भारी पड़ी दीन से दूरी : एक इबरतनाक सच्चा वाक़या

मुस्लिम समाज आईसीयू (ICU) में है। एक तरफ़ रिश्तों की राह तकती वे मुस्लिम बेटियाँ हैं जिनके बाप उनकी शादी नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि दूल्हों की डिमांड्स बहुत ज़्यादा हैं और उनको पूरा करने की उनकी हैसियत नहीं है। ऐसी ही एक सच्ची दास्तान हमने 31 मार्च 2021 के ब्लॉग मासूम बच्चियों की आहें कब तक अनसुनी की जाएंगी? में पेश की थी।
दूसरी तरफ़ कुछ ऐसे वेल सैटल्ड परिवार हैं जो एडजस्टमेंट नहीं कर पाने के सामाजिक बिगाड़ की वजह बन रहे हैं। आज का ब्लॉग हमारे एक दोस्त इंतेख़ाब फराश साहब की भेजी हुई पोस्ट पर आधारित है। यह सच्चा वाक़या जितना दर्दनाक है उतनी ही इसमें इबरत भी छुपी हुई है। इस ब्लॉग को निहायत ही ग़ौर से पढ़ियेगा।
इंतेख़ाब फराश साहब एक मैरिज काउंसिलर हैं। वे पुणे (महाराष्ट्र) में फ़ैज़ मैरिज ब्यूरो का संचालन करते हैं। उन्होंने लिखा है,
पिछले दिनों गांव गया था। मोहल्ले की नामी हस्ती, रिटायर्ड प्रोफेसर के घर की शिफ्टिंग हो रही थी। पूछने पर पता चला कि वे मोहल्ला ही नहीं बल्कि शहर भी छोड़ रहें हैं।
इंतेख़ाब साहब ने आगे लिखा, प्रोफेसर साहब और उनकी फैमिली पहले ही चली गई। उनके परिवार में एक लड़की है जो इंजीनियर (BE) है। एक लड़का है जो MBA है। प्रोफेसर साहब की बीवी हाईस्कूल की रिटायर्ड टीचर हैं यानी दुनयावी लिहाज से कंप्लीट वेल सैटल्ड फैमिली।
वो प्रोफेसर साहब मुहल्ले, मआशरे और मस्जिद के जिम्मेदारों में से थे। हमेशा इस्लामिक और हक़ की बात करते थे। बहुत सारे घरेलू झगड़े सुलझाने में उनका बड़ा हाथ रहा है। उनकी बात कोई नज़रंदाज़ नहीं करता था। तो फिर एकदम ऐसा क्या हुआ? एक वेल सैटल्ड फैमिली को अचानक बरसों से कमाई इज्ज़त और पहचान को छोड़कर शहर बदलने का फ़ैसला क्यों लेना पड़ा?
इंतेख़ाब फराश साहब ने कारण बताते हुए लिखा, दरअसल उनकी B.E. पास इंजीनियर बेटी ने सोसायटी के ग़ैर-मुस्लिम वाॅचमन के साथ भागकर शादी कर ली। बच्ची की इस हरकत से सारा परिवार शर्मिंदा हो कर शहर छोड़ने पर मजबूर हो गया।
■ क्या इस हादसे में सिर्फ़ वो लड़की ही जिम्मेदार है?
इंतेख़ाब साहब आगे लिखते हैं, प्रोफेसर साहब और उनकी बीवी ने अपने मआशरे में बच्ची की शादी के लिये बहुत कोशिशें की। अपने "फ़ैज मैरिज ब्यूरो" में 6 साल पहले ही नाम रजिस्ट्रेशन कराया था। रिश्ते जोड़ने वालों को हजारों रूपये दिये थे। फिर भी उनके कंडीशन्स और हिसाब से रिश्ता नहीं मिला।
आगे इंतेख़ाब साहब ने जो लिखा है वो मुस्लिम समाज के इलीट तबके के खोखलेपन को एक्सपोज़ करता है। उन्होंने लिखा, मैंने भी कई रिश्ते भेजे। हर बार कोई अलग वज़ह आगे करके इन्कार आता रहा। एक बार तो यह कहकर इंकार कर दिया कि लड़का, लड़की के हाईट के बराबर है, उससे थोड़ा हाइट में बड़ा चाहिये।
इंतेख़ाब साहब ने निहायत दर्दभरे अंदाज़ में आगे लिखा, जब सब्र का इम्तिहान लिया जाए, परवरिश में कमियां हो, वेस्टर्न कल्चर को सही और इस्लामिक कल्चर को पिछड़ापन समझा जाए तो इसका नतीजा यही होगा।
ये सही है कि मां-बाप सही हमदर्द और सच्चे ख़ैरख़्वाह होते हैं। वे हर हाल में अपने बच्चों का भला ही चाहते हैं। हर-एक को अपना बच्चा दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत और क़ाबिल लगता है।
हमारे समाज के इस इलीट तबके में ख़ूबियाँ देखने से पहले बेवजह की ख़ामियां देखी जाती हैं। अच्छा अख़लाक़ देखने के बजाय दुनयावी चीज़ें देखी जाती है।
प्रोफेसर साहब अगर थोड़ी-सी एडजस्टमेंट कर लेते तो वे इस शर्मिंदगी से बच जाते। हम इसे अल्लाह सुब्हानहु व तआला की मर्ज़ी कहकर हमारी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ नहीं सकते।
इंतेख़ाब फराश साहब ने आख़िर में बहुत ख़ूब बात कही है, याद रहे, दुनिया में हम ऐसी ज़िल्लत से बचने के लिए मस्जिद, मोहल्ला या शहर बदल सकते हैं। मगर हश्र के मैदान वाली ज़िल्लत से बचना नामुमकिन है।
हमें उम्मीद है कि आज के इस ब्लॉग ने भी आपको सोचने पर मजबूर ज़रूर किया होगा। समाज की और भी कई समस्याएं हैं, हम आइंदा ब्लॉग्स में उन्हें आपके सामने समाधान के साथ पेश करेंगे, इन् शा अल्लाह।
समाज-सुधार के इस मिशन को सहयोग देते हुए इस ब्लॉग को अपने दोस्तों-परिचितों में शेयर कीजिये। आप हमारे व्हाट्सएप नम्बर पर अपने सुझाव दे सकते हैं।
वस्सलाम,
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप न. 9829346786
Leave a comment.