कोरोना-फोबिया

पूरी दुनिया में एक डर का माहौल है। कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया है। अब तक जितनी जानकारियां उपलब्ध है उसके अनुसार पूरी दुनिया के क़रीब डेढ़ लाख लोग इससे इफेक्टेड हैं और अब तक चार हज़ार लोगों की इसकी वजह से मौत हुई है। दुनिया की कुल आबादी 700 करोड़ से ज़्यादा है, उसमें यह संख्या बहुत थोड़ी है।

पूरी दुनिया में करोड़ों लोग टीबी और कैंसर के मरीज़ हैं और हर साल लाखों लोग उनसे मरते हैं। इसी तरह और भी कई बीमारियां हैं, जो दुनिया में फैली हुई है लेकिन उनका इतना फोबिया या आतंक नहीं है। ये बीमारियां वैश्विक महामारी घोषित नहीं हैं। क्यों?? कभी आपने सोचा? आइये आज की इस पोस्ट में पॉइंट-टू-पॉइंट इसे समझने की कोशिश करते हैं।

01. पहले कोई बड़ी बीमारी पैदा करना, फिर उसके इलाज के नाम पर अरबों रुपये कमाना एक बहुत बड़ा कारोबारी हथकंडा है। इस साज़िश के प्लॉट पर बीस साल पहले एक फ़िल्म आई थी, मिशन इम्पॉसिबल-2 जिसमें बताया गया था कि एक बड़ा-सा गुब्बारा, जिसमें कायमेरा नामी बीमारी का वायरस है, वो उड़ता हुआ एक भीड़भाड़ वाली जगह पर फटता है और वो बीमारी फैल जाती है। फिर दवा कंपनी उसका इलाज बेचकर पैसा कमाती है।

02. टीबी और कैंसर अब फोबिया नहीं है क्योंकि अब उनका इलाज मौजूद है। हर साल लोग, अरबों-खरबों रुपये इन बीमारियों के इलाज में ख़र्च करते हैं।

03. इसी तरह कुछ साल पहले स्वाइन फ्लू का ज़ोर-शोर से हंगामा मचा था लेकिन बाद में लोगों को समझ में आ गया कि यह बुख़ार की एक किस्म है। यूनानी दवा जोशांदा और आयुर्वेदिक काढ़ा पीने से स्वाइन फ्लू कंट्रोल हो गया। इसलिए उसके नाम पर ज़्यादा बड़ा धंधा नहीं हो पाया।

04. याद रखिए, कोरोना भी फ़्लू की ही एक किस्म है। लेकिन इस बार वायरस निर्माता कंपनियां अपने धंधे में कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थीं इसलिए कोरोना की ज़ोरदार पब्लिसिटी की गई है। नेताओं को भी इस गेम में शामिल किया गया है। कोरोना-फोबिया के चलते हर देश की कोई समस्या पर्दे के पीछे चली गई है। भारत में भी अब कोई दिल्ली दंगों की चर्चा नहीं कर रहा है। कुछ दिनों बाद आपको मालूम होगा कि फलां दवा लेने या फलां वैक्सीन लगवाने से कोरोना ठीक हो जाता है। उसके ज़रिए दवा कंपनियां अरबों-खरबों रुपये कमाएगी।

05. हर साल करोड़ों लोग हवाई जहाज में सफ़र करते हैं। हर यात्री से कुछ सौ रुपये वैक्सिनेशन चार्ज के नाम पर वसूली की जाएगी तो कितने अरब रुपये दवा कंपनियों की जेब में जाएंगे? सोचिए।

06. दुनिया की हर मस्जिद में जमाअत से नमाज़ हो रही है। इस लेख के लिखे जाने तक किसी भी मस्जिद में कोरोना फैलने की कोई ख़बर नहीं है। फिर उमराह पर रोक का क्या तुक? कहीं ये हज-उमराह पर जाने वालों से टीका लगाने के नाम पर वसूली की तैयारी तो नहीं?

07. हमारे देश की ट्रेनों के जनरल डिब्बों में क्षमता से डबल-तिबल यात्री सफ़र करते हैं। अभी भी कर रहे हैं। अब तक सरकार ने जितनी सीटें-उतने टिकट जैसी कोई घोषणा नहीं की है। क्या वहां बीमारी फैलने का अंदेशा नहीं? फिर स्कूल-कॉलेज की छुट्टियां क्यों? कहीं ये पल्स पोलियो की तरह कोरोना वैक्सीन स्टूडेंट्स को पिलाने की तैयारी तो नहीं, जिसकी क़ीमत देश मे जारी विभिन्न टैक्सों पर सरचार्ज लगाकर जनता से वसूली जाएगी?

इंसान अल्लाह को भुलाकर ज़िंदगी बसर कर रहा है। अगर हमारे दिल में यह यक़ीन मज़बूत हो जाए कि शिफ़ा देना अल्लाह का काम है तो बड़ी से बड़ी बीमारी, इंसान की हैसियत के मुताबिक ख़र्चे में ठीक हो जाएगी। उस वक़्त मामूली समझी जाने वाली दवा भी असर करेगी, इंशाअल्लाह। सबसे बड़ी बात, मरीज़ को अल्लाह तआला बीमारी की तकलीफों को बर्दाश्त करने ताक़त दे देगा। हमने अपनी 50 बरस की ज़िंदगी में कई बार ऐसा देखा है। बात बस भरोसे की है। सलीम ख़िलजी चीफ़ एडिटर आदर्श मुस्लिम

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