पार्ट-02 : भगवा लव ट्रैप में फंसती मुस्लिम लड़कियां, ज़िम्मेदार कौन?

अच्छा लिखना या अच्छा बोलना, ये सब अल्लाह की इनायत है जो उसने हमें अता की है। सभी रीडर्स का शुक्रिया जिन्होंने इस ब्लॉग के पहले पार्ट को पसंद किया।
हर समस्या का समाधान हो सकता है अगर हमें यह पता हो कि वो समस्या किस वजह से पैदा हुई है। इस ब्लॉग के पहले पार्ट में हमने जानकारी देने की कोशिश की थी कि मुस्लिम लड़कियों को कैसी मॉडर्न एजुकेशन देनी चाहिये? आज के ब्लॉग में हम एक और अहम मुद्दे पर आपका ध्यान आकर्षित कराने की कोशिश करेंगे, इं-शा-अल्लाह!
सामाजिक अराजकता के लिये काग़ज़ी डिग्रियां ज़िम्मेदार कैसे है?
इस्लाम ने तालीम हासिल करना हर मुस्लिम मर्द व औरत पर फ़र्ज़ किया है लेकिन क्या कभी हमने सोचा कि कौनसी तालीम हासिल करना फ़र्ज़ है?
असली तालीम वो है जो इंसान को उसके हक़ीक़ी रब की पहचान कराए। उसे सही मा'नों में इंसान बनाए ताकि वो एक ऐसा समाज बनाए जिसमें एक-दूसरे के प्रति हमदर्दी हो और भाईचारा हो। तालीम के ज़रिए से एक ऐसा समाज बने जिसमें किसी भी इंसान का किसी भी प्रकार से शोषण न हो। ऐसी तालीम हासिल करना हर मुस्लिम मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है।
अब बात मॉडर्न एजुकेशन की। मुस्लिम समाज में लड़कियों को मॉडर्न एजुकेशन तीन वजहों से दिलाई जा रही है।
01. लड़की पढ़-लिखकर ऐसे जॉब करे जिससे समाज का भला हो और उसे कुछ आमदनी भी मिल जाए। ऐसे कुछ जॉब्स का ज़िक्र हमने इस ब्लॉग के पहले पार्ट में किया है जो हमारी वेबसाइट www.adarshmuslim.com और हमारे फेसबुक पेज पर उपलब्ध है।
02. पढ़-लिखकर वो मुस्लिम लड़की कोई भी जॉब कर सके ताकि वो पैसे कमाए और अपने पति या पिता पर निर्भर न रहे।
03. उस मुस्लिम लड़की की शादी आसानी से हो सके।
इन तीनों कारणों में पहला कारण सराहनीय है लेकिन दूसरा व तीसरा कारण सामाजिक अराजकता की वजह बन रहा है।
जब कोई लड़की समाज-हित के पाकीज़ा मक़सद के लिये तालीम हासिल करती है तो उसके लक्ष्य में कोई भटकाव नहीं आता। इसके बरअक्स अगर कोई लड़की ख़ुदकफ़ील (आत्मनिर्भर) बनने या शादी में आसानी के लिये मॉडर्न एजुकेशन हासिल करती है तो यही एजुकेशन सामाजिक बिगाड़ की वजह बन जाती है।
कैसे? ….............
यह जानने के लिये नीचे दिया गया पैरा बहुत ध्यान से पढ़ें।
◆ लोग अपनी पढ़ी-लिखी, नौकरीपेशा लड़की के लिये उसके जैसा या उससे बेहतर लड़का तलाश करते हैं। उन लोगों की उम्मीदें इतनी बड़ी होती हैं कि उनकी यह तलाश मुकम्मल ही नहीं होती। जैसे-जैसे लड़की की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे उसके मन में बेचैनी बढ़ती है। उसे लगता है कि उसके मां-बाप उसके लिये उपयुक्त रिश्ता ढूंढने में नाकाम हैं। ऐसे में वो लड़की ग़ैर-मज़हबी लड़कों को अपना हमदर्द मान बैठती है और उनके भगवा लव ट्रैप में फंस जाती है। बात कड़वी है लेकिन हक़ीक़त पर आधारित है।
◆ बहुत-सी नौकरीपेशा लड़कियां शुरू में अपने लिये आए रिश्तों में मीन-मेख निकालती है जिसकी वजह से रिश्ता हो नहीं पाता। जब उम्र बढ़ने लगती है तो फिर विधुर-तलाक़शुदा मर्दों के रिश्ते आने लगते हैं। हमउम्र रिश्तों की चाहत में कई मुस्लिम लड़कियाँ ग़ैर-मज़हबी लड़कों की तरफ़ आकर्षित होकर भगवा लव ट्रैप में फंस जाती हैं।
◆ यह एक हक़ीक़त है कि मुस्लिम लड़के अपने से कम पढ़ी-लिखी लड़की से शादी करने में आनाकानी नहीं करते बल्कि उनके साथ ज़िंदगी निबाह भी लेते हैं। लेकिन आम तौर पर लड़कियां ऐसा नहीं करती। बेमतलब की काग़ज़ी डिग्री हासिल कर चुकी कथित मॉडर्न ख़याल लड़की अपने से कम पढ़े-लिखे लड़के से शादी नहीं करना चाहती, भले हो वो अच्छे घर का हो, कमाऊ हो, उसके अख़लाक़ अच्छे हों। नतीजा फिर वही होता है जो इस ब्लॉग का टाइटल है।
इसके अलावा कुछ और कारण भी हैं, जिनकी वजह से मुस्लिम लड़कियां भगवा लव ट्रैप में फंस रही हैं। अगर आप इस समस्या के सभी पहलुओं को जानना चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट www.adarshmuslim.com पर रेगुलर विज़िट करते रहें।
सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क
मोबाइल : 9829346786
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