02. बेटी बचाओ-जातिवादी सोच मिटाओ

आज के दौर में हम दो बड़ी समस्याओं को देख रहे हैं, पहली समस्या यह कि मुस्लिम लड़कियों की वक़्त पर शादी नहीं हो पा रही है और दूसरी यह कि मुस्लिम लड़कियां ग़ैर-मुस्लिम लड़कों के साथ कोर्ट मैरिज या मंदिर में जाकर शादी कर रही हैं।


अगर हम ग़ौर करें तो दूसरी समस्या, पहली समस्या की वजह से पैदा हुई है। ऊपर दी गई दो तस्वीरों को देखिये, आपको पता चलेगा कि पिछले कई सालों से मुस्लिम लड़कियों के हिंदू बनकर हिंदू लड़कों से शादी करने का सिलसिला चल रहा है।

इस सीरीज़ की पहली कड़ी : बेटी बचाओ-बेटा पढ़ाओ में हमने बताया था कि किस तरह दुनियावी तालीम की ग़ैर-बराबरी ने यह हालात पैदा किये हैं कि आधुनिक शिक्षा, बहुत सी लड़कियों की शादी में रुकावट बन रही है।

इस कड़ी में हम दूसरी वजह पर चर्चा करेंगे और वह है, खोखली जातिवादी मानसिकता। हमारी गुज़ारिश है कि इस आर्टिकल को आख़िर तक पूरा पढ़ियेगा क्योंकि इसमें एक महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा की गई है।

इस्लाम ने जातिवाद-बिरादरीवाद को ख़त्म किया था लेकिन ग़ैर-मुस्लिमों की देखा-देखी यह रोग मुस्लिम समाज को गहराई तक जकड़ चुका है। शादी के मामले में अपनी जाति-बिरादरी से बाहर रिश्ता करना मुस्लिम समाज में ऐब माना जाता है। यह एक कड़वी सच्चाई है।

इसका समाधान यही है कि जातिवाद तोड़ो अभियान (Crash Castism Movement) चलाया जाए। ग़ैर-क़ौम में शादी की तो "लोग क्या कहेंगे" वाली सोच को बदला जाए। इसके लिये हमें क़ौम, क़बीला और जाति के बारे में थोड़ी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिये।

आज हमारे देश के हालात यह हैं कि अपनी जन्मजात जाति (Cast by Birth) पर बहुत से लोग गर्व करते हैं। उसके नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं मगर उसी जाति से जुड़ा काम, न वो ख़ुद करते हैं और न वे यह चाहते हैं कि उनके बच्चे वो काम करें। ऐसी मिसालें हर जाति में मिल जाएगी, अपने आसपास नज़र दौड़ाकर देखियेगा।

फ़िल्म स्वदेश में एक डायलॉग था, जो आकर कभी नहीं जाती, उसे "जाति" कहते हैं। यह भारतीय समाज की हक़ीक़त है और भारतीय मुस्लिम समाज भी इसी मानसिकता में बुरी तरह से जकड़ा हुआ है।

सबसे पहले यह जान लीजियेगा कि "कर्म आधारित जातिवाद (Work Based Castism)" का इस्लाम में बिल्कुल भी अस्तित्व नहीं है।

अल्लाह तआला ने तमाम इंसानों को एक समान कहा है। क़ौम व क़बीलों को सिर्फ़ पहचान का ज़रिया बताया है।

01. यह पहचान कोई जगह भी हो सकती है, मसलन

◆ हज़रत सुहैल (रज़ि०) रूमी (रोम का निवासी) कहलाते हैं।
◆ हज़रत बिलाल (रज़ि०) को हब्शी (अफ़्रीका का निवासी) कहा जाता है।
◆ हज़रत सलमान (रज़ि०) फ़ारसी (ईरान के बाशिंदे) के नाम से जाने जाते हैं।

ये तमाम हज़रात अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सहाबी थे जिनके लिये रज़ियल्लाहु अन्हु लफ़्ज़ इस्तेमाल किया जाता है।

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के हज्जतुल वदाअ के मौक़े पर दिये गये ख़ुत्बे में अरब के बाशिंदों के लिये अरबी और अरब से बाहर वालों के लिये अजमी लफ़्ज़ का इस्तेमाल हुआ है।

