5G से सम्बंधित झूठ और सच
आज की इस स्पेशल रिपोर्ट में हम 5G से जुड़ी 3 अफवाहों और उनकी सच्चाई पर चर्चा करेंगे जो सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं। हम सबूतों के साथ सही तथ्य भी आपके सामने पेश करेंगे। इसके साथ ही हम यह भी बताने की कोशिश करेंगे कि 5G से मानव शरीर को ज़्यादा से ज़्यादा क्या नुक़सान हो सकता है?
■ 5G का मतलब क्या है?
यहाँ G का मतलब है, जनरेशन (पीढ़ी) और 5G का मतलब है, टेलीकम्युनिकेशन की पाँचवीं पीढ़ी। इस समय देश में 4G नेटवर्क प्रचलित है और हाल ही में सरकार ने चार मोबाइल कंपनियों को 5G टेस्टिंग की इजाज़त दी है।
5G के ज़रिए तेज नेटवर्क स्पीड, बिना रुकावट एचडी सर्फिंग मिलेगी। इसमें यूजर्स को ज्यादा नेट स्पीड, कम लेटेंसी और ज्यादा फ्लेक्सिबिलिटी देखने को मिलेगी।
■ क्या 5G टेस्टिंग की वजह से मौतें हो रही हैं?
सोशल मीडिया पर एक ऑडियो काफी वायरल हुआ, जिसमें दावा किया गया कि भारत में अभी जितनी भी मौतें हो रही हैं उसकी वजह 5G नेटवर्क की टेस्टिंग है और उसे कोरोना का नाम दिया जा रहा है। इस ऑडियो में दावा किया जा रहा है कि 5जी टेस्टिंग की जानकारी सबको नहीं दी गई है और इसकी वजह से ही लोगों की मौतें अचानक हो जा रही हैं। दरअसल, इस वायरल ऑडियो में दो लोग बातें करते सुने जा सकते हैं, जिसमें एक शख्स कोरोना से हो रही मौतों को 5जी टेस्टिंग का नाम देता दिख रहा है।
भारत सरकार के संस्थान प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की फैक्ट चैक टीम ने सोशल मीडिया पर वायरल इस दावे को फ़र्ज़ी बताया है। PIB की Fact Check टीम ने लोगों से आग्रह किया है कि कोरोना काल में कृपया ऐसे फर्जी संदेश साझा कर के भ्रम न फैलाएं।
■ क्या 5G रेडिएशन से कोरोना फैला?
एक सोशल मीडिया पोस्ट में यह दावा किया जा रहा है, ये जो महामारी दूसरी बार आई है जिसे सब कोरोना की दूसरी लहर का नाम दे रहे है ये बीमारी कोरोना नहीं बल्कि 5G टावर की टेस्टिंग की वजह से है। टावर से जो रेडिएशन निकलता है वो हवा में मिलकर हवा को ज़हरीला बना रही है इसलिए लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और लोग मर रहे हैं। इसीलिए 5G टावर की टेस्टिंग को बंद करने की मांग करिये फिर देखिये सब सही हो जाएगा।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 5G और अन्य मोबाइल फ़ोन्स की तकनीक इलेक्ट्रोमैगनेटिक स्पेक्ट्रम की लो-फ़्रीक्वेंसी के तहत आती हैं। इनसे ज़्यादा रेडिएशन X-Rays और सोनोग्राफी में होता है जिस पर कोई ऐतराज़ नहीं कर रहा है। सूरज की किरणों में नुकसानदायक अल्ट्रा वायलेट किरणें होती हैं।
असल में रेडिएशन की दो क़िस्में होती हैं, पहली आयनित (Ionized) और दूसरी ग़ैर आयनित (Non Ionized)। Ionized रेडिएशन ज़्यादा नुक़सानदेह होता है जो एक्स रे, सोनोग्राफी आदि में होता है। मोबाइल में Non Ionized रेडिएशन होता है। इसे आप ऊपर दी गई इमेज को देखकर समझ सकते हैं।
पूरी तरह 5G नेटवर्क का इस्तेमाल करने वाले देश साउथ कोरिया और हाँगकाँग में भारत के मुकाबले कोरोना वायरस के कम मामले हैं। कोरोना वायरस के मामलों का रिकॉर्ड रखने वाली वेबसाइट के मुताबिक 12 मई 2021 को साउथ कोरिया में 588 सक्रिय केस थे जो कि बहुत ही कम हैं। इस तरह कोरोना वायरस के केसेज़ और 5G नेटवर्क के बीच संबंध होने का कोई सबूत नहीं है।
■ क्या 5G की वजह से करंट आ रहा है?
एक अन्य वायरल पोस्ट में दावा किया गया कि 5G के कारण चीज़ों को छूने पर करंट आ रहा है। सर्दी के दिनों में गर्म कपड़े पहना हुआ शख़्स जब किसी ठंडी मेटल को छूता है तो चड़चड़ाहट की आवाज़ के साथ करंट का झटका महसूस होता है। इसे "थर्मल इलेक्ट्रिसिटी" कहते हैं। ऐसा आपने भी महसूस किया होगा। इस प्रकार 5G से करंट फैलने का यह यह दावा भी ग़लत है।
■ 5G से क्या नुक़सान हो सकता है?
हालांकि अभी तक 5G से जुड़ी रिसर्च कम ही हुई है। लेकिन अब तक मिली जानकारियों के मुताबिक़ 5G रेडियेशन के कारण 5G के मुक़ाबले में ज़्यादा गर्मी निकलती है। मेडिकल एक्सपर्ट्स ने यह कहा है कि 5G से पैदा होने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी से हमारे शरीर के टिशू गर्म जरूर होते हैं लेकिन इससे हमारे शरीर के तापमान पर बहुत ही कम असर होता है।
हमने इस रिपोर्ट में सबूतों के साथ सही तथ्य पेश करने की कोशिश की है। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
वस्सलाम,
सलीम ख़िलजी
(एडिटर इन चीफ़, आदर्श मुस्लिम अख़बार व आदर्श मीडिया नेटवर्क)
जोधपुर राजस्थान। व्हाट्सएप/टेलीग्राम : 9829346786
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