्वान किया और भारतीय जनता ने यथा राजा तथा प्रजा, तथा राजा यथा प्रजा को सिद्ध करने में कोई कसर नही छोड़ी। बात यहां तक ही खत्म नहीं होती तारीख 3 अप्रैल 2020 को दीप जलवाकर और रोशनी करके कोरोना की इस लड़ाई में लड़ते हुए हमारे योगदान को इस कहावत के द्वारा दूसरी तरफ से सिद्ध भी किया गया।

सोशल मीडिया पर इस वक़्त मोदी विरोधी और मोदी समर्थक अपने अपने तर्कों पर अड़े रहे और दूसरी तरफ कोरोना हिन्दुस्तान में बाज़ी मार गया। क्या ही अच्छा होता इस वक़्त कोई पी.पी.ई. किट्स, हॉस्पिटल में सुविधाओं, बजट और आर्थिक मुद्दे को लेकर सवाल सवाल खड़े करता?

भारत देश को आर्थिक रूप से कमजोर कहने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि पीएम केयर फंड में हजारों करोड़ भारतीयों द्वारा दान स्वरूप दिया गया जिसके हिसाब के हम आज भी मुंतज़िर हैं। वहीं दूसरी तरफ स्वदेशी अपनाओ विदेशी भगाओ, देश का पैसा देश में ही रहे जैसे स्लोगनों से पहचाने जाने वाले बाबा रामदेव तथा ऑनलाइन आंदोलन कर सकने वाले अन्ना हजारे मीडिया पर नजर नहीं आए, हो सकता है कि मीडिया ही ने उन्हें नजरअंदाज किया हो।

अर्णव गोस्वामी इधर पुरानी वीडियो जिनकी सत्यता का उनके पास कोई प्रमाण नहीं था फिर भी न्यूज़ चैनल पर दिखा कर हिंदू मुसलमान तनाव पैदा कर गंगा जमुनी तहजीब को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं वहीं जिहाद स्पेशलिस्ट सुधीर चौधरी एक लंबे अरसे बाद जिहाद का मतलब जाने और वह भी तब जब उनके खिलाफ एफ.आई.आर हो जाती है। यह सब खेल देश की जनता की नाक के नीचे खेला जा रहा है और जनता के अधिकारों को पैरों तले कुचला जा रहा है। गरीब मजदूर, किसान, दिहाड़ी लोग आत्महत्या करने को मजबूर हैं और सरकारी तंत्र घोषणाओं पर घोषणा कर रहा है। आज अफसोस के साथ मैं अपने कांपते हुए हाथों से रजा़ मौरान्वी का एक शेर पेश कर रहा हूं कि

ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या?
भूख ही मज़दूर की ख़ूराक हो जाएगी क्या?

आज हालात ये हैं कि
शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं,
जिस ने सबके घर बनाए उस का घर कोई नहीं।

यहां मैं सिर्फ समस्या गिनाने को लेकर आपके समक्ष नहीं हूं अपितु एक नौजवान भारतीय नागरिक होने पर अपने विवेक के माध्यम से इन परेशानियों से हल का सुझाव भी आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं-

01. सबसे पहले यह प्रण ले कि एक मुस्लिम होने के नाते और एक हिंदू होने के नाते कभी ऐसी कोई पोस्ट नहीं करेंगे जिससे दूसरे वर्ग की धार्मिक भावना आहत हो।

जी हां सुनने में बड़ा अजीब है, मगर इसी के द्वारा आपको सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से ब्रेनवाश कर आपके अधिकारों की आवाज को दबा दिया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में जब भी देश पर संकट आया और जनता ने आवाज उठाने का प्रयत्न किया बिकाऊ मीडिया ने किसी ना किसी तरह से उन मामलों को हिन्दू-मुसलमान बना कर पेश किया तथा बचा हुआ काम व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इसे अपने कंधे पर लेकर अंजाम दिया और इस तरह देश की जनता को मूलभूत सुविधाओं पर सवाल उठाने से दूर रखा।

ज्ञात हो कोरोना ने हिंदुस्तान में दाखिल होते ही अपना मजहब ढूंढ लिया था इसलिए इस बात को हर एक नागरिक अमल में लाने की भरपूर कोशिश करें।

02. अंग्रेजी की कहावत है- We can't help everyone but everyone can help someone. जिसका अर्थ होता है, हम हर किसी की मदद नहीं कर सकते लेकिन हर कोई किसी ना किसी की मदद कर सकता है।

इस्लाम धर्म के पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि वह शख्स हरगिज़ कामिल ईमान वाला नहीं हो सकता है जो खुद पेट भर खाएं और अपने पड़ोसी को भूखा छोड़ दें।

आज हमें लाल बहादुर शास्त्री जैसे प्रधानमंत्री और उनकी नीतियों को याद करने की जरूरत है जिसमें उन्होंने जनता से एक वक़्त खाना नहीं खाने की गुजारिश की थी ताकि देश को अनाज की कमी से उबारा जा सके। आज वैसे ही प्रधानमंत्री और वैसी ही जनता की हमें जरूरत है जिन्होंने अपने मजबूत इरादों से भारत देश को आज इस मुकाम पर पहुंचाया जहां भारत दुनिया की बड़ी ताकतों में शुमार होता है।

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