कोरो ना (सिर्फ़ नहीं) कद बोले-ला हाँ (कब बोलेगा हाँ)?

यह धरती अल्लाह की है। इस पर अल्लाह की हर मख़लूक़ का हक़ है। लेकिन बहुत कम ही लोग इस हक़ीक़त को क़ुबूल करते हैं। कुछ जानवरों में भी यह बुराई पाई जाती है। एक मुहल्ले के कुत्ते, दूसरे मुहल्ले के कुत्ते को अपने यहाँ से भौंक-भौंककर निकाल देते हैं। यह कुत्ता-प्रवत्ति इंसानों में भी पाई जाती है। यह घर मेरा है, यह शहर मेरा है, यह देश मेरा है। इसलिए तुम नहीं रह सकते। इसके लिए सरहदें बनाई गई और शहरियत (नागरिकता) के क़ानून बनाए गए।

इससे भी बुरी बात हाकमियत (प्रभुत्व) जमाने की है। एक इंसान दूसरे इंसान को अपने अधीन रखना चाहता है। एक देश, दूसरे देश को अपना ग़ुलाम बनाकर रखना चाहता है। तबाही फैलाने वाले हथियारों की होड़ इसी सोच का नतीजा है। परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, लेज़र गाइडेड मिसाइल्स की कड़ी में एक और नाम है, जैविक हथियार।

दुनिया के कुछ स्वार्थी देशों ने बीमारियों को भी एक हथियार का रूप दे दिया है। इस धरती पर हम रहें, वो न रहे की मानसिकता के चलते कई जानलेवा वायरस, लैबोरेट्रीज़ में पैदा किये गए। कभी-कभी इसका उल्टा असर भी होता है और वायरस फैलाने वाले ख़ुद भी उसकी चपेट में आ जाते हैं।

शैतानी सोच वाले लोगों का शिकार आम आदमी बनता है। लेकिन याद रखने वाली बात यह है कि अल्लाह ने जो भी बीमारी पैदा की, उसका इलाज भी उसने पैदा किया है। कोई भी बीमारी ला-इलाज नहीं है।

कभी कोई बीमारी, अल्लाह के अज़ाब के कारण महामारी बनकर फैलती है तो कभी इन्सानों की शैतानी चालों के कारण फैलती है। मगर दोनों ही कंडीशन में आम इन्सानों के पास एक रास्ता है और वो है, अल्लाह की पनाह पकड़ना। जब इंसान अल्लाह की तरफ़ पलटता है तो उसकी हैसियत के दायरे में इलाज मुहैया कराने का अल्लाह इंतज़ाम फरमा देता है।

मगर आज के इंसान की फितरत यह हो गई है कि वो तकलीफ़ के दिनों में भी अल्लाह को याद नहीं करता। बेशक अस्बाब (रिसोर्स) इख़्तियार करने चाहिए लेकिन भरोसा मुसब्बुल-अस्बाब (सोर्स ऑफ़ रिसोर्स) पर करना चाहिए।

जब इंसान अपने ख़ालिक़ (रचयिता), मालिक (स्वामी) और रब (पालनहार) को भुलाकर उसे कोरो ना (सिर्फ़ ना) कहता है तो उसे कोरोना जैसी बीमारियों का शिकार बनना पड़ता है। हम एक बार फिर दोहराकर कहते हैं कि कोरोना वायरस स्वार्थी लोगों की साज़िश है लेकिन अगर दुनिया के इंसान अल्लाह के वफ़ादार बन जाएं तो यक़ीनन ये बीमारी कुछ ही दिनों में उसी तरह कंट्रोल हो जाएगी जिस तरह स्वाइन फ्लू, निपाह, इबोला जैसी बीमारियां कंट्रोल हुई थीं। ज़रूरत सिर्फ़ इस बात की है कि हम अपने रब की तरफ़ पलटें और उसके कलमे को हाँ कहें।

नोट : टाइटल में इस्तेमाल किए गए शब्द मारवाड़ी भाषा के हैं जिनका ब्रैकेट में हिंदी अनुवाद दिया गया है।

Leave a comment.