पार्ट-02 : आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी क्या है?
इस टाइटल से कल 6 अप्रैल 2021 को लिखे गये ब्लॉग के पहले पार्ट पर बहुत-से लोगों के पॉज़िटिव तास्सुरात (सकारात्मक प्रतिक्रियाएं) आईं। कुछ लोगों ने यह माँग की कि अखंड भारत के बारे में थोड़ी तफ़्सील से जानकारी दी जाए। इसलिये आज दूसरे पॉइंट पर चर्चा करने से पहले इस पर बात करेंगे, इन् शा अल्लाह!
कुछ लोगों ने यह सवाल किया कि आरएसएस भी अखंड भारत की बात करता है तो उसकी सोच में और आपके नज़रिए में क्या फ़र्क़ है?
इसके जवाब में हमारा कहना यह है, आरएसएस "भगवा रंग में रंगा अखण्ड भारत" चाहता है जो कि मुमकिन भी नहीं है। लेकिन हम उस अखंड भारत की सोच रखते हैं जो सभी धर्मों-सम्प्रदायों का एक गुलदस्ता हो, ऐसा अखंड भारत बनाना मुमकिन भी है और वो सबके हित में बेहतर भी है।
कुछ लोगों ने अखंड भारत के भौगोलिक सीमाओं या ज़मीनी सरहदों के बारे में सवाल पूछा है। हम जिस अखंड भारत की बात कर रहे हैं वो अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से पहले वाला भारत है, जिसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार (बर्मा) सभी देश शामिल थे। जहाँ सभी धर्म-सम्प्रदाय के लोग अपनी-अपनी पहचान के साथ प्यार और सद्भाव के साथ रहते थे।
उम्मीद है इस मुद्दे पर हमारे दोस्तों को उनके सवालों के जवाब मिल गये होंगे। अब हम आज के हालात में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी से सम्बंधित दूसरे पॉइंट पर चर्चा करेंगे, इन् शा अल्लाह!
02. हिंदू समाज के साथ संपर्क बढ़ाएं और ग़लतफ़हमियाँ दूर करें
इस पॉइंट पर विस्तार से बात करने के लिये हम डॉ. वसीम बरेलवी के इस शे'र से शुरुआत करना चाहेंगे,
चलो हम ही पहल कर दें कि हमसे बद-गुमाँ क्यूँ हो?
कोई रिश्ता ज़रा-सी ज़िद की ख़ातिर रायगाँ क्यूँ हो?
बिखर कर रह गया है हमसायगी का ख़्वाब ही वर्ना,
दिए इस घर में रोशन हों तो उस घर में धुँआ क्यूँ हो?
मुसलमान, इस देश में हिंदू समाज के साथ क़रीब 1000 साल से रह रहे हैं लेकिन जितनी दूरियां और ग़लतफ़हमियां आज के दौर में पाई जाती हैं, उतनी या तो सौ साल पहले थीं या अब हैं। अंग्रेज़ों ने अपनी फूट डालो और राज करो नीति के तहत उस वक़्त दोनों समुदायों के अंदर ऐसे लोगों को बढ़ावा दिया जो हिंदू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता की खाई को चौड़ा करने के एक्सपर्ट थे।
■ अब सवाल यह उठता है कि आज के दौर में यह काम कौन कर रहा है? और इस साज़िश को नाकाम कैसे किया जाए?
26 साल बाद, 15 अगस्त सन् 2047 में, ट्रांसफर ऑफ़ पावर की घटना को सौ साल पूरे हो जाएंगे। उस वक़्त क्या-क्या बदलाव होंगे, इसके बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।
लेकिन हमारी सोच यह है कि एक बार फिर वही विभाजनकारी ताक़तें अपना खेल, खेल रही है। देश में सरकारी संस्थानों का निजीकरण हो रहा है और बाज़ारवाद बड़ी तेज़ी से पनप रहा है। देश की जनता का ध्यान इस तरफ़ से हटाने के लिये दोनों समुदायों को एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम के विवाद में फंसाने की साज़िश की जा रही है।
इस साज़िश को नाकाम करना ज़रूरी है और ऐसा तभी हो सकता है जब हिंदू और मुस्लिम, दोनों समुदायों के लोग आपसी संपर्क में रहें और ग़लतफ़हमियों को पनपने न दें। नफ़रत फैलाने वाले लोगों का हमारी नज़र में निम्नलिखित इलाज किया जाना चाहिये।
सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दाख़िल की जाए कि किसी भी धर्म के प्रवर्तक या नबी या उसकी धार्मिक किताबों के बारे में भड़काऊ बयानबाज़ी करने के जुर्म को "देशद्रोह" और "देश के विरुद्ध जंग" माना जाए क्योंकि इसकी वजह से देश का अमन-चैन ख़त्म होता है। ऐसे मुजरिमों को फांसी की सज़ा देने का प्रावधान किया जाए। यक़ीन जानिए उसके बाद सब फसादी लोग सीधे हो जाएंगे और ऊल-जलूल बकना भूल जाएंगे।
मौजूदा क़ानूनों के अनुसार, IPC की धारा 295-A के तहत, किसी नागरिक की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का जुर्म साबित होने पर, उसे तीन साल जेल की सज़ा हो सकती है लेकिन इरादतन किये गये अपराध के लिये यह सज़ा बहुत कम है।
अभी और भी बहुत-से काम करने बाक़ी हैं। अगले ब्लॉग में इस चर्चा की जाएगी, इन् शा अल्लाह! आपसे गुज़ारिश है कि इस ब्लॉग को भी ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
सलीम ख़िलजी (एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम न. 9829346786
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