बहू की तलाश

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इर्शाद फ़रमाया, जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, उन्हें तालीम व तरबियत दी, उनकी शादी की और उनसे अच्छा बर्ताव किया, उसके लिये जन्नत है। (सुनन अबू दाऊद)

बेटी की परवरिश पर इतना बड़ा अज्र इसलिये रखा गया है क्योंकि अच्छी तरबियत वाली लड़की ससुराल के घर को संवार देती है।

अगर किसी लड़की की तरबियत अच्छी नहीं हो, आदत व अख़लाक़ अच्छे नहीं हो तो उस लड़की की आला तालीम और उसका अच्छा ख़ानदान भी कोई मायने नहीं रखता।

कुछ लोगों की नज़र बहू के मायके से मिलने वाले दहेज और धन-दौलत पर होती है। वे उसके लिये नकचढ़ी बहू को भी बर्दाश्त कर लेते हैं। लेकिन जिन लोगों को घर को संवारने वाली बहू चाहिये होती है, वे छोटी-छोटी बातों पर भी ग़ौर करते हैं। इस सम्बंध में हम एक कहानी पेश करते हैं।

एक प्रोफेसर साहब को अपने बड़े बेटे के लिये रिश्ते की तलाश थी। प्रोफेसर साहब बहुत आदर्शवादी और सोशल रिफॉर्मर थे। उन्हें दान-दहेज से सख़्त नफ़रत थी। वो अपने होने वाले समधी पर बारात की दावत का बोझ भी नहीं डालना चाहते थे। वो चाहते थे कि लड़की का पिता बेहद सादगी से अपनी बेटी की शादी करे। बस उनकी एक ही ख़्वाहिश थी कि उनके बेटे को नेक और समझदार बीवी मिले।

प्रोफेसर की शहर में काफ़ी रेपुटेशन थी। घर-ख़ानदान भी अच्छा था और लड़का भी क़ाबिल था, इसलिये रिश्तों की कमी नहीं थी। कई रिश्ते आये लेकिन अक्सर रिश्ते प्रोफेसर साहब की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। प्रोफेसर साहब में इतनी शराफ़त थी कि रिजेक्ट की गई लड़कियों की खामियों को कभी ज़ाहिर नहीं किया।

एक बहुत अच्छे परिवार से रिश्ता आया। लड़की बहुत ख़ूबसूरत थी और पोस्ट ग्रेजुएट थी। बेहतर रिश्ता जानकर प्रोफेसर साहब की बीवी ने अपने तौर पर हाँ कर दी।

प्रोफेसर साहब कुछ दिनों बाद, दोपहर के वक़्त बिना पूर्व सूचना के, अपने होने वाले समधी के घर गये तो देखा कि उनकी होने वाली समधन खाना बना रही थीं। उनकी बेटी यानी प्रोफेसर साहब की होने वाली बहू टीवी देख रही थी। इसी दौरान उसने अपनी छोटी बहन पर रौब जमाते हुए ब्रेड-आमलेट लाने को कहा। प्रोफेसर साहब ने चाय पी, समधी से कुछ देर बातें की और वापस अपने घर चले आये।

एक महीने बाद, प्रोफेसर साहब पहले की तरह दोबारा समधी जी के घर गये। सुबह का वक़्त था, समधन जी झाड़ू लगा रहीं थी, बच्चे पढ़ रहे थे और उनकी बेटी यानी प्रोफेसर साहब की होने वाली बहू सो रही थी। प्रोफेसर साहब ने अपने समधी के साथ चाय-नाश्ता किया, देश-दुनिया और समाज के हालात पर चर्चा की और वापस घर चले आये।

कुछ दिन बाद, प्रोफेसर साहब किसी मीटिंग से लौट रहे थे। रात का वक़्त था। रास्ते में उनके समधी जी का घर था। प्रोफेसर साहब समधी के छोटे बेटे के संग घर के अंदर पहुंचे तो देखा कि वाश बेसिन पर गंदे बर्तनों का ढेर लगा था जिन्हें उनकी समधन साफ़ कर रही थी। उनकी बेटी यानी प्रोफेसर साहब की होने वाली बहू अपने स्मार्टफोन पर व्यस्त थी। समधी के इसरार (आग्रह) पर प्रोफेसर साहब ने उनके साथ खाना खाया और अपने घर चले आये।

प्रोफेसर साहब ने घर आकर अपनी बीवी को समधी के घर की तीनों बार की विज़िट के बारे में बताया। एक अहम फैसला किया और अगले दिन लड़की वालों के यहाँ ख़बर भिजवा दी कि उन्हें ये रिश्ता मंज़ूर नहीं है।

लड़की वालों ने कारण जानना चाहा, प्रोफेसर साहब ख़ामोश रहे। लड़की के पिता द्वारा बार-बार वजह पूछने पर प्रोफेसर साहब ने कहा, "मैं आपके घर तीन बार गया और तीनों बार समधन जी को ही घर के कामकाज में मसरूफ (व्यस्त) पाया।" यह कहते हुए उन्होंने लड़की के पिता को अपनी तीनों विजिट्स के बारे में विस्तार से बताया।

प्रोफेसर साहब ने कहा, "मैंने एक भी बार भी आपकी बेटी को घर के कामकाज में अपनी माँ की मदद करते हुए नहीं देखा। माफ़ कीजियेगा, जो बेटी अपनी सगी माँ की मदद करने का जज़्बा न रखे, वो अपने शौहर की माँ का क्या ख़याल रखेगी?"

