अकबर इलाहाबादी को खिराजे-अक़ीदत

  • Fri, 15 Feb 2019
  • National
  • Saleem Khilji

खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो।

ये मशहूर शेर, अकबर इलाहाबादी का है, जो हमारे जैसे लाखों-करोड़ों लोगों के सबसे पसंदीदा शायर हैं। हम अपने अख़बार "आदर्श मुस्लिम" के एडिटोरियल पेज पर पहले अंक से लेकर आज तक, 20 साल से इस शेर को छापते आ रहे हैं, ये शेर हमें प्रेरणा देता है।

उनकी व्यंग्य रचनाओं ने न जाने कितने कवि और लेखकों को तंज़ की दुनिया में उतरने की प्रेरणा दी होगी। अकबर इलाहाबादी के अशआर ऐसे होते थे कि जिस शख्स को लेकर वो तंज़ (व्यंग्य) कसते थे वो भी उन्हें पढ़कर या सुनकर वाह-वाह कर उठता था और उनका मुरीद बन जाता था।

अकबर इलाहाबादी 16 नवंबर 1846 को पैदा हुए थे और 15 फरवरी 1921 को उनका इंतक़ाल हुआ। आज 15 फरवरी 2019 को उनके इंतक़ाल को बराबर 98 साल हो गए हैं।

अकबर, इलाहाबाद में जन्मे, इलाहाबाद में मरे, इसीलिए ताउम्र इलाहाबादी रहे। उनका असली नाम था सैयद हुसैन। समाज को आइने की चकाचौंध में रखने वाले दमदार शायर के अलावा वो सरकारी आदमी थे। ब्रिटिश सरकार में अर्ज़ी-नवीस से सरकारी नौकरी का सफ़र शुरू किया, नौकरी के दौरान वकालत की पढ़ाई की थी। बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेशन जज रहे। लेकिन ये न समझिएगा कि वो "ब्रिटिश सरकार के गुलाम" थे।

1882 में लार्ड रिपन के शासन काल में पहली बार जनता द्वारा चुने हुए भारतीय सदस्यों को नगर-पालिकाओं और जिला-परिषदों के स्तर पर शासन सँभालने की ज़िम्मेदारी दी गयी लेकिन उनके ज़िम्मे में मुख्य काम यही था कि वो सड़कों, गलियों और नालियों की सफ़ाई की देखरेख करें। अकबर इलाहाबादी ने नगर-पालिकाओं और जिला-परिषदों के इन निर्वाचित सदस्यों के विषय में कहा –

‘मेम्बर अली मुराद हैं, या सुख निधान हैं,
लेकिन मुआयने को, यही नाबदान (नाली के ढक्कन) हैं।’

1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड हुआ। सैंकड़ों भारतीयों को बेरहमी से क़त्ल किया गया। अंग्रेज़ हुकूमत ने उसका समाचार छापना, उसके विरोध में भाषण देना या जन-सभा का आयोजन करना पूरी तरह निषिद्ध कर दिया। अकबर इलाहाबादी का इस सन्दर्भ में प्रसिद्ध शेर है-

‘हम आह भी भरते हैं, तो हो जाते हैं बदनाम,
वो क़त्ल भी करते हैं तो, चर्चा नहीं होता।’

अंग्रेजी तालीम हमको अपने धर्म, संस्कृति और अपनी ख़ास पहचान से दूर कर रही थी। ये वो तालीम थी जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हमको अपने से बड़ों के साथ बे-अदबी से पेश आना सिखा रही थी। अकबर इलाहाबादी ने इस पर लिखा,

‘हम ऐसी कुल किताबें, क़ाबिले ज़ब्ती समझते हैं,
जिन्हें पढ़कर के बेटे, बाप को खब्ती समझते हैं.’
(क़ाबिले ज़ब्ती — ज़ब्त किये जाने योग्य, खब्ती-- बेवकूफ़, सनकी)