बिल्ली के गले में घंटी

बिल्ली के गले में घंटी

बरसों पुरानी एक कविता

जब मैं प्राइमरी क्लास में पढ़ता था, तब एक कविता हमारे हिंदी के सिलेबस में थी।

नोट : जो लोग *व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर हैं, या ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट हैं, उनसे विनम्र निवेदन है कि आगे दी गई इस अदना-सी कविता को न पढ़े। कहीं ऐसा न हो कि इससे उनकी भावना मैडम आहत हो जाए और वे ख़फ़ा होकर ज्ञानभरी टिप्पणियाँ करने लगें। बहरहाल कविता इस प्रकार है,

एक बार चूहों ने मिलकर,
की पंचायत गुस्से में भर।
बिल्ली हमको बहुत सताती,
खोज-खोज कर है खा जाती।

यही हाल जो रहा अगर अब,
भाई होंगे जल्द खतम सब।
जब तक बिल्ली बनी रहेगी,
जान हमारी टंगी रहेगी।

बोला एक, कभी पा जाऊँ,
लगा अड़ंगी मार गिराऊँ।
कहा एक ने, दुम नोंच लूँ,
दुमकट बोला, कान तोड़ लूँ।

बोला उठकर मोटा मूसा,
पकड़ पूँछ मारुँगा घूँसा।
बूढ़ा चूहा बड़ा सयाना,
चुप बैठा था बन अंजाना।

मंद-मंद बोला यों आकर,
सुन लो बेटा, कान लगाकर।
एक बात मुझको बतलाओ,
है कितनी हिम्मत समझाओ।

है कोई उसकी मूँछ उखाड़े,
मुँह पर चढ़कर थप्पड़ मारे?
जो नेता थे, बैठे आगे,
दुम दबाकर पीछे भागे।

तोड़ सभा का तब सन्नाटा,
बूढ़ा गरजा, सबको डाँटा,
जब तक कोरी बात करोगे,
जीत न बिल्ली को पाओगे।

नन्हा चूहा तब आगे आया,
इक रस्सी और घंटी लाया।
बांधो गले बिल्ली के घंटी,
पा जाओ हर डर से छुट्टी।

बिल्ली जब कभी आएगी,
टन-टन घंटी बज जाएगी।
सभा में फिर छाया सन्नाटा,
इतना साहस कौन जुटाता?

बड़ा सवाल, आए कौन आगे
जो गले बिल्ली के घंटी बांधे?

पाठकों की सेवा में विनम्र निवेदन है कि इस पोस्ट में चूहा एक प्रतीक-मात्र है, कृपया अन्यथा न लें और इस कविता के ज़रिए दिए गए संदेश को समझने की कोशिश करें। फिर भी अगर किसी को बुरा लगा हो तो हम माफ़ी के तलबगार हैं। -

सलीम खिलजी
(चीफ़ एडिटर, आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान

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Comments (1)
Dheeraj pandey

कृपया इस के कवि का नाम यदि पता हो तो बताएं

Fri 13, Jan 2023 · 06:38 am · Reply