प्रोफेसर साहब ने फैसलाकुन अंदाज़ में आगे कहा, "मुझे अपने बेटे के लिए नेक बीवी और अपने परिवार के लिये समझदार बहू की ज़रूरत है। मेरे एक बेटा और है, कुछ अर्से बाद उसकी भी शादी करनी है। जो लड़की अपनी सगी बहन पर हाकिमाना रौब जमाए, उसका अपनी देवरानी के साथ क्या सुलूक होगा?"

प्रोफेसर साहब ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, "इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर मैंने इस रिश्ते से इन्कार किया है। मुझे दहेज में माल-दौलत नहीं बल्कि बहू के बेहतरीन अख़लाक़ चाहिये।"

लड़की का बाप ख़ामोश था। वो प्रोफेसर साहब से नज़रें नहीं मिला पा रहा था।

औरत घर को जन्नत बना देती है और जहन्नम भी; यह सब उसकी आदत, अख़लाक़ और तरबियत पर निर्भर करता है।

कभी आपने ग़ौर किया कि अपने माँ-बाप का लाडला बेटा शादी के कुछ अर्से बाद उनसे अलग होने का फ़ैसला क्यों कर लेता है?

शादी के पहले एक साथ रहने और खाने-पीने वाले भाई अलग-अलग परिवार क्यों बसा लेते हैं?

इसका जवाब है, ग़लत तरबियत वाली लड़की को बहू बनाकर लाना।

मारवाड़ में कहावत है, पाणी पीजै छाण ने, रिस्तो कीजै जाण ने (पानी छान कर पियें, बच्चों का रिश्ता जाँच कर करें)। इसलिये सभी मां-बाप को चाहिये कि वे अपनी बेटियों को पढ़ाने के साथ-साथ पारिवारिक संस्कार सिखाने पर ज़रूर ध्यान दें।

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सलीम ख़िलजी
एडिटर इन चीफ़
आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप : 9829346786

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Comments (11)
Gulam Mohiyuddin

Naseehat aamej waqiya seerat achhi hai to ghar Jannat Ishan ho jata hai warna zahannumto Banna hi hai

Fri 25, Jun 2021 · 05:04 pm · Reply
Abdul karim sabbag

Good

Fri 25, Jun 2021 · 01:47 pm · Reply
Jarina khan khatri

Assalamuallaikum Hme Apka article Bhut pasand aaya. Mene bhi Apni betiyon ko pdaya h or sath me Namaj ki paband or Quran daily pdne ki habit Dali hai Alhumdulillah 💓 Or sath me hi computer courses bhi karwa diye h . Or inke sath sath Ghar ke sare Kam(khana bnana, bdo ki ijjt krna or choto Se pyar krna bhi sikhaya hai.

Fri 25, Jun 2021 · 11:47 am · Reply
JAKIR KHILJI

सलाम सलीम जी, आप ने जो लिखा वो काबिले तारीफ है.आप के बताये पहलुओ पर सभी को विचार करने की जरूरत है. ओर हमारा दीन इस्लाम भी यही कहता है(सभी धर्म की किताबो में भी यही बताया गया है) पर अफसोस समाज मे अंधविश्वास ओर दुसरो से बराबरी की होड ओर एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिस में दुनिया बिगड़ती जा रही है.वक्त है अपने घर से शुरुआत करने की अपने बच्चों कि अच्छी परिवर्स ओर उन्हें सही इल्म देने की जो अपने घर को ही नही पूरे समाज को सुंदर बना दे। शुक्रिया। जाकिर खिलजी(दीपलाना)

Fri 25, Jun 2021 · 10:54 am · Reply
Saleem Khilji · Editor-in-Chief

इस्लाम में इबादत के साथ-साथ अख़लाक़ पर बहुत ज़्यादा तवज्जो दी गई है। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का इर्शाद है, "तुम में सबसे बेहतरीन लोग वो हैं जिनके अख़लाक़ अच्छे हैं।" अगर कोई मुस्लिम बद-अख़लाक़ी से पेश आता है तो वो अपने अमल से इस्लाम को भी बदनाम करता है।

Fri 25, Jun 2021 · 10:03 am · Reply
Mohd Yunus

Mashallah, Bahut achi baat, allah rabulizat ham sab ko amal karne ke rofiq ata farmaye, ameen ya rabulaalmeen

Fri 25, Jun 2021 · 09:48 am · Reply
Abdul lateef

बेहतरीन औसत

Fri 25, Jun 2021 · 09:23 am · Reply
Abdul Mateen karanja

Allah Hum ko Sahee Samajh Ata Farmaaye Aameen

Fri 25, Jun 2021 · 05:46 am · Reply
Habiburahman

Mashaallah bhut acchi baat batai aapne par aaj kal sabhi ladkiyo me gun mil jaege kyuki ladki ke maa baap ladki ke har galat kaam me bhi sath hai

Fri 25, Jun 2021 · 12:49 am · Reply
Mohammad Wamik

Masha-Allah Barak-Allah Jazak-Allahu khairan

Fri 25, Jun 2021 · 12:25 am · Reply
Mohammad Haroon

I am agree with the analysis intellegent Professor.

Thu 24, Jun 2021 · 11:39 pm · Reply