इसी परिभाषा के आधार पर अफ़ग़ानिस्तान के ग़ौर इलाक़े से संबंध रखने वाले को ग़ौरी, समन्दर किनारे यानी ख़लीज (खाड़ी) के इलाक़ों से निस्बत रखने वालों को ख़िलजी, पाकिस्तान के राज्य सिंध ताल्लुक़ रखने वालों को सिंधी कहा जाता है। इसी तरह तमिल, कन्नड़, बंगाली, मराठा, मारवाड़ी जैसी पहचान हज़ारों क़ौमों व क़बीलों की है।

02. किसी नामचीन शख़्स की औलाद, उसके नाम से क़बीले का रूप लेती है। जैसे कि

◆ हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) का एक नाम इस्राइल था, इसीलिये उनकी औलाद को बनी इस्राइल कहा जाता है।
◆ इसी तरह हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की औलाद इस्माईली कहलाई।
◆ हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की औलाद में से एक शख़्स क़ुसई की औलाद क़ुरैश क़बीला बनी।
◆ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के परदादा हाशिम के नाम पर हाशमी क़बीला वजूद में आया।

इसी तरह की और भी हज़ारों-हज़ार मिसालें दी जा सकती हैं।

लेकिन याद रखियेगा कि ..............

पहली बात : ऐसी कोई मिसाल इस्लाम में मौजूद नहीं है कि किसी "कर्म (Work)" की बुनियाद पर क़ौम या क़बीले का नाम रखा गया हो।

अगर ऐसा होता हो माफ़ कीजियेगा हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को लोहार कहा जाता क्योंकि वे लोहे की चीज़ें बनाया करते थे। किसी नबी या वली को दर्जी तो किसी को गुर्जर कहा जाता। ऐसी और भी सैंकड़ों मिसालें होतीं।

दूसरी बात : कर्म आधारित जातिवाद (Work Based Castism) हिंदुओं की पहचान है।

इसका सबूत मनुस्मृति में तो मिल सकता है लेकिन क़ुरआन व हदीस में कर्म आधारित जातिवाद की एक भी मिसाल मौजूद नहीं है।  

मुसलमान, अपना गुज़र-बसर करने के लिये जो भी काम-धंधा करता है, इस्लाम की नज़र में वो उसकी जाति नहीं है। दूसरे लफ़्ज़ों में यूँ भी कहा जा सकता है कि कोई काम या धंधा, इस्लाम की नज़र में किसी जाति-विशेष का विशेषाधिकार नहीं है।

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने क़ौमी अस्बियत (जातिवादी गर्व की भावना) को जहालत (अज्ञानता) कहा और उसकी मिसाल उस कीड़े से दी जो अपने नाक से गंदगी धकेलता है।

हमारी पहचान क्या होनी चाहिये?

क़ुरआन में इरशादे बारी तआला है, और मुझे हुक्म मिला है कि मैं सबसे पहले मुस्लिम बनूँ। (सूरह जुमर : 11)

इसके बाद बहस की कोई गुंजाइश बाक़ी नहीं रहती।

माफ़ कीजिएगा हर जातिवादी समाज में ऐसे हज़ारों लोग मौजूद हैं जिनके घरों में उस जाति के नाम से जुड़ा काम नहीं होता। उसके बावजूद वो लोग अपनी जातिवादी पहचान जताकर गर्व करते हैं।

कुछ मुसलमान ख़ुद को सैयद, हाशमी, सिद्दीक़ी, अलवी, मिर्ज़ा, पठान, मुग़ल कहकर अपनी श्रेष्ठता का दावा करते हैं लेकिन इस्लाम इस बात की भी इजाज़त नहीं देता।

इस मिसाल को याद रखियेगा, अबू लहब, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का सगा चाचा था। नस्ली ऐतबार से वो भी इस्माईली था, क़ुरैशी था, हाशमी था, मुत्तलबी था, लेकिन उसके बुरे कामों की वजह से अल्लाह तआला ने उस पर लानत फ़रमाई और उसका ज़िक्र क़ुरआन की "सूरह लहब" में किया।

