बर्थडे मनाने का इस्लामी तरीक़ा
आप सोच रहे होंगे कि बर्थडे सेलिब्रेशन जैसी अंग्रेज़ी बला का इस्लाम से क्या ताल्लुक़? चलिये पूरा मैटर समझने की कोशिश करते हैं।
असल बात यह है कि हमारे समाज में क्रिस्चियन मुसलमानों की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। टीवी-मोबाइल पर वेस्टर्न कल्चर वाले प्रोग्राम और फिल्में देखकर वे और क्या सीखेंगे? बर्थडे पार्टियों पर होने वाला ख़र्च दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और इसके साथ ही बेहूदगी भी हदें पार कर रही है।
सबसे पहली बात, अपनी जन्म की तारीख़ और वार याद रखना कोई बुरी बात नहीं है। अगर कोई शख़्स यह कहता है कि मैं फलाँ दिन या फलाँ वार को पैदा हुआ तो उसमें कोई हर्ज नहीं है।
असल मसला है बर्थडे (जन्मदिन) और बर्थडेट (जन्मतिथि) के सेलिब्रेशन का। इसी मुद्दे पर हम आपके सामने एक हदीस रखते हैं, इसे ग़ौर से पढ़ियेगा।
अबू क़तादा अंसारी (रज़ि.) से रिवायत है कि उन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूछा, "या रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)! आप सोमवार के दिन रोज़ा क्यों रखते हैं? आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जवाब में इरशाद फ़रमाया, मैं सोमवार के दिन पैदा हुआ था और उस दिन मुझ पर पहली बार वह्य नाज़िल हुई थी।"
(सहीह मुस्लिम, हदीस न. : 2747)
इस्लामी साल में 354 दिन होते हैं। साल में क़रीब 50-51 बार, वो वार आता है जिस दिन हमारा जन्म हुआ। अब अगर किसी भाई या बहन को, अपना या अपने बच्चों का, "जन्मदिन मनाने का अरमान" है तो वो अपना अरमान ज़रूर पूरा करे, मगर साल में 50 रोज़े रखकर।
जो लोग रोज़ा रखने की सुन्नत पर अमल नहीं कर सकते तो फिर वे लोग केक काटने, तिकोनी टोपी लगाने, मोमबत्तियां बुझाने, खाने-पीने, नाचने-गाने, उछलने-कूदने और "अश्लील हरकतों की अवर्णनीय" बिदअत समाज में क्यों फैला रहे हैं?
हर वक़्त हम ये शिकवा करते हैं कि हमें मुसलमान होने की वजह से सताया जा रहा है। लेकिन क्या वाक़ई में हम सच्चे मुसलमान हैं? सोचिये, ग़ौर कीजिये और ख़ुराफ़ातों से दूर रहने का अज़्म कीजिये। अगर आप इस सोच से सहमत हों तो इस ब्लॉग को शेयर कीजिये।
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़ आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान
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