आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी क्या है? पार्ट-01

आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी क्या है? पार्ट-01

आज का यह ब्लॉग एक बहुत ही अहम विषय पर लिखा गया है। इसके हर पैराग्राफ को ठहर-ठहर के पढ़ियेगा और इस ब्लॉग के पैग़ाम पर ग़ौर ज़रूर कीजियेगा।

इस ब्लॉग की शुरूआत हम इस शे'र के साथ करना मुनासिब ही नहीं बल्कि निहायत ज़रूरी समझते हैं,

खा के ठोकर भी न संभले तो मुसाफ़िर का नसीब
हक़ अदा करते हैं रास्ते के पत्थर अपना।

हाल ही में इस्लाम से मुर्तद वसीम रिज़वी ने क़ुरआन की आयतों पर ऑब्जेक्शन उठाया, उसके बाद यति नरसिंहानंद सरस्वती नामी एक हिंदू संत ने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बारे में नाज़ेबा अल्फाज़ (अशोभनीय शब्दों) का इस्तेमाल किया है।

इनसे पहले भी कई लोगों ने इस्लाम, क़ुरआन, इस्लामी शरीअत, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), सहाबा औलिया-ए-किराम और दीगर इस्लामी मसलों पर बेजा बयानबाज़ी की है। हर बार मुसलमानों ने विरोध-प्रदर्शन किया, एफआईआर दर्ज कराई, सेक्युलर नेताओं को जमकर कोसा और फिर सब-कुछ भूल-भालकर अपने काम में लग गये।

अनेक बार देखा गया है कि विरोध-प्रदर्शन के दौरान तोड़-फोड़ या हिंसक घटना हो जाती है और मुसलमानों के ख़िलाफ़ ही मुक़द्दमा दर्ज हो जाता है। कभी कोई मुसलमान नेता जोश में आकर जैसे को तैसा वाली भाषा में जवाब दे देता है और उसके ख़िलाफ़ मुक़द्दमा दर्ज हो जाता है। आग लगाने की शुरूआत करने वालों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होती। यह सब एक रूटीन-सा हो गया है।

इस्लाम विरोधी लोग और संगठन भी जानते हैं कि मुसलमान इससे ज़्यादा कुछ नहीं करेगा। उन्हें पक्का यक़ीन है कि मुसलमान कोई ठोस या कारगर क़ानूनी और व्यावहारिक क़दम तो उठा ही नहीं सकता।

मुस्लिम समाज के ख़िलाफ़ अन्य धर्मों के लोगों का ध्रुवीकरण करने के लिये आये दिन कोई न कोई फ़ित्ना खड़ा किया जाता है और मुसलमान उनके जाल में हमेशा फँस जाता है।

आइये, हम मूल विषय पर वापस लौटते हैं। ऐसे हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी क्या है?

अब हम उन कामों पर चर्चा करते हैं जो हमें अव्वलीन तरजीह (प्राथमिकता) के साथ करने चाहिये।

01. मुसलमान, अखंड भारत की माँग करें

सौ साल पहले, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से 1921 में कहा था कि अगर हिंदू-मुस्लिम एकता टूट गई तो यह आज़ाद भारत में इंसानियत का सबसे बड़ा नुक़सान होगा। बदक़िस्मती से उस वक़्त के मुसलमानों ने उनकी बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया और मुहम्मद अली जिन्ना की "विभाजनकारी नीतियों" के बहकावे में आ गये। इस्लाम के नाम पर बना पाकिस्तान आज किसी भी रूप में इस्लामी देश नहीं है। हालाँकि भारत के बंटवारे के लिये कुछ हिंदू कट्टरपंथी नेता भी बराबर के क़ुसूरवार थे। लेकिन सारा इल्ज़ाम मुसलमानों के सर पर मंढ दिया गया।

इस ग़लती को सुधारना होगा। भारतीय मुसलमानों की अव्वलीन तरजीह (प्राथमिकता) यही होनी चाहिये। भारतीय मुसलमानों को चाहिये कि "अखंड भारत" की उठाकर जन आंदोलन छेड़ें। हमारी यह बात कई लोगों की अटपटी और बेतुकी लग सकती है लेकिन यक़ीन मानिये यह माँग कई समस्याओं का परमानेंट इलाज है।

अखंड भारत का मतलब क्या है? ग़ौर कीजियेगा,

देश की सीमाएं सुरक्षित होंगी और जंग व आतंकवाद का मसला ख़त्म।
रक्षा बजट में भारी कटौती होगी और आर्थिक तरक़्क़ी का रास्ता आसान।
मुसलमानों पर देश के बंटवारे का इल्ज़ाम ख़त्म।
CAA और NRC के मुद्दे ख़त्म।
कश्मीर का मसला ख़त्म।
अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का मुद्दा भी ख़त्म।

एक और पते की बात जान लीजिये, अखंड भारत की माँग उठाने के साथ ही साम्प्रदायिकता की राजनीति ख़त्म हो जाएगी।

भाइयों और बहनों! बात अभी ख़त्म नहीं हुई। इस ब्लॉग के अगले पार्ट में हम कुछ और अनछुए पहलुओं पर चर्चा करेंगे, इन् शा अल्लाह! हमेशा की तरह इस ब्लॉग को शेयर करके हक़बयानी का सपोर्ट करें। हमारे व्हाट्सएप नम्बर पर आप अपनी राय भी दे सकते हैं।

वस्सलाम,
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप न. 9829346786

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