कोरोना काल में बेरोज़गारी

जर्मनी ने बेरोज़गार होने से बचाया, अमेरिका ने बेरोज़गारी भत्ता दिया, भारत ने लोगों को अपने हाल पर छोड़ा

कोरोना महामारी के दौरान क़रीब-क़रीब सारी दुनिया लॉकडाउन में आ गई। इसका सबसे बड़ा असर कामकाज और रोज़गार पर पड़ा। सरकारी नौकरी वालों को तो सरकार से तनख्वाह मिल रही है लेकिन प्राइवेट नौकरियों और स्वरोज़गार वालों का हाल, बदहाल हो गया। आज के ब्लॉग में हम तीन देशों जर्मनी, अमेरिका और भारत में इस मसले पर क्या रुख अपनाया गया, इस मुद्दे पर चर्चा करेंगे।

जर्मनी
जर्मनी ने अपने देश के सारे नियोक्ताओं, यानी कंपनियों, दफ्तरों और दुकानों के मालिकों से कहा कि उनके पे-रोल में जितने भी लोग हैं, जितने भी कर्मचारी हैं, उन सबसे सिर्फ एक फॉर्म भरवा लें। कोई प्रमाणपत्र नहीं, कोई लंबी-चौड़ी प्रक्रिया नहीं, सभी को जितना वेतन पहले मिल रहा था, उसका 60% से 87% तक उनके खाते में जाने लगा।

जर्मनी में बेशक कामगारों को 100 फीसदी वेतन नहीं मिला, लेकिन नौकरी जाने से तो अच्छा था कि 60 से 87 फीसदी पैसा मिले। ऐसा करके जर्मनी की सरकार ने अपने नागरिकों को बेरोज़गार होने से बचा लिया। जर्मनी में 1 करोड़ लोगों को इस स्कीम का लाभ मिला है। जिन दिनों महामारी चरम पर थी यानी मार्च और अप्रैल में, उन दिनों जर्मनी में बेरोज़गारी की दर प्रतिशत से बढ़कर 5.8 प्रतिशत हुई, जो कि बहुत बेहतर प्रबंधन की एक मिसाल है।

जर्मनी ने यह नीति अपनाई कि किसी की नौकरी ही न जाए। होता यह है कि एक बार कंपनी किसी को निकाल देती है, तो वापस रखने में दिक्कत करती है। जर्मनी ने ऐसा करके कामगारों के साथ होने वाले मोल-भाव की स्थिति को ख़त्म कर दिया। जब अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटेगी, तो उन कामगारों को उनकी सैलरी फिर से पूरी मिलने लगेगी। अगर वे नौकरी से निकाल दिये जाते तो दो स्थितियां होतीं, या तो कंपनी दोबारा रखती नहीं या फिर वेतन बहुत कम कर देती।

अमेरिका
महामारी के चरम काल में अमेरिका में बेरोज़गारी की दर 4.4% से बढ़कर 14.7% हो गई। अमेरिका ने तय किया कि जो लोग बेरोज़गार हुए हैं, उन्हें भत्ता मिलेगा। अमेरिका में चार करोड़ लोगों ने इस भत्ते के लिए आवेदन किया है। उनको बेरोज़गारी भत्ता मिल भी रहा है। अमेरिका में भी जर्मनी जैसी ही नीति है, लेकिन वहां आधे मन से लागू है। अमेरिका में बेरोज़गार होने पर आवेदन करना होता है, तब वहां केंद्र की तरफ से महामारी बेरोज़गारी भत्ता दिया जाता है जो कि 600 डॉलर (लगभग 45000 रुपये) का। अमेरिका ने भत्ता तो दिया, लेकिन सैलरी से बहुत कम दिया। जर्मनी ने पूरी सैलरी नहीं दी, लेकिन 60 से 87 प्रतिशत का भुगतान करा दिया। अब आइये देखते हैं हमारे देश का क्या हाल है?

भारत
भारत अकेला देश है, जहां 10 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गये। इनमें से करीब दो करोड़ लोग नियमित सैलरी वाले थे। एक आदमी के पीछे अगर आप चार आदमी भी जोड़ लें, तो इस हिसाब से 50 करोड़ की आबादी के पास आय नहीं है। भारत में बेरोज़गारी की चर्चा नहीं है। मीडिया चर्चा नहीं कर रहा है, क्योंकि उसको हिंदू-मुस्लिम मुद्दे से ही फुर्सत नहीं है। भारत में राजनीति करना सबसे आसान है। दुनिया में यही एक देश है, जहां रोज़गार एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है।

सरकार की बात छोड़िये, लोग भी इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं। भारत का युवा सिर्फ अपनी भर्ती परीक्षा की बात करता है, बेरोज़गारी और उससे संबंधित सबके लाभ की नीति पर बात नहीं करता है। देश के उच्च शिक्षण संस्थान ऑनलाइन एजुकेशन कोर्स चलाकर अपनी कमाई जारी रखने की कोशिश में हैं लेकिन उनके यहाँ से पढ़कर निकले कितने छात्रों के पास काम नहीं है, इसकी उन्हें कोई फ़िक्र नहीं है। कान्वेंट स्कूल्स ने तो मास्क बेचने का धंधा भी शुरू कर दिया है।

सरकार ने 20 लाख करोड़ के महा-पैकेज की घोषणा की, जो असल में तभी कारगर होगा जब उस पर ईमानदारी से काम हो और अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आ जाए। इसमें फौरी राहत कुछ नहीं है। दो-तीन महीने के लिये मुफ्त अनाज देने की घोषणा की गई है लेकिन तीन महीने से बेरोज़गार बैठे लोग बिजली-पानी का बिल भरने का पैसा कहाँ से लाएं, इसकी भी सरकार को कोई चिंता नहीं है। कामगारों को 60% वेतन देना या पर्याप्त बेरोजगारी भत्ता देना तो बहुत दूर की बात है।

सबसे बड़ी और हैरत की बात तो यह है कि नागरिकों का एक बड़ा तबक़ा इसकी मांग ही नहीं कर रहा है। सोशल मीडिया पर कुछ लोग मुसलमानों को हड़काने में अपनी राष्ट्रवादी शक्ति ख़र्च कर रहे हैं। उन्हें इस बात की ख़बर ही नहीं है कि उन्हीं के समाज का एक बड़ा हिस्सा नेटफ्लिक्स और एमएक्स प्लेयर्स जैसे प्लेटफार्म्स पर समाज व संस्कृति की धज्जियाँ उड़ाने वाली अश्लील वेब सीरिज़ देखकर सांस्कृतिक पतन का शिकार हो रहा है।

अन्त में हम आपसे यही गुज़ारिश करते हैं कि अपनी सोच का दायरा बड़ा कीजिये। जो-कुछ हो रहा है, उसे समझने की कोशिश कीजिये और हमारे साथ जुड़कर समाज-सुधार के अभियान में जुट जाइये। इस ब्लॉग को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों में शेयर कीजिये ताकि सबसे पहले वैचारिक मंथन शुरू हो सके।

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