भारत में एक साल में ग़रीबी हुई दोगुनी
साल 2006 से लेकर 2016 के बीच, 27 करोड़ 30 लाख लोग ग़रीबी के दायरे से बाहर निकलकर मध्यम वर्ग में शामिल हुए थे। लेकिन एक साल के कोरोना काल ने तस्वीर उलट दी है। रिसर्च के नये आंकड़ों के मुताबिक़ पिछले एक साल में जहां ग़रीबी बढ़ी है वहीं मध्यम वर्ग की एक बड़ी तादाद भी ग़रीब की कैटेगरी में आ गई है। इस स्पेशल रिपोर्ट में एक बहुत ही अहम मसले पर चर्चा की गई है, इसे अंत तक पढ़ियेगा।
साभार : आज तक
एक जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय एजेंसी प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) के अनुसार, पिछले एक साल में कोरोना महामारी की वजह से भारत में ग़रीबों की तादाद 6 करोड़ से बढ़कर 13 करोड़ 40 लाख हो गई है यानी सिर्फ 365 दिन में ग़रीबों की संख्या दोगुनी हो गई है। 45 साल बाद भारत सामूहिक ग़रीबी की श्रेणी वाले देशों में शामिल हो गया है।
सबसे पहले हम आर्थिक आधार पर बनाई गई कैटेगरीज़ को समझने की कोशिश करते हैं।
01. ग़रीबी की रेखा से नीचे : इस कैटेगरी में वो लोग आते हैं, जो ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतों का इंतज़ाम नहीं कर सकते। इस्लाम की परिभाषा में इन्हें फ़क़ीर कहा गया है।
02. ग़रीबी की रेखा से ऊपर : इस कैटेगरी में वो लोग आते हैं जो कश्मकश में गुज़र-बसर करते हैं यानी उनकी आमदनी ज़िंदगी की ज़रूरतों के लिये नाकाफ़ी (अपर्याप्त) होती है। इस्लाम के अनुसार उन्हें मिस्कीन कहा जाता है।
03. मध्यमवर्गीय : इस दर्जे में वे लोग आते हैं जिनका जीवन-स्तर बेहतर होता है और जो अपने परिवार की सभी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के बाद कुछ बचत भी कर लेते हैं। हमारे देश में 60 करोड़ के आसपास मध्यमवर्ग की आबादी बताई जाती है। इनमें मेडिकलकर्मी, आईटी वर्कर, छोटे व्यवसायी, सरकारी कर्मचारी आदि शामिल हैं।
04. अमीर : ये वो लोग होते हैं जिनके पास धन की कोई कमी नहीं होती। इनका रहन-सहन हर मामले में उच्चस्तरीय होता है। हैरानी की बात तो यह है कि कोरोना काल जैसी विकट परिस्थितियों में भी अम्बानी-अडानी सहित देश के अधिकांश उद्योगपतियों की संपत्ति में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है।
बार-बार लॉकडाउन लगने से देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरी चोट लगी है, जिसकी सीधी मार ग़रीब व मध्यमवर्ग पर पड़ी है। पिछले एक साल में मध्यमवर्ग की एक तिहाई आबादी ग़रीब की कैटेगरी में आ गई है। रिपोर्ट्स में यह भी कहा जा रहा है कि देश में इस महामारी के चलते जितने ज़्यादा अर्से तक लॉक डाउन जैसी पाबंदियां रहेंगी, भारत में ग़रीबी की समस्या उतनी ही तेज़ी से बढ़ती जाएगी।
एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि अमीरी-ग़रीबी की खाई के बढ़ने का कोरोना महामारी से क्या संबंध है? इसके जवाब में यह जान लीजिये कि पूंजीवादी व्यवस्था ऐसे हालात में ही पनपती है। अब आप कहेंगे कि भला इस तर्क के पीछे क्या तुक है, तो आइये हम इसके पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं।
मध्यमवर्ग की बड़ी आबादी के ग़रीब होने का असर यह होगा कि आईटी सहित बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों को पहले से कम वेतन पर काम करने का दबाव बनाएंगी। नौकरी छूटने के डर से ज़्यादातर लोगों के पास उनकी बात मानने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होगा। इसके अलावा औद्योगिक यूनिट्स भी अपनी लेबर को कम तनख्वाह में काम करने या काम के घण्टे ज़्यादा करने का दबाव डालेंगी। नतीजा यह होगा कि उनकी प्रोडक्शन कॉस्ट घटेगी, जिसकी वजह से उनके मुनाफ़े में बढ़ोतरी होगी।
शायद इसी को कहते हैं, "आपदा में अवसर।" यह लेखक के अपने विचार हैं, आप सहमत हो सकते हैं और असहमति भी जता सकते हैं। हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा। नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय दीजिये। अगर ये आर्टिकल आपको पसंद आया हो तो आगे से आगे शेयर कीजिएगा।
सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़,
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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