बेटी सासरिये चाली

मॉडर्न बेटी राजी होय गी,
बाप, ब्याव राजसी खूब कियो।
शाही बाग में करयो जीमण,
गाड़ी-डायजो खूब दियो।।

कर मेकप नखराळी, बेटी सासरिये चाली।

सासु फखर करे अ'र नणदां लेवे बलाई,
मालदार बाप री बेटी खूब डायजो लाई।
सीख में लाई मेहंगा जोड़ा,
खूब म्हारो मान कियो।।

शान पीहर री दिखला ने, बेटी सासरिये चाली।

जे बेटी ने विरासत मिळती,
वा किरोड़पति बण जावती।
बीस लाख में पीछो छुट-गो,
भाई उणरो राजी खूब होयो।।

करोड़ गंवा, ले कौड़ी, बेटी सासरिये चाली।

पण गरीब री जिन्दड़ी धुल-गी,
जमीं बेटी रे ब्याव में बिक-गी।
अब बेटा भरे किरायो,
बाप गरीब धाप ने रोयो।

पीहर रो पतो गंवा-ने, बेटी सासरिये चाली।

इस कविता का संदेश यह है कि अमीर बाप, अपनी बेटी की शादी में कुछ लाख रुपये ख़र्च करके, विरासत में मिलने वाली बड़ी रकम को गोल कर जाता है। वहीं ग़रीब बाप नॉर्मल शादी करे तब भी बेटी को मिलने वाली विरासत से ज़्यादा ख़र्च हो जाता है। इस क्रोनोलॉजी को समझिए। अगर आप इस संदेश से सहमत हैं, तो इसे शेयर करके दूसरों तक पहुंचाने में हमारी मदद करें।

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