जब बच्चों की शादी की बात चलती है तो यह जातिवाद का जिन्न बोतल से बाहर निकल आता है। अगर कोई इंसान इस जातिवादी बंधन को तोड़ने की कोशिश करता है तो उसका भाइपा यानी ख़ानदान, "भारतीय इब्लीस पार्टी" बनकर उसके सामने खड़ा हो जाता है।

अनेक मामले ऐसे देखने में आये हैं कि किसी की लड़की के लिये ग़ैर बिरादरी से कोई अच्छा रिश्ता भी आता है तो उसके घरवाले-ख़ानदान वाले अपनी नाक का सवाल बनाकर उसे इंकार कर देते हैं। वक़्त पर शादी न होने के कारण लड़कियां उन ग़ैर-मज़हबी लड़कों की तरफ़ माइल हो जाती हैं जो उनसे हमदर्दी भरी बातें करते हैं।

इसलिये हमारी अपील है कि अल्लाह के वास्ते इस जातिवादी पहचान के दायरे से बाहर निकलने की कोशिश करें। अभी और भी कई वजहें बयान की जानी बाक़ी हैं। हमारे साथ जुड़े रहियेगा।

अगर इस पोस्ट में लिखी कोई बात, किसी भाई या बहन को बुरी लगी हो तो हम माफ़ी के तलबगार हैं। अगर आप इन विचारों से सहमत हैं तो इसे आगे शेयर करें।

सलीम ख़िलजी
चीफ़ एडिटर
आदर्श मुस्लिम व आदर्श मीडिया नेटवर्क

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Comments (3)
Muhammad Muzakkir

माशाअल्लाह, बहुत ख़ूब। अल्लाह रब्बुल इज़्जत, सोशल मीडिया के ज़रिए मुस्लिम मुआशरे में जागरूकता लाने की आपकी इन तमाम कोशिशों और मेहनतों लगन के नेक अमल को क़ुबूल फरमाकर आपके इस नेक अमल में आपकी भरपूर मदद करें। अल्लाह रब्बुल इज़्जत आपके इस नेक अमल को क़ुबूल फरमाकर इसका अज़रों अज़ीम अता फरमाए। अल्लाह रब्बुल इज़्जत, मेरी क़ौम ए उम्मत को तमाम फितनों से, तमाम शर से महफूज़ करके, मेरी क़ौम-ए-उम्मत की इस्लाह फरमाकर पूरी क़ौम-ए-उम्मत को राहे दीन की राह पर चलादें। अल्लाह रब्बुल इज़्जत मेंरी क़ौम-ए-उम्मत की आपस की तमाम ना-इत्तेफाकियों को दूर करके पूरी क़ौम-ए-उम्मत में इत्तेहाद क़ायम नसीब फरमांदे। अल्लाह रब्बुल इज़्जत, जितनी भी मेरी क़ौम-ए-उम्मत में,मेरी तमाम बहनें निकाह की ख़ैरों आफियत से महरूम हैं, अल्लाह रब्बुल इज़्जत मेरी उन तमाम बहनों के निकाह का इंतेज़ामों नज़्म फरमांदे। अल्लाह,हुम्मा आमीन, ला,इलाहा,इल्ला,अंता,सुब्हा-नका,इन्नी,कुंतु, मिनज़्ज़ालिमीन!

Sun 01, Jan 2023 · 11:34 pm · Reply
Asif. Bhati

आसीफ .

Sat 16, Oct 2021 · 06:25 pm · Reply
Anwar

Asslamwalaikum Sahab Aapne bhut acha likha magar yaha sb log ko ye sb samjta laikin koi Amal nhi karte sb sun lete aur easy lete. Aur ek baat hai sb se main aaj agar dusre nikah ko aam kiya jaye to ziyada acha hoga hamare muslim aurte ladkiya gairo ke sath nhi jayege magar hamare gharo me dusri shadi ko bhut bada gunha bana diye phli aur bolti dusri kare to mai mar jaugi ya phli ko talaq do ladki wale bolre ham kaisa dena. Ladkiya bolti ham dusri bivi nhi ban sakte. Islam aur shariyat sb jante magar koi amal karne tayar nhi bs modern banna pasand hai Sb se main koi amal nhi kar sakta.

Fri 15, Oct 2021 · 09:46 pm · Reply