भलाइयों को फैलाना और बुराइयों से रोकना* (आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी : पार्ट-05 आख़री
अल्हम्दुलिल्लाह! आदर्श मुस्लिम अख़बार के आदर्श मीडिया नेटवर्क के ज़रिए पेश किये जा रहे ख़यालात को लोगों का समर्थन मिल रहा है। आज के ब्लॉग को शुरू करने से पहले, पिछले ब्लॉग्स से सम्बंधित कुछ सवालों के जवाब।
■ कुछ लोगों ने यह जानना चाहा है कि अखंड भारत के लिये अभियान कैसे चलाया जाए?
जवाब : अखंड भारत के विचार को समर्थन देने के लिये शुक्रिया। इन् शा अल्लाह! बहुत जल्द हम इसकी पूरी रूपरेखा पेश करेंगे।
■ *कुछ लोगों ने यह जानना चाहा है कि हिंदू समाज के लोगों में मुसलमानों के बारे में फैली ग़लतफ़हमियां दूर कैसे की जाएं?
जवाब : इसका सबसे बेहतर तरीक़ा यह है कि सिर्फ़ बातें करने के बजाय *छोटी-छोटी सुन्नतों पर ही अमल करना शुरू कर दें। सिर्फ़ ज़बान से नहीं बल्कि अपने अमल से यह साबित करें कि इस्लाम का मतलब सलामती व रहमत है और मुसलमानों का काम उस रहमत को आम करना है। इस्लाम धर्म से सम्बंधित ग़लतफ़हमियां दूर करने के लिये अच्छी किताबें हिंदू भाई-बहनों को फ़्री गिफ़्ट करें।
■ कुछ लोगों ने सवाल किया है कि हिंदू समाज में लव जिहाद, जनसंख्या बढ़ोतरी, एक से ज़्यादा शादियां, गज़वा-ए-हिंद, धर्मांतरण जैसे मुद्दों को लेकर जो ग़लत धारणाएं है, उसको कैसे दूर किया जाए?
जवाब : हम बहुत जल्द, अपने यूट्यूब चैनल पर इन सभी मुद्दों के तसल्लीबख़्श जवाब *प्रोपेगैंडा और हक़ीक़त सीरीज़ के तहत देने की कोशिश करेंगे।
अब हम आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी से सम्बंधित पांचवें पॉइंट पर चर्चा करेंगे, इन् शा अल्लाह!
05. अच्छी बातों को फैलाना व बुरे कामों से रोकना मुसलमानों का फ़र्ज़ है।
अल्लाह तआला ने मुसलमानों को ख़ैरे-उम्मत कहा है। भलाइयों को फैलाना और बुराइयों से रोकना मुस्लिम क़ौम की ज़िम्मेदारी बताया है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि मुस्लिम समाज इस फ़र्ज़ को अदा नहीं कर रहा है, इसीलिये दुनिया में ज़िल्लत का शिकार है।
आज हर तरफ़ बिगाड़ और अराजकता की स्थिति है। मुस्लिम समाज भी उससे बचा हुआ नहीं है। एक बात अक्सर कही जाती है कि भली बातों का हुक्म तो बहुत-से लोग देते हैं लेकिन वे बुराइयों का विरोध खुलकर नहीं करते। यह बात बिल्कुल सही है। लोग दीने-इस्लाम की दावत में भी अपनी सुविधा देखते हैं।
अगर किसी बुराई को बुराई कहने पर, या उस बुराई का विरोध करने पर कोई दोस्त, रिश्तेदार या परिचित नाराज़ हो, तो भले ही हो जाए, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिये कि अल्लाह तआला नाराज़ नहीं होना चाहिये।
किसी नेकी की बात का कहना बहुत आसान है लेकिन ख़ुद उस नेकी पर अमल करना उससे ज़्यादा मुश्किल है। किसी बुराई या समाज में फैले रस्मों-रिवाजों का खुलकर विरोध करना बड़ी हिम्मत का काम है। लेकिन यह विरोध करना तब आसान हो जाता है जब हम उस बुराई या रस्म या रिवाज से ख़ुद को रोक लेते हैं। इसलिये यह ज़रूरी है कि समाज में जो भी बुराई है हम उसका खुलकर विरोध करें, चाहे वो शादी के मामले में हो या मौत-ग़मी के मामले में हो।
◆ लड़की वालों को चाहिये कि निकाह का एहतिमाम मस्जिद में करें और दावत न करें।
◆ हर मुसलमान को चाहिये कि जब उसके घर लड़की वालों के यहां से दावतनामा आए तो पहले ही बता दे कि हम निकाह में आएंगे लेकिन बारात की दावत में शरीक नहीं होंगे।
◆ अगर वलीमा या अक़ीक़ा की दावत में आर्केस्ट्रा, नाच-गाना, आतिशबाज़ी या और कोई ग़ैर-शरई काम हो रहा हो तो उसका बायकॉट करें।
◆ मौत-मय्यित के मौक़े पर की जाने वाली दावतों का भी बायकॉट करें। मय्यित के घर वालों को समझाएं कि किसी ग़रीब-मिस्कीन के घर राशन भिजवाना सवाब के लिहाज से सबसे बेहतर काम है।
◆ ज़िंदगी के हर मामले में फ़िज़ूलख़र्ची से बचें और ऐसे कामों में भी शामिल न हों।
मुस्लिम समाज में फैली बुराइयों को कैसे रोका जाए? इस मुद्दे पर हमने पहले भी बहुत सारे ब्लॉग्स व आर्टिकल्स लिखे हैं। समाज सुधार सीरीज़ के तहत हम आइंदा भी मुस्लिम समाज में फैली बुराइयों की निशानदेही करते रहेंगे और उन्हें रोकने की तदबीर भी पेश करेंगे, इन् शा अल्लाह!
आख़िर में आपसे यही गुज़ारिश है कि आप इस ब्लॉग को शेयर करके समाज सुधार के मिशन में हमारा साथ दें। सलीम ख़िलजी (एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क) जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम न. 9829346786
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