भीलवाड़ा मॉडल बिना लॉकडाउन भी नाकाफ़ी

एकांतवास या कुछ लोगों की नज़र में गृह-कारावास (Home Jail) में रहते हुए 14 दिन बीत चुके हैं। कई लोगों के मन में एक सवाल कौंध रहा है, क्या लॉकडाउन ने भारत को कोरोना के कहर से बचा लिया? इस सवाल का जवाब हाँ में तो है लेकिन पूरी तरह से ख़तरा टला नहीं है। आप सोच रहे होंगे, यह कैसे? इससे पहले आप राजस्थान सरकार के उस क़दम के बारे में जान लें जिसकी पूरे देश में तारीफ़ हो रही है।

■ कोरोना कंट्रोल का भीलवाड़ा मॉडल क्या है?

भीलवाड़ा, राजस्थान का एक औद्योगिक शहर है। यहाँ टेक्सटाइल की काफ़ी इंडस्ट्रीज़ हैं। राजस्थान में सबसे ज़्यादा 27 कोरोना पॉज़िटिव के मामले इसी शहर से सामने आए। राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने इसे अति-गंभीरता से लिया।

पूरे भीलवाड़ा ज़िले को सील कर दिया गया। हर किस्म की आवा-जाही पर पाबंदी लगा दी गई। उसके बाद शुरू की गई, हर नागरिक की स्कैनिंग। रिकॉर्ड 22 लाख लोगों की जाँच की गई। कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों के इलाज में पूरी चौकसी बरती गई। नतीजा अनुकूल आया, इस पोस्ट के लिखे जाने तक 27 में से 17 मरीज़ ठीक हो चुके थे और बाक़ी में भी तेज़ी से सुधार आ रहा है।

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के इस अभिनव प्रयोग की पूरे देश में भीलवाड़ा मॉडल के नाम से चर्चा हो रही है। राजस्थान के अन्य शहरों में भी कोरोना संक्रमण की जाँच त्वरित गति से की जा रही है। सघन आबादी वाले क्षेत्रों में लोगों की आवा-जाही को नियंत्रित करने के लिये गलियों और सड़कों पर बैरिकेडिंग की गई है। कई जगहों पर एहतियातन कर्फ़्यू भी लगाया गया।

■ क्या लॉकडाउन से संक्रमण का ख़तरा कम हुआ?

क्या लॉकडाउन ने कोरोना वायरस से संक्रमण पर रोक लगाने में सफलता दिलाई है और अगर दिलाई है तो किस हद तक? भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की हालिया रिपोर्ट में इन सवालों का सकारात्मक जवाब मिलता है।

ICMR की स्टडी के रिजल्ट्स बताते हैं कि लॉकडाउन नहीं हो और सोशल डिस्टैंसिंग का ख्याल नहीं रखा जाए तो कोविड-19 का एक मरीज 30 दिन में औसतन 406 लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमित कर सकता है। लेकिन, अगर लोगों को सामाजिक मेल-मिलाप में 75% की कटौती कर दी जाए तो 2 संक्रमित व्यक्ति, 30 दिन में, क़रीब 3 से 8 लोगों को ही संक्रमित कर पाएंगे।

स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अगरवाल ने मंगलवार 7 अप्रैल 2020 को यह खुलासा किया।

■ सोशल वैक्सीन है सोशल डिस्टैंसिंग

लव अगरवाल ने इसका हवाला देकर लोगों से लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों का पालन करते हुए घरों में रहने की अपील की। उन्होंने कहा, 'हमें समझना होगा कि कोविड-19 पर काबू पाने के लिहाज से यह बहुत जरूरी है।' उन्होंने बताया कि अभी के समीकरण से स्पष्ट है कि एक संक्रमित व्यक्ति 1.5 से 4 लोगों के बीच कोविड-19 फैला सकता है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन का यह कहना है बिल्कुल सही है कि कोरोना को नियंत्रण में रखने के लिहाज से सोशल डिस्टैंसिंग, सोशल वैक्सीन का काम करती है।

■ चीन-अमेरिका के पैटर्न से बड़ा खुलासा

ताज़ा रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि नोवल कोरोना वायरस अक्सर पारिवारिक सदस्यों और संगी-साथियों के क्लस्टरों को संक्रमित करता है। चीन में करीब-करीब 80% ट्रांसमिशन परिवारों के अंदर ही हुआ। अमेरिका में भी इसी तरह का पैटर्न सामने आ रहा है। इन ट्रेंड्स का सामने आना भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पूरा परिवार साथ रहता है जिसमें हर आयु वर्ग के लोग होते हैं। इस कारण हमारे देश में सोशल डिस्टैंसिंग कायम रख पाना बहुत कठिन है।

परिवार के बुजुर्गों में वायरस के संक्रमण से बड़ी कठिनाई पैदा हो सकती है जबकि कम उम्र को लोगों में संक्रमण के बाद भी कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ सकता है। इस कारण उनके वायरस का बड़ा वाहक बनने का खतरा रहता है।

अब आप समझ गये होंगे कि हमने इस पोस्ट की शुरुआत में भीलवाड़ा मॉडल की अहमियत का ज़िक्र क्यों किया था? लोगों को घरों में रोकने के बाद, तेज़ी से हर शहर के सभी नागरिकों की स्कैनिंग की जानी चाहिए ताकि प्रारंभिक चरण में ही कोरोना संक्रमण का पता चल सके। अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो लॉकडाउन का पूरा फ़ायदा मिल पाना मुश्किल है।

उम्मीद है आपको यह पोस्ट ज्ञानवर्धक लगी होगी। एक बार फिर आपसे अपील है कि इसे शेयर करके ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने में हमारी मदद करें।

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